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Writer's pictureKhabar Lahariya

टीकमगढ़: कुपोषण से भयावह हो रहे हैं आदिवासी बस्ती के बच्चों के हालात

Updated: Dec 1, 2021

टीकमगढ़ जिले के अनगढ़ा आदिवासी बस्ती में कुपोषण ने अपना पैर पसार लिया है। अनगढ़ा की रहने वाली फूलवती आदिवासी ने बताया कि हमारा लड़का आठ माह का हो गया है और शुरू से ही वह कमज़ोर है। आंगनवाड़ी से इनके लिए पजीरी के पैकेट और खिचड़ी के और सतुआ भी मिलता है। मंगलवार को आंगनवाड़ी केन्द्र पर जाते हैं और ले आते हैं। किसका बच्चा किस तरह से है और किस तरह की परेशानी है। लोगों को किसी भी प्रकार का सुझाव नहीं देती हैं किस तरह से बच्चों की देखरेख और सुरक्षा करने हैं। हम आदिवासी लोग हैं मजदूरी करके अपना भरण-पोषण करते हैं और जंगल जाते हैं लकड़ी लेने के लिए अपने बच्चों को घर पर छोड़ जाते हैं अगर काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या। इस तरह से कई लोगों ने अपनी समस्या बताई।

इस मामले को लेकर बृजेश त्रिपाठी, जिला कार्यक्रम अधिकारी टीकमगढ़ से मिलने और फोन पर बात करने की कोशिश की गई। 18 अगस्त से 26 अगस्त तक कार्यालय जाकर हमको दो तीन घण्टे इंतजार करवाया गया मिलने की उम्मीद में लेकिन जब वह मिलते तो बोलते अभी टाइम नहीं है, कल आना, परसो आना। इस तरह के गैर-जिम्मेदार अधिकारी कैसे कुपोषण की स्थिति को सुधार पाएंगे। हम समझ रहे हैं कि वह अपनी जवाबदेही से कतराते नजर आए हैं।


कुपोषण को दूर करने के लिए टीकमगढ़ जिले के 1718 (1538 आंगनवाड़ी केंद्र और 240 मिनी आंगनवाड़ी केंद्र) आंगनवाड़ी केंद्रों पर नाश्ता पोषम आहार बंटाने में प्रति माह 2 करोड 29 लाख रुपए का बजट भी खर्च किया जा रहा है. यह बजट आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पोषण आहार देने के लिए खर्च किया जाता है।


पोषण अभियान के तहत वर्ष 2022 तक 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्टंटिंग को 38.4% से 25% तक कम करने का लक्ष्य है। कुपोषण के विषय से संबंधित एक अन्य प्रश्न पर मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अल्पपोषण की व्यापकता 22.9% थी, जो अब (20.2%) हो गई है।


मध्यप्रदेश में कुपोषण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जो कि सरकार समेत आम नागरिकों के लिए चिंता का विषय है। जी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार महिला एवं बाल कल्याण विभाग के एक सर्वेक्षण से पता चला है की राज्य में 70 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हो गए हैं। इन बच्चों में नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे शामिल हैं। अध्ययन के अनुसार, एक तिहाई से अधिक बच्चे त्वचा और हड्डी रोग से पीड़ित हैं। गंभीर रूप से कुपोषित 70 हजार बच्चों में 6000 बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) में भर्ती किया गया है। इनमें नवजात से लेकर 6 वर्ष तक के आयु के बच्चे शामिल हैं।


नोट:- यह लेख ख़बर लहरिया की अनुमति के साथ पुनर्प्रकाशित किया गया है।




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