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जानिए खरसांवा शहिद स्थल पर एक जनवरी को क्या होता है?

Updated: Feb 23, 2023

जब-जब भी आदिवासियों ने अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाई है तब-तब उनकी आवाज़ को दबाने के लिए बेगुनाह लोगों को मारा गया है। इसका प्रत्यक्ष उदहारण खरसांवा की ज़मीन पर देखने को मिलता है। हम कोल्हान के आदिवासियों के लिए एक जनवरी बहुत ही खास दिन है, एक तरफ़ जहाँ पूरी दुनिया नए साल के स्वागत में उत्सव मनाने की तैयारी करते रहती है, वहीं कोल्हान में हम शोक मनाने की तैयारी करते हैं। दिसंबर महीने से ही प्रत्येक हाट-बाज़ार, पर्व-त्योहारों में आदिवासी संगठनों द्वारा 1 जनवरी को उत्सव न मनाकर, अपने शहीदों की याद में शोक मनाने के लिए जागरूक किया जाता है। और 1 जनवरी को दूर दराज से लाखों की संख्या में लोग खरसांवा पहुँचकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मैंने भी हफ्तों पहले से ही यह सोचकर रखा था कि 1 जनवरी को खरसांवा जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करूँगा और शहीदों के परिवारों से बातचीत कर इस नरसंहार के बारे गहराई से जानूँगा।

बाइक रैली के साथ शहीद स्थल को जाते लोग

खरसांवा की ओर जाते वक़्त रास्ते में मुझे "आदिवासी हो युवा महासभा-चाईबासा" के सदस्यों की बाइक रैली मिली, सभी लोग नारा लगाते हुए बड़े उत्साह के साथ खरसांवा की ओर बढ़ रहे थे। मैं भी उनके साथ शामिल हो गया, रास्ते में ही पता चल जाता है कि, पूरे कोल्हान से अलग-अलग आदिवासी संगठनों के लोग इसमें शामिल होने के लिए आ रहे हैं। खरसांवा घुसते ही गाड़ियों तथा लोगों की हुजूम दिखाई पड़ती है, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जगह-जगह पुलिसवाले खड़े हैं, तथा पूरे मार्ग पर अलग-अलग पार्टियों द्वारा स्वागत द्वार बनाया गया है जिसमें बड़े-बड़े पोस्टर में नेताओं के फ़ोटो बने हुए हैं। इस बीच हर जगह हेमन्त सरकार के योजनाओं के पोस्टर भरे पड़े थे। बिरसा मुंडा, पोटो हो जैसे महान क्रांतिकारियों के अलावा खरसांवा के किसी भी शहीद का न फ़ोटो था न कहीं भी उनका नाम, बस चारों तरफ नेताओं और उनके पार्टीयों के ही पोस्टर/बैनर लहरा रहे थे।


यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, माना कि सरकार अपनी योजनाओं का प्रचार कर रही है पर मेरा मानना है कि यह सही जगह नहीं है। मेरे अनुसार यहाँ जगह-जगह शहीदों के बारे में या यहाँ के इतिहास के बारे में बताना चाहिए था जो की एक भी जगह नहीं दिखा। चिंतित एवं सोचते हुए मैं भीड़ को पार कर शहीद पार्क में प्रवेश करता हूँ, अंदर जाते ही मन थोड़ा हल्का और शांत हुआ। शांत मन से मैंने पहले शहीद वेदी पर और फ़िर पत्थलगड़ी पर अगरबत्ती जलाकर एवं तेल डालकर श्रद्धांजलि अर्पित किया। उसके बाद शहीदों के बारे में और आज के दिन के इतिहास को जानने के लिए लोगों से संवाद करने लगे। शहीदों के परिवार वाले तो हमें एक भी नहीं मिले और इस भीड़ में बहुत से लोगों को तो आज के बारे में ठीक से पता भी नहीं था, कुछ लोग तो इस लिए आए थे क्योंकि उन्हें किसी के द्वारा लाया गया था या फिर मेला घूमने आये हुए थे। हाँ! मेला ही बोला जाये क्योंकि ऐसा लगता था मानो यहाँ शहीदों को श्रद्धांजलि देने कम और घूमने ज्यादा लोग आए थे।

शहीद स्थल पर उमड़ता लोगों का भीड़

इसी भीड़ में कनु बनसिंग से मुलाकात हुई जो पहले युवा महासभा के धर्म सचिव थे और अभी समाजसेवी के रूप में ही लोगों की सेवा कर रहे हैं। यहाँ के इतिहास के बारे वे बताते हैं कि “25 दिसंबर 1947, गुरुवार का दिन ही जोजोडीह गाँव में नदी किनारे एक आम सभा का आयोजन किया गया था। इस सभा में सभी समाजसेवी आंदोलनकारी आदिवासियों ने तय किया कि कोल्हान रियासत को ओडिशा में शामिल नहीं होने देंगे यह अलग राज्य झारखंड के रूप में बने। वहीं दूसरी तरफ सरायकेला खरसावां के राजाओं ने इसे ओडिशा राज्य में शामिल होने के लिए अपनी सहमति दे दी थी। कोल्हान के आदिवासी खुद को स्वतंत्र राज्य के रूप में अपने पहचान कायम रखने के लिए एकजुट होने लगे थे। सभी के सहमति से गुरुवार हाट खरसावां में, 1 जनवरी के दिन सभा आयोजन करने का फैसला लिया गया। इस सभा को जयपाल सिंह मुंडा संबोधित करने वाले थे। जयपाल सिंह मुंडा को देखने और सुनने के लिए 2-3 दिन पहले से ही चक्रधरपुर, चाईबासा, जमशेदपुर, सरायकेला, खरसांवा, रांची, खूंटी, गुमला, तमाड़ तथा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से युवा,बच्चे, बूढ़े, नौजवान और महिलाएं पैदल ही गुरुवार हाट सभा स्थल की ओर आने लगे थे, वे अपने साथ सिर और कंधे पर लकड़ी के गठरी, चावल, खाना बनाने वाला बर्तन, तथा रात को रुकने का व्यवस्था इत्यादि लेकर आए थे। राशन पानी के अलावा वे अपने साथ पारंपरिक हथियार और तीर धनुष भी लाये थे। रास्ते भर सारे लोग अलग राज्य के लिए और ओडिशा में विलय के खिलाफ़ नारा लगाते आ रहे थे। इधर केंद्र सरकार और ओडिशा सरकार ने षड्यंत्र रचते हुए चुपके से सैकड़ों पुलिसवालों को खरसांवा भेज दिया था, ओडिशा पुलिस के लोग चुपचाप अंधेरे में ही खरसावां के मिडिल स्कूल में जमा होने लगे थे। इस बात से आंदोलनकारी बेखबर थे और अपनी तैयारी में लगे हुए थे। जयपाल सिंह मुंडा को भी धोखे से दिल्ली बुलाया गया था जिसकी वजह से वे इस सभा में शामिल नहीं हो पाए थे। “झारखंड आबुव: ओडिशा जारी कबुव:“, “रोटी पकौड़े तेल में विजय पाणी जेल में” का नारा ज़ोर शोर से लग रहा था। 1 जनवरी को सुबह से ही खरसावां हाट में जुलूस निकाला गया और कुछ लोग खरसावां राजा के महल जाकर उनसे मिले और कोल्हान के लोगों की बात पहुंचाई गई। हाट में दोपहर से सभा शुरू हुई और यह सभा शाम तक चली। शाम तक भी जब जयपाल सिंह नहीं आए तो भीड़ भी थोड़ी बेकाबू होने लगी थी, और इसी वक्त उड़ीसा सरकार के सैनिकों ने अंधाधुंध मशीनगन चारों तरफ से चलाना शुरू कर दिया, और हमारे लोग कटे पेड़ की तरह गिरने लगे थे। महिला एवं पुरुषों के अलावा बच्चों पर भी गोलियां चलाई गई थी। उस समय लोग चप्पल भी बहुत कम पहनते थे, सोचने वाली बात तो यह है कि फिर भी दो-तीन ट्रक चप्पल हटाया गया और खेतों में चारों तरफ खून ही खून भरे हुए थे। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने लोग मरे होंगे। ये जो गोलीकांड हुई थी यह सरकार के तरफ से ही थी इसलिए इसका रिकॉर्ड कोई भी सरकारी दफ्तर में नहीं मिलता है। आपको यकीन न हो तो आप DC ऑफिस जाकर खरसावां गोलीकांड का रिकॉर्ड माँग कर देखिए आपको नहीं मिलेगा।“

पारम्परिक तरीके से पूजा-पाठ कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लोग

बगल में ही खड़े एक व्यक्ति थे जो हमारे बातें ध्यान से सुन रहे थे, उनका नाम राजू था वह भी एक समाजसेवी हैं उन्होंने यहाँ के पूजा-पाठ और श्रद्धांजलि देने के तरीके के बारे बताया कि “यहाँ मारे गए लोगों की आत्मा को शांति मिले इसलिए आज का दिन (1 जनवरी) सभी को याद करते हुए पूजा-पाठ किया जाता है। यहाँ जो भी पूजा-पाठ होता है वो आदिवासी रीति रिवाज के अनुसार होता है। यहाँ फूल माला के साथ चावल से बना रासी भी चढ़ाया जाता है। रिवाज के अनुसार शहीद वेदी और पत्थलगाड़ी के स्थान में तेल भी चढ़ाया जाता है। हमें भी अभी तक कितने लोग, कौन से गाँव के लोग और कौन-कौन लोग शहीद हुए हैं यह स्पष्ट नहीं पता है, इसलिए आज हम लोग सामूहिक रूप से सभी शहीदों की आत्मा को शांति के लिए पूजा-पाठ करते हैं। पहले-पहले तो यहाँ इतना भीड़ नहीं होती थी। परंतु जब से टाटा स्टील द्वारा तुरतुंग प्रोजेक्ट का हो क्लास शुरू किया गया। तब से लोगों को इस घटना के बारे थोड़ा बहुत जानकारी मिलनी शुरू हुई। फिर धीरे-धीरे हर साल लोगों का भीड़ बढ़ने लगा है। पहले तो शहिद पार्क सभी के लिए खुला हुआ करता था पर 2017 में, उस वक्त के मुख्यमंत्री रघुवर दास जी के गलती की वजह से यह पार्क अब साल में सिर्फ़ एक ही बार खुलता है। इस गोलीकांड का रिकॉर्ड कोई भी सरकारी दफ्तर पर नहीं मिलता है। खरसावां शहीद स्थल लोगों की नजरों में तब से आने लगा जब यहाँ राज्य के नेता लोग और मुख्यमंत्री आदिवासी वोट बैंक के लिए आने लगे, तभी से BBC News, Sharp Bharat, Prabhat Khabar, Newswing इत्यादि न्यूज़ वाले भी अपने द्वारा रिपोर्ट बनाकर इस घटना के बारे छापने लगे हैं।


मैं तो इस आयोजन समिति के लोगों से नाराज हूँ। यहाँ लोग सिर्फ़ शहीद स्थल में घूमने जैसा आते हैं और लौट जाते हैं। ऐसा लगता है कि यहाँ मेला लगा हुआ है। आयोजन समिति वालों को खरसावां गोलीकांड के बारे में लोगों को बताना चाहिए। सरकार के साथ मिलकर कम से कम एक या दो पर्दा में खरसावां गोलीकांड का इतिहास दिखाना चाहिए, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस इतिहास को पहुंचाना चाहिए, शहीदों के परिवार वालों को सम्मान देना चाहिए। मुझे तो अंदेशा है कि आयोजन समिति के लोगों के पास भी शहीदों की सूची नहीं है। इस दिन का प्रोग्राम के लिए जो लाखों रुपये मिलते हैं उसका खर्चा भी शायद नेताओं की खातिरदारी में ही होता है। आयोजन समिति को शहीदों की सूची बनाने चाहिए। पूरे कोल्हान में आज के दिन को काला दिवस के रूप में मनाने के लिए गाँव-गाँव जाकर उचित तरीके से जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ताकि सभी लोग काला दिवस मनाएं न कि कुछ लोग आज के दिन को नया साल के रूप में पिकनिक या जश्न मनाएं।

शहीद स्थल के आसपास पार्टियों और नेताओं के लगे पोस्टर तथा बैनर

इतने बड़े संख्या में आंदोलनकारी शहीद हुए हैं फ़िर भी सरकार अभी तक इस घटना को स्वीकार नहीं कर रही है, न ही शहीद परिवार वालों के लिए कोई कदम उठा रही है। सरकार को भी शहीदों को सम्मान दिलाने के लिए कदम उठाना चाहिए। क्योंकि इन्हीं लोगों की वजह से आज झारखंड राज्य बना है। सरकार को भी शहीदों की सूची तैयार करने चाहिए फिर सभी का नाम शहीद पार्क में उसी तरह लिखना चाहिए जैसे दिल्ली के इंडिया गेट में लिखा हुआ है।


लेखक परिचय:- चक्रधरपुर, झारखंड के रहने वाले, रविन्द्र गिलुआ इस वक़्त अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर कर रहे हैं, भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं। लिखने तथा फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करने के शौकीन रविन्द्र जी समाजसेवा के लिए भी हमेशा आगे रहते हैं। वे 'Donate Blood' वेबसाइट के प्रधान समन्वयक भी हैं।

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