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रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से आदिवासी किसान और मज़दूर हुए परेशान

हमारे भारत देश में सभी ऋतुओं का अलग-अलग महत्व है, और इन सभी ऋतुओं कि कुछ अलग ही खासियत है, हमारा भारत देश ही एक मात्र ऐसा देश है, जहां 4 ऋतु होते हैं, और इन पूरे मौसम का पूरा आनंद लोग लेते हैं, चारों मौसम में लोगों के रहन-सहन तौर तरीके यहां तक की खानपान में भी बदलाव देखने को मिलता है।


सभी मौसम में लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव होता है, लेकिन गर्मी के मौसम में माहौल पूरी तरह से बदल जाता है। अगर तापमान मध्यम रहा तो लोगों के आने जाने या किसी भी कार्य को करने में इतना फर्क नहीं पड़ता है, जितना फर्क अगर तापमान में वृद्धि हो जाए तो होता है, इस साल पिछले साल की अपेक्षा गर्मी बहुत अधुक बढ़ी है, इस बढ़ती हुई भीषण गर्मी में लोगों का आना जाना दुश्वार हो चुका है, लोग दिन में काम करने की अपेक्षा रात में काम करना पसंद कर रहे हैं। इस साल के गर्मी ने 7 साल के रिकॉर्ड को थोड़ा है, पिछले 7 सालों में इतनी भीषण गर्मी नहीं पड़ी जितनी गर्मी इस साल महसूस किया जा रहा है। तापमान में वृद्धि होने पर सबसे अधिक उन लोगों को परेशानी हो रही हैं, जो लोग दिन में रोजी मजदूरी का काम करते हैं, दिनभर इस तपती हुई धूप को सहन कर शाम या रात को अपने घर वापस लौट कर आते हैं, और अपने घर परिवार का पालन पोषण करते हैं।

गर्मी के कारण गाँव में पसरा सन्नाटा

कोरबा जिले के ग्राम पंचायत कोड़गार के रहने वाले श्री मंगल सिंह बताते हैं कि वे मिस्त्री का काम करते हैं, अलग-अलग जगहों पर जाकर मकान बनाने का काम करते हैं, दिनभर तपती धूप में भीषण गर्मी को सहन करके अपना काम पूरा करते हैं, घर के अंदर जो लोग रहते हैं, वे लोग भी इस गर्मी को सहन नहीं पहन कर पा रहे हैं, रोजी मजदूरी करने वाले लोगों पर इसका प्रभाव अधिक पड़ रहा है। जो लोग 8:00 बजे से लेकर 5:00 बजे तक अपना काम किया करते थे अब वह सूरज उठने से पहले अपने काम की शुरुआत करते हैं, और जैसे ही धूप बढ़ती है, अपने अपने घर चले जाते हैं, इस बढ़ती हुई भीषण गर्मी की वजह से हमारे काम में भी रुकावट आने लगी है। क्योंकि इस धूप में अधिक समय तक काम करने पर लू लगने की समस्या बढ़ जाती है और और लोगों द्वारा काम भी कम करवाया जा रहा है, क्योंकि अधिक धूप के कारण पानी की समस्या भी होने लगी है।

श्रीमती गेंद बाई ग्राम बिंझरा, जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ की निवासी हैं, पेशे से साग सब्जी बेचने का काम करती हैं, इनका कहना है कि "पिछले साल की अपेक्षा तापमान इतना बढ़ रहा है, कि हमारे बाड़ी में लगाए गए सब्जियों की खेती पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है, पानी की कमी होने के साथ-साथ सब्जियां भी झुलसने लगी हैं। साग सब्जियां बेचकर हम अपना घर चलाते हैं, यही हमारा एकमात्र आय का साधन है, वह भी अब अधिक तापमान बढ़ने की वजह से नुकसान होने लगा है, नदी के किनारे हमने सब्जी की खेती की थी लेकिन अब नदी भी बढ़ते हुए तापमान के साथ सूखने लगे हैं, सब्जियों की खेती के लिए नदी का पानी ही सिंचाई का एकमात्र साधन है, नदी के पानी का प्रयोग कर हम अपने सब्जियों की खेती करते हैं। अब तो खुले में घूम रहे जानवरों पर भी इस तापमान का बहुत गहरा प्रभाव पड़ रहा है, आसपास की ज़मीन भी सूखने लगी है, छोटे-छोटे पेड़ पौधे और घास झुलसने लगे हैं, जिसकी वजह से जानवरों को चारा नहीं मिल रहा है, आवारा जानवरों को चारा नहीं मिलने के कारण वे हमारे खेत-बाड़ियों में घुसकर साग सब्जियों को नुकसान पहुंचाते हैं। मई-जून के महीने में कभी कभी बारिश होने के कारण जमीन में घास उग जाते हैं, लेकिन इस साल इन महीनों में एक भी दिन बारिश नहीं हुई जिसके कारण जानवरों को अपने चारा के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। और साथ ही साथ नदी, तालाब, नाला सभी सुखने लगे हैं, पीने के लिए पानी नहीं मिल पाने की गंभीर स्थिति बनी हुई है, अगर इससे अधिक तापमान में वृद्धि हुई तो लोगों के साथ-साथ जानवरों पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।"


भीषण गर्मी पड़ने की वजह से गली मोहल्ले में लोगों का आना जाना भी बहुत कम हो चुका है। शाम ढलते ही लोग अपने घरों से निकलते हैं। सुबह सूरज उगने से लेकर सूरज ढलने तक लोगों का बाहर आना-जाना बंद होता है। कोई भी कार्य वह धूप में नहीं कर रहे हैं, आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी लोग सुबह भोर 4 बजे उठकर सूरज निकलने से पहले ही अपना काम खत्म कर लेते हैं, जैसे जंगलों से लकड़ी ईकट्ठा करना, आदिवासी महिलाएं भोर में 5 बजे ही अपने-अपने घरों से निकलकर जंगल जाकर लकड़ी ईकट्ठा कर घर वापस आ जाते हैं, इससे उनको धूप का प्रभाव इतना नहीं पड़ता लेकिन जैसे-जैसे धूप बढ़ते जाता है, तापमान भी बढ़ने लगता है, घर के अंदर होने के बावजूद इस चिलचिलाती हुई धूप का असर लोगों पर होता है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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