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Writer's pictureShubham Pendro

भारत के मजदूरों के लिए वरदान है मनरेगा

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


आप भी ऐसे कई लोगो को जानते ही होंगे, जो कड़ी मेहनत करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं और मजदूरी करने के अलावा उनके पास अपना जीवन चलाने के लिए और दूसरा काम नहीं होता। आज हम ऐसे ही एक आदिवासी के बारे में आप लोगो को अवगत कराएंगे, जो काम करने में असमर्थ होने के वावजूद मेहनत करके अपना जीवन चला रहे हैं। उनकी परिस्थिति चाहे जैसे भी हो, उन्होंने मेहनत करना नहीं छोड़ा और अपने परिस्थिति से डटकर मुकाबला कर, आज भी आगे बढ़ रहे हैं।

लछन सिंह गोंड

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पोंडी ब्लाक के अंतर्गत आने वाला कोडगार इलाका, जहाँ लछन सिंह रहते हैं। जिनकी उम्र 65 वर्ष है और वे गोंड आदिवासी हैं। जो मजदुरी करके अपना जीवन-यापन करते हैं। लेकिन, कुछ समय पूर्व लछमन सिंह के साथ ऐसी घटना घटित हुआ, जिसके वजह से वे काम करने में असमर्थ हो गए। उन्होंने हमें बताया की, जब वे काम करके रात को घर वापस लौट रहे थे, तब अचानक से भालू ने उनपर हमला कर दिया और जैसे-तैसे करके उन्होंने अपनी जान तो बचा लिया। लेकिन, उनके बाएं हाँथ में बहुत गहरी चोट आई थी। जिसे ठीक करवाने में उन्हें दो साल बीत गए, लेकिन उनका हाँथ ठीक नहीं हो पाया और अंत में वे थक हार कर, घर आ गए। और धीरे-धीरे उनकी स्थिति ऐसी होती गई कि, उनका हाँथ काम करना ही छोड़ दिया। कुछ समय बाद, उन्हें सरकार द्वारा 5000 का राशि भी दिया गया और वन विभाग के रेंजर के तरफ से अतरिक्त 500 रुपए भी दिये गये। जिससे, उन्हें थोड़ी मदद हो पायी।


उन्होंने प्रशासन द्वारा किसी भी प्रकर की सहायता पर निर्भर ना होकर, कई मुश्किल कामों को आसान बनाया और कुछ-न-कुछ काम करके अपना जीवन चलाने की कोशिश करते रहे। और आज वे कड़ी मेहनत कर अपना जीवन-यापन करते हैं। इस घटना को हुए 15 साल हो चुका है और इतने सालों से वह अपनी बेबसी के साथ जी रहे हैं। लेकिन, गांव में मनरेगा के तहत उन्हें काम दिलाया गया। जिससे, कुछ हद तक उनकी मदद भी हुई। रोजगार गारंटी के तहत, उन्हें कुछ ऐसा काम दिया गया जिसे वे कर सके। पर दुःख की बात यह है कि, वे अब खेती-किसानी का काम नहीं कर सकते हैं। और आप जान ही रहे हैं कि, गांव क्षेत्र में ज्यादातर किसान, खेती करके ही अपना भरण-पोषण करते हैं। लेकिन, लछन सिंह की स्तिथि के कारण वह खेती किसानी का काम नहीं कर पाते हैं, वे पहले खेती-किसानी करके अपना जीवन-यापन करते थे। लेकिन, उस घटना के वजह से वे इतने बेबस हो गए कि वे दूसरे के घर में भी काम करने के लिए मजबूर हो गए हैं। उन्हें, प्रकृति के द्वारा जरूर नुकसान हुआ है। लेकिन, प्रकृति ही उन्हें जीवन जीने की राह भी दिखा रही है। सोचने वाली बात यह है कि, अगर मनुष्य के एक अंग पर भी क्षति पहुंच जाए, तो वह काम करने में असमर्थ हो जाता है। और हम लछन सिंह के जीवन के संघर्ष की कल्पना भी नहीं कर सकते।

हर महीने के 7 तारिक को, रोजगार दिवस मनाया जाता है

ग्रामीणों ने हमें बताए कि, मनरेगा के जो सदस्य होते हैं, वे लोग उनकी परिस्थिति को देखकर मनरेगा में काम करने के लिए, लछन सिंह को प्रेरित किए और उनके लिए जॉब कार्ड भी तैयार किए। जिससे वे मनरेगा में काम कर सकें, ताकि उनको कुछ हद तक मदद मिले और साथ-ही-साथ उन्हें वृद्धा पेंशन भी प्रदान की जाती है। जिससे उन्हें थोड़ी बहुत मदद मिल जाती है। उनकी परिस्तिथि को देखकर, उन्हें ऐसा काम सौंपा जाता है जिसे वे आसानी से कर सकें।


मनरेगा के अन्तर्गत, तालाब निर्माण कार्य में लछन सिंह सिर्फ मिट्टी को बराबर करने का काम करते हैं, और उनसे जितना हो सकता है वह मिट्टी पटिन करने में लगे रहते हैं और गड्ढे के मिट्टी को बराबर करते हैं। वे अपना ज्यादातर समय, मनरेगा के कामों में निकालते हैं। मनरेगा में काम करने के बाद, उनकी स्थिति पहले से बेहतर हो रही है और उनकी जिंदगी में यह सुधार सिर्फ मनरेगा में काम करके और उनकी कड़ी मेहनत के वजह से हुआ। मनरेगा में, सभी लोगों को 100 दिन का रोजगार गारंटी प्रदान किया जाता है, जिससे उन लोगों का जीवन-यापन आसान हो जाता है।


लछन सिंह बताते हैं कि, हाथ में चोट लग जाने के कारण, वे वजनदार काम नहीं कर पाते और ना ही कहीं बाहर काम करने जा पाते हैं और 200-300 रुपये में अपना घर चलाना कितनी मुश्किल होता है। यह आप लोगों को भी मालूम होगा। लेकिन, अब स्थिति के अनुसार इतना पैसा भी मेरे लिए बहुत है। इसके अलावा, वह जंगल से प्राप्त सभी चीजों का प्रयोग कर अपना जीवन चला रहे हैं। उन्होंने अपनी परिस्थिति से हार नहीं मानी और आज वह अपने मेहनत से अपनी स्थिति को सुधारने में सक्षम हैं। उनका कहना है कि, अगर हम परिस्थिति को देख कर या उससे डर कर भागेंगे, तो हम आगे नहीं बढ़ सकते। इसलिए, हमें उन तमाम परेशानियों से लड़ना चाहिए, ताकि हमें जिंदगी जीने का हौसला मिल सके और आज मैं वही कर रहा हूँ। अपने परिस्थिति से लड़कर आगे बढ़ रहा हूँ, दुनिया में ऐसे बहुत से लोग रहते हैं, जो परिस्थिति का डट कर सामना करते हैं, तो कोई लोग परिस्थिति से लड़कर, हार मान कर बैठ जाते हैं।


इनकी परिस्थिति और कड़ी मेहनत को देखकर यह सीख तो जरूर मिली है कि, हमें परिस्थिति को देखकर हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि उससे हमें डटकर मुकाबला करना चाहिए। परिस्थिति को देखकर घबराना, समस्या का समाधान नहीं होता है। यह उन लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो किसी भी अंग के क्षति हो जाने पर प्रशासन और समाज पर निर्भर रहते हैं और जीवन जीना छोड़कर जीवन को कोसते हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


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