गरियाबंद के ग्राम कोदोपाली में दो आदिवासी जनजातियां रहती थीं। एक गोंड और दूसरा भुंजिया। गाँव से 3 किलोमीटर की दूरी में बूढ़ा राजा का मंदिर है। वे भुंजिया और गोंड आदिवासियों के पूजनीय देवता हैं।
बूढ़ा राजा के मंदिर में त्यौहर मनाते आदिवासी समुदाय। फोटो साभार- खाम सिंह मांझी
वर्षों से भुंजिया और गोंड आदिवासी साथ रहे हैं। भुंजिया ग्राम कोदोपाली में ही बसे रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे गोंड आदिवासी कोदोपाली के अलावा भी दूसरे गाँव में बसने लगे।
नवरात्रि के समय हर साल जब बूढ़ा राजा की पूजा होती है, तब गोंड आदिवासी भुंजिया आदिवासियों को भी त्यौहार में शामिल होने को निमंत्रित देते हैं। आखिर वे अलग समुदाय होने के बावजूद सालों तक साथ रहे हैं!
ग्राम कोदोपाली के बुजुर्ग बताते हैं कि बूढ़ा राजा की पूजा फसल कटने के बाद की जाती है। इसका महत्व है कि लंबे समय तक फसल काटने के बाद विश्राम कर रोटी खाना। इसलिए बूढ़ा राजा के पर्व को रोटी खानी के नाम से भी जाना जाता है। रोटी खानी भुंजिया आदिवासियों का मुख्य त्यौहार है।
रोटी खानी नवरात्रि के दौरान किसी भी समय तय किया जा सकता है। इस त्यौहार में भुंजिया के आदिवासी अपने देवी- देवताओं को मुर्गियों और बकरियों की बलि चढ़ाते हैं। माना जाता है कि बूढ़ा राजा के स्थान पर हर मन्नत पूरी होती है।
त्यौहार के दौरान भोजन सामग्री बनाते आदिवासी समुदाय। फोटो साभार- खाम सिंह मांझी
लेकिन यहां महिलाओं का जाना वर्जित है। वहां सिर्फ पुरुष ही जाकर भेड़-बकरियां तथा मुर्गियों की बलि देते हैं। आधे को वहीं पर बनाकर खा जाते हैं और आधे को घर लाकर अपने मेहमानों के साथ महिलाएं और पुरुष सभी खाते हैं।
रोटी खानी के दौरान रात्रिकालीन कार्यक्रम भी रखा जाता है। छोटा सा मार्केट भी लगता है जिसमें आसपास के ग्रामीण आकर मनोरंजन करते हैं।
कार्यक्रम के दौरान आदिवासी समुदाय। फोटो साभार- खाम सिंह मांझी।
लेखक के बारे में: खाम सिंह मांझी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की है और वह अभी अपने गाँव में काम करते हैं। वह आगे जाकर समाज सेवा करना चाहते हैं।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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