पारंपरिक रूप से गाँव में स्थानीय स्तर पर मिलने वाले सामान से ही घर बनाए जाते हैं। इस काम में मिट्टी, बांस, लकड़ी, भूसा इत्यादि का इस्तेमाल होता है। अगर हम अतीत की बात करें तो राजा-महाराजाओं ने पत्थरों से बड़े-बड़े महल, मंदिर, तथा मस्जिद बनाए हैं। उस समय पत्थरों को काटकर एक आकर में तराशा जाता था। दीवार बनाते समय एक के ऊपर एक पत्थर रखकर उनको चावल के लेप से जोड़ा जाता था।
अभी समय बदल गया है। पहले की तुलना में अभी पर्याप्त पत्थर उपलब्ध नहीं है। शहरों की बात करें तो अभी वहाँ बड़ी -बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही है। ऐसे घर बनाने के लिए मशीनों से बने ईंट की जरुरत पड़ती है। आज ईंट के बिना हम किसी भी मानव निर्मित आवासीय परिसर की कल्पना नहीं कर सकते।
शहरों में तो ईंट बनाने के बड़ी-बड़ी फ़ैक्टरियाँ होती हैं, लेकिन हम गाँव में घर पर भी इसे बना सकते हैं।
ईंट बनाने के लिए आवश्यक सामग्री
सबसे पहले हमें मिट्टी चाहिए। लाल चिकनी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी को खोदने और फिर पानी से मिलाने के लिए गैंती एवं फवड़ा की जरुरत पड़ती है। गैंती में लकड़ी का बना हुआ एक हैंडल रहता है जिसके एक तरफ लोहे का औज़ार रहता है। इसके दोनों तरफ से मिट्टी खोदी जा सकती है। फावड़े का उपयोग गीली मिट्टी को पलटने के लिए किया जाता है।
साँचा एक लकड़ी का बना हुआ चौकोर डब्बे के आकार का होता है, जिसमें ईंट बनाया जाता है। यह अलग-अलग प्रकार की लंबाई, चौड़ाई, मोटाई के हो सकते हैं। आखिर में ईंट को पकाने के लिए लकड़ी या कोयला की ज़रूरत होती है।
लकड़ी से बने सांचे में मिट्टी भरते हुए
ईंट बनाने की प्रक्रिया
ईंट बनाने के लिए साफ़ और मुलायम मिट्टी की जरुरत पड़ती हे। ध्यान रखें की मिट्टी में कंकड़ पत्थर न हो। ऐसी मिट्टी को पहले गैंती से खोदा जाता है। उसके बाद उसमें आवश्यकतानुसार पानी मिला दिया जाता है और पानी मिलाने के बाद कुछ समय के लिए मिट्टी को भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। अच्छी तरह से भीगने के बाद फावड़े की मदद से भीगी हुई मिट्टी को दो- तीन बार पलटा जाता है, ताकि जो मिट्टी सूखी रहती है, वह गीली मिट्टी के साथ मिल जाए और एक समान हो जाए। अच्छे से मिलाने के बाद, इस मिट्टी को एक बड़े पॉलिथीन से ढँक दिया जाता है। मिट्टी खोदना एवं उसको पानी से मिलाने का काम सुबह किया जाता है, ताकि 3 से 4 बजे के बीच ईंट का आकर बनाने का काम शुरू किया जा सके।
लकड़ी की मदद से ईंट को पकाया जा रहा है
अगले कदम में एक व्यक्ति सांचे में रेती मिलाता है और दूसरा उसमें मिट्टी भर कर देता है। इस ईंट को सुखाने के लिए एक पंक्तिबद तरीके से रखा जाता है। इसके लिए ये निश्चित कर लें की जिस जगह पर ईंट सुखाया जाता है, वह समतल हो। जमीन की फर्श को फावड़े की मदद से बराबर कर लें। एक दिन सूखने के बाद दूसरे दिन सूखी ईंट से हजार-हजार की दीवार खड़ी की जाती है।10 से 20 हजार ईटें बनने के बाद उन्हें लकड़ी या कोयले की मदद से पका दिया जाता है।
ईंट बनाने की प्रक्रिया में कुछ हानिया भी है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, क्योंकि इसमें उपजाऊ मिट्टी का दहन होता है। ईंट को पकाने के लिए लकड़ी या कोयले का उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। इससे जंगल की बर्बादी होती है। लकड़ी जलने से आसपास में वायु प्रदूषण होता है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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