अच्छी फसल के लिए त्रिपुरा के आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला गोरियां त्यौहार
- Surakha Debbarma
- Oct 14, 2019
- 2 min read
गोरिया तेर या गोरिया त्यौहार त्रिपुरा में कोकबोरोक बोलने वाले समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। इस मौके पर आदिवासी गोरिया बाबा (Lord Goria) की पूजा करके अच्छी फसल की कामना करते हैं, साथ में अपने परिवार की सलामती के लिए प्रार्थना करते हैं। गोरिया पूजा का त्यौहार प्रतिवर्ष वैशाख मास के प्रथम 7 दिन तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

बाबा गोरिया की तस्वीर। फोटो- सुरेखा देब बर्मा
क्या है इस त्यौहार के पीछे की कथा?
गोरिया बाबा को लेकर लोगों का मानना है कि गोरिया बाबा का अंश नागालैंड से प्राप्त हुआ है। कई वर्ष पहले गोरिया बाबा ने पूब नारायण नामक त्रिपुरा राज्य के एक सेनापति के सपने में आकर उन्हें बताया कि वह उनका अंश नागालैंड से प्राप्त करें। उसके बाद पूब नारायण नागालैंड जाकर बाबा गोरिया का कुछ अंश त्रिपुरा में लेकर आए। उसके बाद से ही बांस (bamboo) पर लाल कपड़ा बांधकर गोरिया बाबा के स्वरूप में लोग उनकी पूजा करने लगे।
गोरिया पूजा के पहले दिन को बूइसौ (buisu) कहते हैं और आखिरी दिन जब विसर्जन होता है, उसे सेना (sena) कहते हैं। इस त्यौहार का आरंभ ढोल और बांसुरी की आवाज़ से होता है। त्रिपुरा के जमातिया (Jamatia) समुदाय के लोग गोरिया बाबा को लेकर अलग-अलग गॉंव में नाच-गाकर घूमते हैं।
गोरिया पूजा दो जगह में पूरी आस्था और उत्साह से मनाया जाता है, बिया गौनां (Biya gwnang) और बिया कुरोई (Biya kwrwi)। गोरिया पूजा के आखिरी दिन यानि सेना के दिन चावल से बनाया गया पीठा, शराब (rice beer), मुर्गी, बतख, अंडा आदि गोरिया बाबा चढ़कार नाच-गाकर प्रार्थना करते हैं। उस दिन सबलोग (जिसमें बच्चे बुज़ुर्ग सभी शामिल होते हैं) नाच-गाने के साथ बड़े ही उत्साह से बाबा को विदाई देते हैं।

पूजा के विधि। फोटो- Tripura Infoway
यह एक ही पूजा है, जो त्रिपुरी समुदाय के लोग सदियों से मनाते आ रहे हैं। यह त्यौहार सदियों पहले से लेकर अभी तक बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यही त्रिपुरी समुदाय के सच्चे भगवान माना जाते हैं। इसी से त्रिपुरा के प्राचीन खान-पान, रहन-सहन और परंपराओं की पहचान होती है।
अगर आपको कभी भी त्रिपुरा के निवासी और जनजातियों की परंपराओं के बारे में जानना हो, तो गोरिया पूजा ज़रूर आकर देखिए।
गोरिया तेर के बारे में वीडियो देखें-
लेखक के बारे में- सुराखा देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। यह अभी राजनीतिक विज्ञान से ग्रैजुएशन कर रहे हैं। यह क्रिकेट खेलना और घूमना पसंद करते हैं। यह अपनी आदिवासी संस्कृति के बारे में और भी वीडियो बनाना और लेख लिखना चाहते हैं।
कोकबोरोक से अनुवाद- लुना देब बर्मा
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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