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सिंचाई की इस प्राचीन प्रणाली को बिजली की आवश्यकता नहीं होती है


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लकड़ी से निर्मित, इस उपकरण को बिजली की आवश्यकता नहीं होती है

पुराने जमाने मे आदिवासी अपने द्वारा बनाये गए लकड़ी के साधनों से अपने द्वारा उगाए गए फसलों की सिंचाई किया करते थे जिससे उनको किसी प्रकार की खर्च उठाने की जरूरत नही पड़ती थी। अपनी फसलों को अच्छी तरीके से उपजा कर अपने जीवन यापन के साथ साथ अपने आय का साधन बनाते थे। धीरे धीरे लेकिन ये प्रथा बदली और अब लोग बिजली के पंप द्वारा ही सिंचाई करते हैं।

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धरम सिंह कंवर अपने खेत में

हाल ही में मैं बिछिपारा नामक एक गाँव में गया, जहाँ मैंने एक बुज़ुर्ग व्यक्ति को देखा जो अभी भी सिंचाई की पुरानी पद्धति का उपयोग करता है। उनका नाम धरम सिंह कंवर है और जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने मुझे आदिवासियों के पुराने सिंचाई के साधन के बारे में बताया। उन्होंने हमें बताया कि जब उनके गांव में पहले बिजली नही थी तब सभी लोग अपनी फसलों की सिंचाई करने के लिए टेड़ा का उपयोग करते थे। बिछिपारा के आदिवासी आज भी इस पुराने साधनों से ही अपने फसलों की सिंचाई किया करते है। उन्होंने बताया कि इस साधन से बिजली की बचत होती है और बिजली के गुल होने पर भी आराम से सिंचाई किया जाता है। उन्होंने ये भी बताया कि हमे सिंचाई करने में किसी तरह की परेशानी ना हो इसलिए छोटे छोटे क्यारियों में लगाते हैं। उसे एक मेड़ बनाया जाता है, उस क्यारियों में पानी भरने पर दूसरे क्यारियों में पानी छोड़ा जाता है जो नाली के माध्यम से सभी क्यारियों में जाता है। जिस क्यारी में पानी ले जाते है उस क्यारी का मेड़ फोड़ दिया जाता है जिससे उस क्यारी में पानी भर जाए। इस साधन को बनाने के लिए उनको बहुत मेहनत करके जंगलो से लकड़ी लाना पड़ता है । ये उनके सिंचाई का ही नही बल्कि उनके आय का भी बहुत बड़ा साधन है।

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इन आदिवासियों का ये फसल कुछ महीनों के लिये होता है। बरसात के दिनों में यहाँ सिर्फ चांवल ही उगाया जाता है। सब्जी और फल नदी के किनारे में लगाया जाता हैं जिससे उनको नदी से पानी पर्याप्त मिल जाता है। और बरसात के दिनों में नदी का बहाव बहुत ज्यादा होता है जिससे वहाँ के लोगो को सब्जी के लिए जगह नही मिलती। वे नवम्बर-दिसम्बर में नदी के किनारे अपने अपने बाड़ी को साफ करना सुरु कर देते है क्योकि बरसात के बाद नदी का पानी पूरी तरह से कम हो जाती है। जनवरी तक सभी अपना अपना साग सब्जी लगा लेते है जो कि उनका ये फसल पूरे गर्मी तक लगा रहता है । बरसात के आने तक सभी के फसल समाप्त हो जाते है पूरे गर्मी भर वे लोग साग सब्जी बेच कर अच्छा पैसा कमा लेते हैं।


वर्तमान में सिंचाई के साधन


इस नए युग मे सिंचाई करना बहुत ही आसान हो गया है। ज्यादातर लोग पुराने विधि को छोड़ कर नए विधि से ही सिंचाई करते है जैसे कि अब पंप, बोरवेल, नलकूप आदि का इस्तेमाल होने लगा है। आज कल बड़े बड़े बांध और तालाब बन गए है जिससे सिंचाई के साधन बहुत हो गए है।


आदिवासियों के पुराने सिंचाई का साधन एक ऐसी साधन है जिसका उपयोग हम अपने फसलों को जब चाहे जितना चाहे पर्याप्त मात्रा में सिंचाई कर सकते है। इसके लिए किसी भी प्रकार की ख़र्च करने की जरूरत नही पड़ती है, अतः यह साधन छोटे किसान और गरीब किसान के लिए यह सिंचाई का सबसे अच्छा साधन है।


यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।

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