मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित
आप सभी जानते हैं कि हमारे छत्तीसगढ़ में औषधि पौधों की कमी नहीं है और बहुत से लोग आज भी औषधि के रूप में पौधों का ही प्रयोग दैनिक जीवन में करते आ रहे हैं सदियों से ही किसी भी प्रकार की बीमारियों को दूर करने के लिए लोग प्रकृति पर निर्भर होकर जंगल झाड़ियों से औषधि पौधों को इकट्ठा कर प्रयोग करते हैं और बड़ी से बड़ी बीमारियों को दूर किया जा रहा है। अलग-अलग क्षेत्रों में फसल में लगने वाले कीड़े की रोकथाम के लिए अलग-अलग दवाइयों का प्रयोग किया जाता है विभिन्न प्रकार के दवाइयों का प्रयोग करते हुए कई जगह केवल रासायनिक दवाइयों का ही प्रयोग किया जाता है लेकिन उस दवाई का असर केवल फसल में लगने वाले कीड़े को भगाने तक ही सीमित नहीं रहता है। वह पौधे से लेकर जमीन की सारी उर्वरा शक्ति को समाप्त करने का भी काम करता है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए कई जगहों पर आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग अपने फसल में कीड़े लगने पर कर रहे हैं। फसल में लगने वाले कीड़े को भगाने में ऐसे औषधि कारगर साबित हो रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर महिला स्वयं सहायता समूह के द्वारा विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि बनाने का काम किया जाता है। जिसमें लोगों के बीमारियों को दूर करने के साथ-साथ फसल में लगने वाले कीड़े को भी भगाने की दवाइयों को बनाया जा रहा है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के लोग अधिक से अधिक इस प्रकार की दवाइयों का प्रयोग करते नजर आते हैं।
अभी तक आपने तुलसी नीम सीताफल की पत्ती धतूरे की पत्ती गोमूत्र आदि से बनाए हुए औषधि के प्रयोग के बारे में सुना होगा।आज हम आपको ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिलने वाले ऐसे पौधों के बारे में जानकारी देंगे जिसका प्रयोग ग्रामीण क्षेत्र के नागरिक अपनी फसल में कीट लगने पर करते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधों की अलग-अलग खासियत होते हैं एवं बहुत ही गुणकारी होते हैं। तीन ऐसे गुणकारी पौधे हैं,जिनका प्रयोग गांव में अधिकतर लोग अपने खेतों में कीट को भगाने के लिए करते हैं।
चरोटा लघु वन उपज के अंतर्गत आने वाला पौधा है, इसके पत्ती और इसके बीज का अधिक प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्ती का प्रयोग सब्जी के रूप में करते हैं। और इसके बीज को गांव में बनाए गए लघु वनोपज संग्रहण केंद्र पर बेच कर आमदनी प्राप्त की जाती है। खेतों में जब भी फसल में बंकी लगना शुरू होता है। इस पौधे को उखाड़ कर जड़ सहित इन्हें खेतों में जगह-जगह जमीन पर गाड़ दिया जाता है। इस पौधे की खुशबू से ही फसल में लगे हुए कीड़े भागने लगते हैं। और इसके प्रयोग से किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता और ना ही यह खेतों व जमीनों को कोई नुकसान होने देता है। बल्कि इस पौधे के प्रयोग करने से जमीन की उर्वरा शक्ति और बढ़ती है। इसी पौधे की तरह एक वृक्ष है, जिसका भी प्रयोग किया जाता है।
सलीहा नाम का वृक्ष गांव के जंगलों में बहुत अधिक पाया जाता है। बहुत ही मजबूत और टिकाऊ लकड़ी होने के कारण इसकी लकड़ियों से फर्नीचर बनाकर बाजारों में भेज कर अधिक मुनाफा कमाया जाता है। इसके पत्ती और छाल का प्रयोग बंकी को भगाने में करते हैं। जब किसी भी प्रकार के, फसल में कीट लगने लगते हैं, तब इसकी पत्तियों को अधिक मात्रा में वृक्ष से तोड़कर उस स्थान पर रखा जाता है जहां कीड़े लगे हुए होते हैं। उसी तरह उसके छाल को इकट्ठा कर खेतों में बिखेर दिए जाते हैं। जिसके सुगंध से फसल में लगे हुए कीड़े भागने लगते हैं और फसल को नुकसान होने से बचाया जाता है। सलीहा वृक्ष देखने में काफी लंबा और मोटा होने के कारण एक पेड़ से कई फर्नीचर तैयार किए जा सकते हैं। इसकी पत्तियां स्वाद में कसैले होते हैं लेकिन बहुत ही उपयोगी भी होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के औषधि वृक्षों और पौधों का प्रयोग बहुत देखने को मिलते हैं। रासायनिक दवाइयों के प्रयोग से पहले, इसी प्रकार के आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग किया जाता था।
इसी प्रकार एक और औषधि पौधा है। जिसे छत्तीसगढ़ी में कर्रा के नाम से जाना जाता है। यह एक विशालकाय वृक्ष तो नहीं होता लेकिन झाड़ी के समान होता है। इसके पत्तियों को प्रयोग में लाया जाता है। जब भी खेतों में फसल भूरे या सफेद दिखाई देने लगे तब इस कर्रा झाड़ी के पत्तियों को लाकर, उस खेतों में अलग-अलग जगहों पर इकट्ठा कर, रख दिया जाता है। ये इतने गुणकारी होते हैं कि कीड़े इनके सुगंध से ही भागना शुरू कर देते हैं और इस तरह से ग्रामीण क्षेत्रों के आदिवासी अपनी फसल को बंकी से बचाकर सुरक्षित रखते आ रहे हैं। इस प्रकार के औषधीय पौधों के प्रयोग करने से खेतों की मिट्टी में उपजाऊपन बढ़ता है और फसल भी अधिक प्राप्त होते हैं क्योंकि यह आयुर्वेदिक होता है।
श्रीमती सुख कुंवर ग्राम पंचायत कापुबहरा जिनकी उम्र लगभग 35 वर्ष है इनका मानना है कि इन्होंने अपने खेतों में केवल आयुर्वेदिक औषधियों का ही प्रयोग अधिक किया है। जब कभी भी खेतों के फसल को कीड़े नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं हम स्वयं ही घर पर आयुर्वेदिक औषधि तैयार करके उन फसलों पर छिड़काव करते हैं लेकिन आयुर्वेदिक दवाई तैयार करने में थोड़ा समय लगता है। इसलिए सबसे पहले कर्रा सलीहा और चरोटा जैसे पौधों का प्रयोग करते हैं और अपने फसल को कीड़ों से बचाते हैं। पौधों के पत्तियों का प्रयोग हमारे ग्राम कापूबहरा में और आसपास के क्षेत्रों में भी किया जाता है। रासायनिक दवाइयों का प्रयोग बहुत ही कम करते हैं।
रसायनिक दवाई के प्रयोग करने से केवल जीव-जंतुओं को ही नुकसान नहीं होता बल्कि फसल को भी नुकसान पहुंचता है। इसलिए सबसे पहले हमारे द्वारा आयुर्वेदिक कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। सुख कुंवर जी कहती हैं कि केवल हम ही नहीं हमारे ग्राम पंचायत कापूबहारा के अन्य जनजातियों के लोग भी इसी प्रकार के औषधियों का प्रयोग करते हैं। वह केवल धान के फसल को ही बचाने के लिए इस पौधों का उपयोग नहीं बल्कि अन्य फसलों में भी जब कीड़े लगते हैं। तो उन कीड़े को भगाने के लिए इन पौधों की पत्तियों का प्रयोग करते हैं। लेकिन अभी तक सबसे ज्यादा असर धान के फसल पर हुआ है क्योंकि खेतों में पानी भरे होते हैं। इसलिए इन पत्तियों को और छाल को रखने में आसानी होती है और इन पत्तियों और छाल के सुगंध पानी के माध्यम से आसानी से पूरे खेतों में फैल जाते हैं। इसलिए, इन पेड़ों के पत्तियों और छालों का प्रयोग कीड़े भगाने में करते हैं।
फसल में कीड़े लगने से पहले ही गांव में एचडीएफसी बैंक के द्वारा गांव के किसानों को फसल में कीट लगने से बचाने के लिए कुछ सामग्री वितरण किया गया जिसके प्रयोग से फसल के आसपास किसी भी प्रकार के कीट नहीं आते जिससे फसल सुरक्षित रहता है। यह लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य यह है कि, अधिक से अधिक आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग अपने फसलों पर करें ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहे और फसल को भी कोई नुकसान ना हो। और आने वाले भविष्य में भी अधिक फसल प्राप्त किया जा सके। रासायनिक चीजों के प्रयोग से फसल का उत्पादन तो अधिक होता है। लेकिन, इससे भूमि को नुकसान अधिक होता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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