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छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्यों करते हैं दातुन का इस्तेमाल, क्या हैं विभिन्न प्रकार के दातुनों के फायदे?

आदिवासियों को अपने जंगलों के पेड़ पौधों से बहुत लगाव है, और हो भी क्यों न? वे अपने रोजमर्रा के जीवन की हर ज़रूरी चीज़ इन पेड़ पौधों से जो प्राप्त कर लेते हैं। आजकल लोग अपने दांतों को साफ़ रखने के लिए ब्रश, टूथपेस्ट, माउथ क्लीनर आदि का प्रयोग करते हैं। लेकिन प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने दांतों की सफ़ाई जंगल के दातुनों से करते आए हैं।


आज की तरह पुराने जमाने में सेंसटिविटी ठीक करने या मुहँ फ्रेश करने के टूथपेस्ट नहीं मिलते थे, फिर भी आदिवासियों के दांतों में न सेंसिटिविटी की समस्या थी, न ही पीले दांतों की, और न ही सांसों में बदबू की समस्या होती थी। विभिन्न प्रकार के दातुनों से ही वे अपने मुहँ और दांतों का अच्छे से ख्याल रख लेते थे।


दातुन नीम या अमरूद जैसे किसी पेड़ की पतली सी टहनी होती है। 12 से 15 सेमी की एक टहनी तोड़कर पहले उसके एक सिरे को चबा लिया जाता है और फिर उसी चबाए हुए हिस्से से सभी दांतों को साफ़ किया जाता है। दातुन को चबाने पर टहनी के चमड़ी से जो रस निकलता है वह दांतों और मसूड़ों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। अलग-अलग पेड़ों के दातुनों के अलग-अलग फ़ायदे होते हैं। गाँव के आदिवासी बुजुर्गों ने विभिन्न प्रकार के दातुनों के फ़ायदों के बारे में बताया।

विभिन्न प्रकार के दातुन

महुआ का दातुन : मधूक या महुआ के रासायनिक संगठन में सैपोनिन तत्व पाया जाता है, इसका प्रभाव विषैला होता है। लेकिन टहनियों में यह तत्व कम पाया जाता है। महुआ के टहनी से दातुन करने पर दांतों का हिलना, दांतों से रक्त आना, मुंह की कड़वाहट, मुंह और गला सुखने की परेशानियाँ, आदि से निजात मिलता है। महुआ के दातुन को नियमपूर्वक करने से स्वप्नदोष, शीघ्रपतन आदि बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है।


अमरुद का दांतुन : सप्ताह में एक या दो दिन सुबह-सुबह अमरूद के दातुन करने से मुहँ से दुर्गंध की एवं जीभ के छालों की समस्या का निदान हो जाता है। अमरूद की टहनी का दातुन करने से दांतों में एक अलग सी चमक दिखाई पड़ती है।


साल का दातुन : साल एक औषधीय गुण वाला वृक्ष है। यह छत्तीसगढ़ के अधिकतर जंगलों में पाया जाता है। इसका दांतुन करने से पेट में हो रही गड़बड़ियों से आराम मिलता है।


नीम का दातुन : नीम एक बहुतायत में पाया जाने वाला वृक्ष है। यह वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर होता है इसलिए आदिवासी इसका इस्तेमाल अनेकों प्रकार से करते हैं। नीम के दातुन से ब्रश करते समय दातुन से निकले रस को निगल लेना चाहिए। इससे पेट की बीमारियां दूर होती हैं। नीम के दातुन से दांतों में मज़बूती आती है एवं जीभ भी साफ़ रहता है। नीम के दांतुन को चबाने से मसूड़ों में मजबूती आती है। एवं उनमें मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।


हर सुबह दातुन करने से पूर्व इस बात का विशेष ध्यान में रखना चाहिए कि दातुन खडे़ - खडे़ या टहल कर नहीं करना चाहिए। दातुन करने का सही तरीका यह है कि दातुन हमेशा पांवों के बल उकडू बैठकर करना चाहिए इससे दातुन का लाभ शरीर के सभी अंगों को प्राप्त होता है। दातुन से दांतों को साफ़ कर लेने के पश्चात उसी दातुन को बीच से चीरकर उन दो लकड़ियों का उपयोग से जीभ की सफ़ाई करनी चाहिए। दातुन करके हमेशा ताजे पानी से कुल्ला करना चाहिए, इससे शरीर में स्फूर्ति आती है।


जैसे-जैसे आदिवासी समुदायों में आधुनिकता का प्रवेश हो रहा है। वैसे-वैसे गाँवों तथा जंगलों में रहने वाले आदिवासियों की जीवनशैली में भारी बदलाव आ रहा है। पहले लोग सिर्फ़ दातुन का ही इस्तेमाल करते थे परंतु आजकल अधिकतर लोग स्टाइल और दिखावे के चक्कर में ब्रश एवं टूथपेस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं। टूथपेस्ट के केमिकल और ब्रश के उपयोग से मसूड़े और दाँत कमज़ोर होते जा रहे हैं। पहले जहाँ जीवन भर लोगों के दाँत सुरक्षित रहते थे, अब हर दूसरे तीसरे युवा को दाँत दर्द की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जिन्हें दातून के लाभों के बारे पता है, वे अभी भी पेड़ों की टहनियाँ तोड़कर दातुन ही करते हैं। टूथपेस्ट और ब्रश सिर्फ़ बाज़ारीकरण का देन है, लोगों को इस दिखावे की संस्कृति से निकलकर अपने पारम्परिक ज्ञान को फ़िर से अपनाना चाहिए।


यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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