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आइये जानते हैं, उड़द से बनने वाले एक अद्भुत व्यंजन, मोंगरी के बारे में।

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


आदिवासी प्रकृति से जुड़े हुए लोग हैं, जिन्हें पर्यावरण में पाये जाने वाले पेड़-पौधे, जड़ी-बुटी तथा खाद्य-पदार्थों का उत्तम ज्ञान होता है। आदिम काल से ही लोग, अपने खान-पान में, कंद-मूल, फल-फूल तथा पत्तियों का उपयोग करते चले आ रहे हैं।


आइये हम आपको बताते हैं, कि मोंगरी कैसे बनाई जाती है?


आपने, "उड़द" का नाम तो सुना ही होगा। जो एक दलहनी पौधा है, जिसके बीज का उपयोग बड़े-बड़े होटलों में, “बड़ा” बनाने मे किया जाता है। आदिवासी इस उड़द से, कई प्रकार के खाद्य-पदार्थ बनाते हैं, जिनका ज्ञान केवल और केवल आदिवासियों को ही होता है, जिसमें से एक है, “मोंगरी”

उड़द की पिसाई, सिल-लोढ़ा में करते हुए

मोंगरी बनाने के लिए, सर्वप्रथम उड़द के बीज को जांता में पिसाई करते हैं। जिससे वह दाल के रूप में, दो भागों में विभक्त हो जाता है। अब इसे पानी में दो-तीन घंटे के लिए भीगा दिया जाता है, ताकि ये मुलायम हो जाये। इसके पश्चात, इसे सिल-लोढ़ा में पिस कर चिकना कर लेते हैं। अब यह मोंगरी बनाने के लिए तैयार हो चुका है।


यहां के जंगलों में, कई प्रकार के पौधे उपलब्ध हैं। जिनका उपयोग आदिवासियों द्वारा सब्जीयों के रूप में करते हैं। जिसमें से एक, "क़च्छर” का पौधा है। यह जंगलों तथा रोड किनारे बरसात के दिनों में आसानी से देखने को मिलता है। जिसकी पत्ति बड़ी-बड़ी होती है, तथा हर शाखा में, सिर्फ एक पत्ति होती है। इसी पत्ति का प्रयोग मोंगरी बनाने के लिये किया जाता है।


कंचन बाई बिंझवार जी ने बताया, कि हमारे गांव में इस पौधे के शाखा को काट कर सब्जी बनाते हैं। और इसके पत्तियों का इस्तेमाल, मोंगरी बनाने मे करते हैं। इसके लिए हम क़च्छर के पत्तियों को तोड़ लाते हैं और उड़द के पिसे हुये पेस्ट को, इसके ऊपर पुरी तरह से फैला देते हैं। अब एक ओर से पत्ति को धीरे-धीरे मोड़ते जाते हैं। जिससे यह एक बेलन की तरह बन जाता है। अब इसे तावे में तेल डालकर, हलकी आंच मे पकाते हैं। इस तरह से, मोंगरी बन के तैयार हो जाता है। तत्पश्चात इसे छोटे-छोटे टुकड़े मे काट लेते हैं। और खट्टे पदार्थ जैसे :- आम, अमारी-भाजी या मट्ठा में, मिलाकर इसकी सब्जी बनाते हैं। मोंगरी सब्जी हम आदिवासियों को बहुत पसंद है, हम इसे ज्यादातर त्यौहारों में बनाते हैं। क़च्छर के शाखाओं को भी सब्जी के लिये उपयोगी माना जाता है तथा इससे कई प्रकार के औषधि भी बनाई जाती हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


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