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गरियाबंद जिले में हरा सोना को लेकर ग्रामीणों के बीच तनाव

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों व वन अंचलों में बहुत जोरों से तेन्दू पत्ता तोड़ाई चल रहा है। पहले, लोग कड़ी धुप में जंगल के पत्थरीली रास्तों से गुजर कर पत्ता तोड़ाई करते थे और उन्हें कई समस्याओं का समाना भी करना पड़ता था। और कभी-कभी जंगली जानवरों से आमना-सामना होता था। लेकिन, वर्तमान में लोगों की आवाजाही जंगल के चारों ओर होने से वन्यजीव जंगलों में विचरण नहीं कर पाते हैं। जिससे जानवरों को समस्याएं होती है। और आए दिन जंगली सूअरों का झुण्ड दिखाई देता है। जिस कारण जन-धन की क्षति होने की सम्भावना रहती है। यहाँ के लोग सुबह से जंगल की ओर रुख करते हैं, जहां बुढ़े से लेकर जवान, पुरुष व महिलाएं अपनें परिवार सहित तेन्दु पत्ता को संग्रहित करतें हैं। और आते-आते समय कब बीतता है, पता ही नहीं चलता। फिर, घर में खाना खाने के बाद परिजनों सहित पत्तों को बधा (गड्डी) में तैयार किया जाता है। यह कार्य दिन भर चलता है और शाम को गड्डियों को फडी (समतल जमीन) में जाकर सुखाया जाता है।

तेन्दु पत्तों की गड्डी बनाते हूए

तेन्दु पत्ता जंगल, मैदान और पहाड़ी क्षेत्रों में मिलता है। यहां के लोग बुटा वाले व छपेरा तेन्दु पत्ते, जो दिखने में अच्छा होता है, उसकी तोड़ाई करते हैं। इस वर्ष तेन्दु पत्ते की तोड़ाई, मौसम के चलते सही समय पर नहीं हो पाई। जिसके चलते पत्तियों में दाग लग गए और उनकी गुणवत्ता में मुलायमपन और मोटापन की कमी देखी जा रही है। कहीं पर पत्ते अच्छे हैं, तो कहीं पर नहीं हैं। इसका कारण बेमौसम बारिश का होना है। हर वर्ष, एक मई को तोड़ाई शुरू हो जाती थी। लेकिन, इस वर्ष आगे बढ़ गया और तेन्दु पत्ता संग्रहण करने वालों की चिंता बढ़ गई। यहां छः मई से पहले, कुछ जगहों पर तोड़ाई देखा गया तो अफरा-तफरी मच गया। और कुछ गांवों ने, सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्रों को सुचना जारी कर दिया गया कि, हमारे क्षेत्र में हरा सोना न तोड़ें। जिससे निकटवर्ती गांव वालों के बीच मन-मुटाव हो गया।

तेन्दु पत्तों को सुखाते हुए

तेन्दु पत्ता (हरा सोना) का उपयोग, बीड़ी लपेटने के लिए किया जाता है। भारत के पूरे जंगलों से सालाना 200 करोड़ अमेरिकी डॉलर मुल्य के 3,50,000 टन पत्तियों का संग्रह किया जाता है। यह एक बड़ी आबादी के लिए राजस्व का मुख्य स्त्रोत है, जो इन पत्तों को इकट्ठा कर अपना जीवन-यापन करते हैं। तेन्दु पत्तों को बेचने के साथ ही डबल बोनस भी मिलता है। इसके साथ ही मेधावी छात्र-छात्राओं को स्कालरशिप, दुर्घटना बीमा आदि जैसी सुविधाएं मिलती है। इसके अलावा सरकार की योजनाओं का लाभ, संग्रहकर्ताओं को भी मिलता है।


गरियाबंद जिले के वन विभाग जिला कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार गरियाबंद जिले में कुल 70 खरीदी केन्द्रों में 33 करोड़ से अधिक की हर साल तेन्दु पत्ता खरीदी होती है। इस वर्ष 84 हजार मानक बोरा खरीदी का लक्ष्य है और लाभांश संग्राहकों की संख्या लगभग 65 से 70 हजार है। वर्ष 2022 में 82601 मानक बोरा पत्ता खरीदी किया गया था, जिसकी भुगतान 33 करोड़ 4 लाख रुपए से ऊपर किया गया है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वन उपज के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला हरा सोना, तेंदूपत्ता है। गरियाबंद जिले के लाखों आदिवासी एवं वनांचल में निवास करने वाले ग्रामीण परिवार की चिंताएं बढ़ गई है। हर वर्ष 1 मई को मजदूर दिवस के दिन से प्रदेश में हरा सोना की खरीदी प्रारंभ हो जाती थी। इस वर्ष मौसम की बेरुखी बारिश, आंधी और तूफान के चलते तेंदू पत्ता खरीदी में संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसके संग्रहण और इससे मिलने वाली आय से एक परिवार का लगभग 6 माह तक का गुजर-बसर चल जाता है। साथ ही बच्चों के पढ़ाई-लिखाई के साथ शादी-विवाह में इस राशि का उपयोग ग्रामीण करते हैं।


एक और जहां अब तक हरा सोना की खरीदी प्रारंभ नहीं हुई है, वहीं दूसरी तरफ हरा सोना संग्रहण को लेकर पिछले चार-पांच दिनों से क्षेत्र के ग्रामों में विवाद और झगड़े की स्थिति निर्मित हो गई है। आलम यहाँ तक देखने को मिल रहा है कि, अपने गांव के जंगल के तेंदूपत्ता की सुरक्षा के लिए ग्रामीण महिलाएं, पुरुष और बच्चे रात भर जागकर गांव के मुख्य मार्गों में पहरा दे रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार कई ग्रामीणों के द्वारा पिछले 1 सप्ताह से यह प्रारंभ कर दिया गया है और इसे लेकर घर बनाने का कार्य प्रारंभ हो गया है। ग्रामीण अपने गांव में आसपास के तेंदूपत्ता की तोड़ाई के बाद, दूसरे गांव के जंगलों में थोड़े कायदे से मोटरसाइकिल लेकर पहुंच रहे हैं और उसे वाहनों के माध्यम से अपने घर तक ला रहे हैं। इसकी जानकारी जब ग्रामीणों को हुयी तो, भारी आक्रोश बढ़ गया। इसके चलते गांव-गांव में पिछले 4 दिनों से लगातार स्थिति गंभीर हो गई है। गरियाबंद जिले के मैनपुर क्षेत्र में कुल्हाड़ी घाट मार्ग में 5 से 6 पिकअप और जीप में दूसरे गांव के ग्रामीणों द्वारा जंगल से संग्रहण कर आ रहे लोगों को ग्रामीणों ने पकड़ा। और पूरे पत्तों को सड़क पर फेंक दिया और ग्रामीणों को वापस लौटा दिया। यही स्थिति मैनपुर-देवभोग नेशनल हाईवे मार्ग में फूलझर घाटी, बरदुला घाटी और राजा पड़ाव के पास भी देखने को मिली।

अखबार में प्रकाशित खबर

कुल्हाड़ी घाट क्षेत्र के ग्रामीण महिला यशोदाबाई सोरी, दसरी बाई कमार और बरदुला क्षेत्र के कुमारी बाई नागेश, जयसिंह और राधेलाल जीवन ने बताया कि, तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य अपने गांव और क्षेत्र के जंगल में ग्रामीणों द्वारा किया जाए। इस क्षेत्र में दूसरे गांव के लोगों द्वारा जंगलों में चोरी-छिपे गलत तरीके से तेंदूपत्ता संग्रहण किया जा रहा है, जो गलत है। यदि, हमारे गांव के जंगलों से पत्तों को दूसरे क्षेत्र के लोग ले जाएंगे, तो हमारी आमदनी कैसे हो पाएगी और हमारे बच्चे कहां से पढ़ाई करेंगे।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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