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मुर्गी पालन कर स्वरोजगार के लिए लोगों को प्रेरित कर रहा है यह आदिवासी युवक

कोरबा जिले के ग्राम पंडरीपानी निवासी सागर सिंह नागदेव चेरवा जनजाति के यवक हैंl लगभग पूरे गाँव में इस जाति के लोग रहते हैं। यह गाँव तीन तरफ से पहाड़ों से गिरा हुआ हैl


इस गाँव में चार-पाँच लोग ही सरकारी नौकरियां कर रहे हैं, बाकी लोग पढ़ लिख कर भी बेरोजगार हैं। पूरे देश के युवाओं की तरह यहाँ के युवा भी पढ़ने लिखने के बाद अपना पूरा समय, सिर्फ़ सरकारी नौकरी हासिल करने में लगा देते हैं। उनका यही सोचना है कि, जब पढ़ाई लिखाई में पैसा और समय खर्च किया ही है तो फ़िर सरकारी नौकरी के अलावा कोई और काम क्यों करें?

सभी लोगों को नौकरी तो नहीं मिल सकती, जिनको मिलती है उनका गुजर-बसर तो अच्छा हो जाता है। परंतु जिनको नहीं मिलती उन्हें काफ़ी संघर्ष करना पड़ता है, वे वापिस अपने पैतृक काम, खेती किसानी करने लगते हैं। कई लोग मज़बूर होकर शहरों में मज़दूरी करने जाते हैं।

गाँव मे प्रतिभा एवं कुछ कर गुजरने वाले युवाओं की कमी नहीं है लेकिन सही गाइडेंस नहीं मिलने के कारण वे या तो भटक जाते हैं, या फ़िर हिम्मत हार जाते हैं। यह तो सर्वत्र ज्ञात है कि सफल वही होते हैं जो असफलताओं से हारते नहीं और कुछ अलग करते हैं।

एक ऐसा ही प्रेरणादाई उदहारण प्रस्तुत कर रहे हैं इस पंडरीपानी गाँव के सागर सिंह नागदेव जी। सागर जी आठवीं तक ही पढ़ाई कर पाए हैं, लेकिन कम पढ़े लिखने के बावजूद उन्होंने अपने सपनों को मरने नहीं दिया और जीवन में कुछ हासिल करने के अपने जूनून को जारी रखे हुए हैं। सागर जी ने व्यवसाय के जरिए गाँव वालों को ग़लत साबित किया, जो यह धारणा रखते थे कि सिर्फ़ सरकारी नौकरी से ही सम्मान मिलता है। सागर जी ने गाँव में ही पोल्ट्री फॉर्म खोल लिए हैं, और मुर्गियां बेचकर अच्छा खासा कमा लेते हैं।

सागर सिंह जो अपनी फार्म में मुर्गियों की निरीक्षण करते हुए

वे पढ़ाई छोड़ने के बाद से ही यह ठान लिए थे कि मुर्गी पालन करेंगे, इसके लिए उन्होंने 'ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान' (RSETI) से ट्रेनिंग प्राप्त की।


RSETI को बैंकों द्वारा भारत सरकार और राज्य सरकार के सक्रिय सहयोग से संचालित किया जाता है। बेरोजगारी की समस्या को कम करने के लिए ग्रामीण बीपीएल युवाओं के आवश्यक कौशल प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन सुनिश्चित करने के लिए के रूप में डिजाइन किए गए RSETI एक समर्पित संस्थान है।

इस संस्थान में सामान्यतः 15 दिनों की ट्रेनिंग होती है, कोरबा में मौजूद इस संस्थान का संचालन स्टेट बैंक द्वारा किया जाता है एवं ट्रेनिंग प्राप्त कर लिए युवाओं को 50 हज़ार से एक लाख तक का ऋण भी मुहैया कराया जाता है।


सागर जी के पिता भी यहीं से बकरी पालन का प्रशिक्षण लिए हुए हैं और अब बकरियाँ पालकर अपना जीवन बसर करते हैं। इस प्रशिक्षण के प्रति आभार व्यक्त करते हुए सागर जी कहते हैं कि "यदि यह ट्रेनिंग करने नहीं जाते तो अन्य लोगों की तरह मुझे भी मज़दूरी करने के लिए किसी दूसरे शहर में पलायन करना पड़ता। अब इस व्यवसाय से मुझे काफ़ी लाभ हो रहा है, सस्ते होने के कारण लोग पोल्ट्री/बायलर मुर्गियों को खरीदना पसंद करते हैं। आसपास के गाँवों में एकमात्र मेरा ही पोल्ट्री फार्म होने के कारण भी मेरा धंधा अच्छा चल जाता है। मेरे घर के सभी सदस्य अब मेरे पिताजी के बकरी पालन तथा मेरे मुर्गी पालन में सहयोग देने लगे हैं। सुबह से लेकर शाम तक हम सभी कोई इसी व्यवसाय में लगे हुए रहतेहै। हमारा जीवन भी अब सही रूप से चलने लगा है।"


सागर जी से प्रेरित होकर कई नवयुवक भी छोटे - छोटे स्तर के व्यवसाय चला रहे हैं। गाँवों तथा जंगलों में मुर्गी पालन, बकरी पालन जैसे अनेकों व्यवसाय अच्छी तरह से चल सकते हैं। यही कुटीर उद्योग आज के जमाने में रोजगार के सबसे अच्छे विकल्प हैं। इन उद्योगों को रोजगार का जरिया बनाकर, लोग सम्मान के साथ कमाई कर सकते हैं।


इस कोरोना काल में हमने काम के सिलसिले में दूसरे शहरों में गए मजदूरों की भयावह स्थिति को देखा है। उस स्थिति में दोबारा न जाने के लिए लोगों को सागर जैसे युवाओं से प्रेरणा लेकर गाँवों में ही स्वरोजगार के तरीकों पर विचार करना चाहिए। सरकारों को भी स्वरोजगार का ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l




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