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छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में धूम-धाम से मनाया गया राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव

आदिवासी परंपरा, कला, एवं संस्कृति को सम्मान के द्योतक राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का छत्तीसगढ़ के जिला गरियाबंद में रंगारंग आयोजन किया गया। गरियाबंद के विकास खंड में आयोजित इस कार्यक्रम में जिले के हर गाँव का प्रतिनिधित्व करता एक समूह अपने समुदाय के आदिवासी नृत्य, संगीत, एवं अनूठी परम्पराओं की झलकियाँ पेश की।


इस एकदिवसीय महोत्सव में जिले के माननीय कलेक्टर महोदय श्री श्यामलाल धावड़े के साथ साथ कई बड़े पदाधिकारयों ने शिरकत की और कार्यक्रम का आनंद लिया। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए सदैव कार्यरत और यहाँ की आन बान शान माननीय श्री भूपेश बघेल जी के आदेशनुसार यह कार्यक्रम प्रदेश के हर जिले के हर ब्लॉक में रखा गया। गरियाबंद की बात करें तो यह एक जिला भी है, एक ब्लॉक भी है। इसके अलावा यह भव्य आयोजन छुरा ब्लाक (गरियाबंद जिला से 27 से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ), फिंगेश्वर (110 किलोमीटर की दूरी पर गरियाबंद जिले का तीसरा ब्लॉक ), मैनपुर ब्लॉक (गरियाबंद जिला से लगभग 41 किलोमीटर दूर ) और देवभोग (गरियाबंद से लगभग 89 किलोमीटर दूर) में भी आयोजित किया गया।

यह कार्यक्रम सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम को 8:00 बजे तक चला। कार्यक्रम के अंत में पुरस्कार समारोह भी हुआ जिसमें ग्राम टेवांरी से आए भुंजिया समुदाय के कलाकारों को पारंपरिक प्रथाओं की प्रस्तुति के लिए प्रथम पुरस्कार दिया गया। दूसरा पुरस्कार ग्राम पीपरछेड़ी से आए रंगकर्मियों को दिया गया। यह भी भुंजिया समाज के लोगों ने कांडा़ बांड़ा विवाह प्रथा को मंच पर प्रदर्शित करने के लिए जीता। इस विवाह रीति में लड़कियों को दो बार ब्याहा जाता है। पहली शादी तीर (धनुषबाण) के साथ की जाती है जब लड़की की आयु 5 से 8 वर्ष के बीच होती है। दूसरा विवाह लड़की के परिवार द्वारा या बहुत बार लड़की की इच्छानुसार किया जाता है। भुंजिया जनजाति ने मंच पर इसी प्रथा का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया।


भुंजिया जाती के आदिवासी लाल बंगले के साथ झांकी दिखाते हुए।


आपको बता दें कि वैसे तो आदिवासी अपनी उदारवादी और स्त्री-प्रधान प्रथाओं के लिए जाने जाते हैं, परन्तु रीति-रिवाज़ों के मामले में ये भी नियम के पक्के होते हैं। भुंजिया आदिवासी ब्राह्मणों से भी अधिक नीति -नियम का पालन करते हैं।


इस आदिवासी महोत्सव का उद्देश्य छत्तीसगढ़ की आदिवासी परंपरा एवं संस्कृति के बारे में जागरूकता फैलाना है। आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए और उनकी भाषा, धार्मिक मान्यताओं, प्रथाओं, गीत-संगीत, नृत्य आदि के बारे में बताने के लिए यह एक छोटा सा प्रयास है ताकि इनका प्रचार प्रसार हो और यह जनजातीय धरोहर विलुप्त न हो। साथ ही यह अवलोकन भी किया जाता है कि आदिवासीयों को कैसे और क्यों अपनी भाषा, परंपरा, और प्रथाओं को आगे बढ़ाना चाहिए जिससे कि आधुनिकता के कारण उनकी परंपरागत रस्में और सांस्कृतिक पहचान कहीं खो न जाए। नयी पीढ़ी को भी अपनी भाषा, परंपरा, और प्रथाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि शहरीकरण के इस दौर में नयी बातें अपनाने के साथ साथ अपनी मिट्टी से जुड़े रहना भी बेहद ज़रूरी है। इस महोत्सव में यह भी तय हुआ कि अगला आयोजन जिला-स्तर पर किया जायेगा और इसमें गरियाबंद ब्लॉक के जितने भी प्रतिभागी हैं उनको फिर से भाग लेने का मौका मिलेगा। हालांकि यह महा-आयोजन कब होगा इसपर अभी चर्चा जारी है।


लेखक के बारे में- खाम सिंह मांझी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की है और वह अभी अपने गाँव में काम करते हैं। वह आगे जाकर समाज सेवा करना चाहते हैं।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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