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जानें कोयातुर आदिवासी हल्दी के पुगांर को किस रोग में प्रयोग करते हैं

मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित


कोया वंशीय गण्डजीवों के गोदोला के जीवन पद्धति में विभिन्न औषधीय पौधे के उपयोग की जानकारी मिलती है। जो उनके पुर्वजों के बताये हुए जीवन दर्शन पर आधारित है। कोयातुरों के जीवन पुनेम दर्शाता है कि, कोया वंशीय गण्डजीवों के गोदोला (समुदाय) की जीवन शैली किस प्रकार प्राकृतिक सम्मत व वैज्ञानिक सम्मत है और कोयातुर आयुर्वेद जड़ी-बूटी के ज्ञाता हैं।


आज हम एक महत्वपूर्ण पौधे की बात करेंगे। जिसे हम कोमका (हल्दी) कहते हैं। हल्दी एक उपयोगी पौधा है। जिसका पुगांर (पुष्प) हमारे लिए बहुत ही लाभकारी है। हल्दी की खेती-बाड़ी वर्तमान में बड़े पैमाने में हो भी रहा है और इससे मुनाफा भी अच्छा मिल रहा है। यह गोंड़ समुदाय के लोगों के गोंडरी में अक्सर लगा हुआ मिल जाता है। क्योंकि, शुभ मांगलिक कार्यक्रम में नया हल्दी का ही इस्तेमाल करते हैं। पौधे के माध्य भाग से गोल बेलनाकार डन्डी के रूप में हल्दी का पुगांर निकलता है।

हल्दी के पौधे

हल्दी का पौधा जड़ी-बूटी के श्रृंखला में आता है, जो करकुमा लोगा पौधे की जड़ से प्राप्त होता है। जो अदरक परिवार का एक बारहमासी पौधा है। हल्दी का सबसे प्रमुख सक्रिय अंश करक्युमिन है, जो हल्दी को पीला रंग देता है। आयुर्वेद चिकित्सा में हल्दी का प्रयोग कई वर्षों से किया जा रहा है। आयुर्वेद में इसें हरिद्रा खंड भी कहते हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया का पौधा है। यह एक बारहमासी पौधा है एवं इसके पौधों में फुल आते हैं। जो औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। इसका उपयोग विभिन्न रोगों को ठीक करने में होता है। ठंड में तो हल्दी का सेवन शरीर को गर्म रखने के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है।

हल्दी का फूल

हल्दी के फुल और उनके हरे भाग खाने योग्य होते हैं जो एक मजबूत और मीठी सुगंध छोड़ते हैं। इसके फूलों और छालों में वानस्पतिक स्वाद होता है। हल्दी में प्रकन्द (राइजोम) द्वारा वर्धी प्रजनन होता है। यह एंटी इंफ्लेमेटरी गुण एलर्जिक रिएक्शन को कम करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने का बेहद ही आसान घरेलू उपाय है।


इसी गुण की वजह से आदिवासी हल्दी के पुंगार का इस्तेमाल पिलिया के रोग के लिए करते हैं। पिलिया एक तरह का रोग है जो शरीर में बिलिरुबिन की मात्रा अधिक होने के कारण होती हैं। बिलिरूबिन का निर्माण शरीर के ऊतकों और खुन में होता है। आमतौर पर जब किसी कारणो से लाल रक्त कोशिकाएं टुट जाती है तो पीले रंग के बिलिरुबिन का निर्माण होता है। पिलिया के शिकार होने से शरीर में बुखार, दर्द, शरीर का रंग पीला होना और खून की कमी आदि समस्याएं होती हैं।


आदिवासी हल्दी के पुंगार को पिलिया रोग के लिए इस्तेमाल करते हैं। हल्दी के फुल को पीस कर लेप बनाकर रोगी व्यक्ति के शरीर एवं हाथ-पैर में लगाया जाता है। इसे नियमित रूप से लागाने से ठीक हो जाता है। यह एक देशी इलाज पद्धति है। जिसकी जानकारी गोंड़ी समाज के लगभग सभी लोगों को होती है। डॉक्टर के पास भी शायद इसकी जानकारी नहीं होगी। हल्दी के पुंगार (फूल) को सुखाकर भी रखते हैं। यह एक बेजोड़ और बड़ा ही महत्वपूर्ण औषधि है, जो जरूरत के वक्त बहुत ही फायदेमंद साबित होता है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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