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कोल विद्रोह की उपज है कोल्हान का विल्किंसन रूल

Updated: May 31, 2023

झारखण्ड के कोल्हान में ‘हो आदिवासियों’ का वर्चस्व है। और कोल्हान के अंतर्गत सराईकेला-खरसवां और सिंहभूम (पश्चिमी व पूर्वी) जिले आते हैं। हो आदिवासियों की पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था प्राचीन काल से ही सिंहभूम के हो बहुल क्षेत्र में सक्रीय रूप से कार्यरत रही है। इतिहासकारों का कहना है कि, हो आदिवासी वह जाति रही है, जिसने कभी दासता स्वीकार नहीं की। जिस प्रकार से देश के अन्य भागों में पंच या खाप पंचायत होती हैं, उसी प्रकार हो आदिवासियों में मानकी-मुण्डा की व्यवस्था चिर काल से रही है। परन्तु, यहाँ मानकी-मुण्डा व्यवस्था को कानूनी मान्यता प्राप्त है। जो भारत के आजाद होने से पूर्व से लागु है और संविधान के लागु होने के पश्चात भी कोल्हान में मान्य है।

मुगल काल में सम्राट अकबर ने अपने शासन में कर वसूली के लिए अपने सूबेदार नियुक्त कर रखे थे। उनके वित् मंत्री टोडरमल जंगली इलाकों से कर वसूलने में असमर्थ रहा, इसलिए उसने उन इलाकों को मुगलबन्दी इलाका घोषित कर वहां से कर वसूलना छोड़ दिया था। तब अकबर ने अपने सेनापति वीर मान सिंह को इस मुगलबन्दी क्षेत्र का सूबेदार बनाया। फिर, वीर मान सिंह ने एक तरकीब निकाली। उसने मुगलबन्दी वाले भू-भाग को तीन भागों में बांटा और अपने नाम को भी तीन टुकड़ों में बाँट कर उनका नाम क्रमशः वीरभूम, मानभूम और सिंहभूम रख दिया तथा तत्कालीन बंगाल के मुगलबन्दी वाले उक्त इलाकों के पास वाले सैन्य अधिकारियों को इन इलाकों का कर-संग्राहक बना दिया और उनसे प्रति इलाका आठ आना ‘कर’ जमा करने को कहा। तीनों इलाकों के प्रभारी ने अपने-अपने तरीके से अपने इलाकों से कर वसूली का बहुत प्रयास किया। लेकिन, वे सफल नहीं हुए।


जब सारा भारत गुलामी की जंजीर में जकड़ा हुआ था, तब हो समुदाय अंग्रेज़ों से अपनी स्वायत्ता के लिए संघर्ष कर रहा था। मुगल शासन के पतन के बाद अंग्रेजों ने इन इलाकों को बंगाल का जिला घोषित कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत के आने के पूर्व सिंहभूम का शासन नाममात्र के लिए पोड़ाहाट के राजा के द्वारा चलाया जाता था। क्योंकि, सिंहभूम के हो और मुंडा आदिवासी राजा के नियंत्रण में नहीं थे। सन् 1821 में ब्रिटिश हुकूमत ने सिंहभूम पर अपना अधिपत्य जमाया और पोड़ाहाट राजा से सिंहभूम क्षेत्र का दक्षिणी हिस्सा छीन कर अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लिया। तब सिंहभूम का संचालन वर्त्तमान झारखण्ड राज्य के लोहरदग्गा से होता रहा।


अंग्रेज़ों द्वारा स्थाई बंदोबस्ती के कारण इस क्षेत्र में नए जमींदार एवं महाजन का एक सबल वर्ग सामने आया। इसके साथ इनके कर्मचारी भी आए। इन सभी ने मिलकर कोल जाति के लोगों का शारीरिक एवं आर्थिक शोषण आरंभ कर दिया। लगान की रकम अदा न करने पर उनकी जमीन नीलाम करवा दी जाती थी। इन बाहरी लोगों ने कोलों (भूमिज, उरांव, मुंडा और हो आदिवासियों को अंग्रेज़ कोल कहे कर सम्बोदित करते थे।) की बहू-बेटियों की इज्जत भी लूटनी आरंभ कर दी।


विद्रोह स्वरूप 'कर वसूली' और अंग्रेजों के मनमानी के विरोध में सन् 1831-1832 में सिंदराय व विंदराय मानकी के नेतृत्व में कोल-विद्रोह हुआ। इस विद्रोह के केंद्रबिंदु में दिकुओं (हिन्दू, सिख और मुस्लमान) को रखकर जमींदारों, महाजनों और सूदखोरों के उप्पर आक्रमण कर उनको मौत के घाट उतरा गया, साथ ही उनके सम्पतियों को नुकसान पहुँचाया गया। इसके अलावा सरकारी खजाने को लुटा गया और अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित कचहरी और थाना पर भी आक्रमण किया गया। अंत में कंपनी ने स्तिथि की गंभीरता को देखते हुए सेना की एक विशाल टुकड़ी भेजी और बड़ी निर्दयता से इस विद्रोह को दबा दिया।


कोल विद्रोह के परिणामस्वरूप सन् 1833 में बंगाल रेगुलेशन एक्ट XIII को गवर्नर जेनरल के एजेंट कैप्टेन थॉमस विल्किंसन ने लोक न्याय हेतु आदिवासियों के पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था को समझने के उपरांत उसे कॉउंसिल में पारित करवाया। और इस नये क्षेत्र को ‘कोल्हान गवर्मेन्ट एस्टेट’ नाम प्रदान किया। इसी के तहत सन् 1837 में विल्किंसन रूल आया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य, इस क्षेत्र में सदियों से चले आ रहे पारम्परिक व्यवस्था के माध्यम से अच्छा प्रशासन देना और शीघ्र ही सामान्य और सस्ता न्याय दिलाना था। मुख्य तौर पर यहाँ के आदिवासियों की जमीनों को गैर-आदिवासियों अर्थात दिकुओं के हाथों में जाने देने से बचाना था। चूँकि, अंग्रेज़ बखूबी तौर से आदिवासियों के जमीन के प्रति लगाव को समझ गए थे कि, आदिवासियों को विद्रोह से रोकने के लिए आदिवसियों का जमीनों पर मालिकाना हक़ बने रहना जरुरी था।


विल्किंसन रूल में कोल्हान में प्रचलित दण्ड प्रणाली और परम्पराओं तथा नये कर प्रणाली को लेखबद्ध किया गया। जिस मामले को मुण्डा नहीं सुलझा पाते थे, उस मामले का निपटारा मानकी को करना था। मानकी को अपने अधीनस्थ मुण्डा लोगों पर निगरानी करना था। कैप्टेन थॉमस विल्किंसन ने इसमें कुल 31 प्रावधान शामिल कर इसे तत्कालीन बंगाल के गवर्नर से अनुमोदित करा कर, इसे तत्काल कोल्हान में लागू करा दिया। विल्किंसन रूल में छोटे आपराधिक मामले शामिल किये गए थे, हत्या और डकैती को इससे अलग रखा गया था। अंततः इस कानून के माध्यम से अंग्रेज़ों ने कर वसूलना सुनिश्चित किया।


स्वप्रथम वर्तमान के चाईबासा के असुरा ग्राम के मानकी के साथ ब्रिटिश हुकूमत का इकरार हुआ। तब से ब्रिटिश हुकूमत ने स्थानीय व्यक्तियों को प्रशासन में भागीदार बनाया और इकरारनामे के आधार पर कोल्हान क्षेत्र के प्रशासन के लिए, ‘मानकी’ तथा ‘मुण्डा’ को अलग-अलग सनद पट्टा निर्गत किया। जिसे अब हुकूकनामा के नाम से जाना जाता है। मुण्डा एक गांव का मुख्य होता है और मानकी एक पीड़ का प्रधान होता है, आमतौर पर एक पीड़ में 12 से 13 गांव होते हैं। मानकी और मुण्डा का ओहदा वंशानुगत होता है। लेकिन, यदि नियमता मानकी या मुण्डा को ग्राम सभा से बर्खास्त किया जाये तो उनके वारिसों को उक्त पदों पर कोई हक नहीं होता है।

वर्ष 2021 में 2 फरवरी को कोल्हान के चाईबासा में राज्य के मुख्यमंत्री ने न्याय पंच कार्यालय का उदघाटन कर क्षेत्र के मानकी-मुण्डा को एक सौगात दी। यह कदम क्षेत्र में मानकी-मुण्डा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उठाया गया था। और परिणामस्वरूप 20 वर्ष से कोर्ट में लंबित पड़े एक मामले का निपटारा 3 सुनवाई में कर दिया गया। यह कदम आजादी के बाद ही उठाये गए होते तो, आज कोल्हान को स्तिथि अलग होती। लेकिन, तब की सरकारों का उदेश्य इस व्यवस्था को कमजोर करने की रही। चूँकि, झारखण्ड निर्माण के पूर्व तब की सरकारों ने धोखे से क्षेत्र के मानकी और मुंडाओं के सनद पट्टों को हथिया लिया। और अब मौजूदा सरकार कोल्हान के मानकी-मुंडाओं को पट्टा देने का कार्य कर रही है।


वर्तमान के मानकी-मुण्डा को परिशिक्षण के साथ ही प्रशासन की सहायता की सख्त जरुरत है। ताकि, अपनी-अपनी जनताओं के प्रति जवाबदेह होकर उनके लिए कार्य कर सकें। कोल्हान, भारतीय संविधान के पाँचवी अनुसूची वाला एक क्षेत्र है। जिसके तहत क्षेत्र के आदिवासियों को विशेष प्रावधान प्राप्त हैं। लेकिन, सरकारों के नरम रवैये के चलते क्षेत्र और क्षेत्र के लोगों का विकास नहीं हो पाया है। पाँचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में ग्राम सभा सर्वोपरि होती है और उस ग्राम सभा के अध्यक्ष गांव के मुण्डा होते हैं। लेकिन, वर्तमान परिपेक्ष में राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा ग्राम सभा को कमजोर करने के अथक प्रयास होते रहे हैं। जोकि, लोकतांत्रिक देश के लिए शर्म की बात है।

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