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जानिए ये कौनसी पूजा है जिसको किये बिना छत्तीसगढ़ के आदिवासी खेतों में फसल बोना शुरू नहीं कर सकते

छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला एक औद्योगिक शहर के रूप में प्रसिद्ध है। लेकिन, यह भी उतना ही सच है कि जिले के बड़े हिस्से ऐसे हैं जो जंगलों से आच्छादित हैं। आदिवासी इन वन क्षेत्रों में सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं। वनांचल पहाड़ों पर निवास करने वाले आदिवासी समुदायों के लोग अपने संस्कृती और आदि काल से चली आ रही परंपरा को बहुत महत्व देते हैं l उनके हिसाब से उनकी संस्कृती से ही उनकी पहचान होती है। उनके परंपराओं का एक पहलु है अक्ती पुजा जो उनके और प्रकृति के बीच की घनिष्ठ संबंध को उजागर करता है।

बाँस से बानी छोटी टोकरी में धान भरा जाता है और ऊपर गोबर का लेप लगाया जाता है

अक्ती पुजा जेठ महीने में, अर्थात मई- जून के माह में हिंदू पंचाग अनुसार शुक्ल पक्ष एकादशी तीथौ के शुभ अवसर पर सामूहिक रूप से मनाया जाता है l इस अक्ती पुजा में महिलाओं का जाना प्रतिबंध होता है, केवल पुरुष ही जाते हैं l इस त्योहार में बहुत सारे रस्में होती है जिसको करने के बाद ही आदिवासी किसान अपने खेतों में हल चलाने तथा बुवाई का कार्य प्रारंभ करते हैं l


अक्ती त्योहार कैसे मनाया जाता है :

आदिवासी समुदायों में अक्ती त्योहार विशेष होती है l इस पुजा में प्रत्येक घरों से बाँस से बना छोटा टोकरी या धान मापने वाला कुरो में धान भरकर, उसके ऊपर गोबर का लेपन कर दिया जाता है। इसके बाद उस टोकरी में गंगा जल में डुबाया हुआ चंदन रख देते हैं l पूजा के समय इस टोकरी के साथ एक नारियल भी चढ़ाया जाता है। सभी लोग एक -एक करके अपने-अपने टोकरी को देवालय में बैठे बैगा के पास जाकर रखते जाते हैं जिसके बाद बैगा महाराज आगे की रस्म सुरु करते हैं l


सबसे पहले देवालय में स्थित सभी देव स्थल का सामने दीया और अगरबत्ती जलाकर पूरे विधि- विधान से पुजा अर्चना की जाती है l इस पुजा में बंगला पत्ती, फूल, लौंग, इलाइची, भुना हुआ महुआ का फूल, धान का भूसा, बेल का फल, सरई पत्ती, महुवा रस, शुद्ध पानी, हीन्ग्लाज की डाल, दोना पत्ता आदि इस्तेमाल होता है l इन सभी को देवताओ को चढ़ा कर पुजा संपन्न किया जाता है l

ठाकुर देव की पुजा अर्चना करते हुए बैगा महाराज जी

हल चलाने और खेती बुवाई की रस्म :

इस त्यौहार के माध्यम से लोग देवी-देवताओं से प्रार्थना करते हैं की वे ग्रामीणों को अच्छी फसल का आशीर्वाद दें। इसलिए, एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान कृषि तकनीकों की नकल करना है। इस रस्म में पाँच लोगों की ज़रूरत होती है जिसमे एक व्यक्ति नागर लोहा को पकड़ कर ज़मीन को हलका- हलका खेत की जोताई जैसे आकर वाला खोदते हुए देवालय के पाँच बार परिक्रमा करते है l अन्य चार लोग उसके पीछे छोटा लकड़ी को पकड़ कर हल चलाते हुए और धान का बुनाई करते हुए परिक्रमा को पूरा करते हैं फ़िर एक जगह पर खड़े हो जाते हैं l इस तरह वे यह दिखावा करते हैं कि वे खेत जोत रहे हैं और फसल लगा रहे हैं। रस्म के पुरे होने पर, उन पांच लोगों को पानी पिलाया जाता है। वहीं दुसरी ओर बैगा महाराज जी बेल फल को बरहा अर्थात सुवर, बकरा, कुत्ता, शेर, सुर बार, के नाम से पीछे फेकते जाते हैं l उधर उस बेल फल को मारने के लिए 3 से 4 लड़के खड़े रहते हैं जो बकरा, सुर बार, के नाम वाले फल को छोड़कर बान्की सभी बेल फल को मारते जाते हैं l फिर जीतने भी इस रस्म में भाग लिए रहते हैं सभी को महुवा का भुना हुआ फूल और नारियल प्रसाद दे कर उनको बैठाया जाता हैl

बैगा महाराज नारियल का प्रसाद और पाँच मुठठी धान अपने पीछे की ओर से आंचल या गमछा में डालते हैं।

अंत में बैगा महाराज जी सभी को एक-एक करके उनके द्वारा लाए हुए नारियल का प्रसाद और पाँच मुठठी धान अपने पीछे की ओर से उनके आंचल या गमछा में डालते हैं। इसके बाद सभी को दलदली देवालय का शुद्ध पानी दीया जाता है l इस पानी को सभी अपने-अपने घर ले जाकर छान्ही (छप्पर) के ऊपर डाल दे ते हैं l ऐसा माना जाता है की इससे घर की शुद्धि करण हो जाती है l इस प्रकार से यह पूजा पूर्ण किया जाता है l


इस प्रकार हमने देखा की ऊर्जा नगरी कोरबा ज़िले की आदिवासी समुदायों में अक्ती पुजा को विशेष महत्व दिया जाता है l इसमें गाँव के देवालय पर स्थित मुख्य स्थान जहां पर ठाकुर देव स्थान ग्रहण करते हैं उस स्थान को पवित्र स्थल माना जाता है। वहाँ पर कोई भी आदिवासी समुदायों के लोग जुता-चप्पल पहनकर नहीं जाते हैं ल यह अक्ती पुजा उनके लिये विशेष इस कारण होता है क्योंकि इसके बीना वे अपने खेतों में हल और धान बुवाई का कार्य नहीं करते हैं l जो उनको बैगा महाराज जी द्वारा पाँच मुठ्ही धान दिया जाता है उसी को अपने घर की धान में मिलाकर बुवाई किया जाता है l यह त्योहार अलग-अलग गांवों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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