छत्तीसगढ़ में एक कहावत है- “घर बनाना और शादी करना दोनों का खर्च समान होता है।” मकान बनाना बहुत ही मुश्किल काम है, क्योंकि जितना बड़ा घर, उतना ज़्यादा सामान और उतना ही ज़्यादा खर्चा। शादी का भी वैसे ही है- आप जितनी धूमधाम के साथ शादी करेंगे, उतना खर्चा ज्यादा होगा।
छत्तीसगढ़ के मेरे गाँव में घर बनाने के लिए घर के सारे सदस्य एक साथ आकर मेहनत करते है। पहले बनती है दीवाल। गाँव में दीवाल अक्सर मिट्टी के ही बनाए जाते हैं। आसपास की ज़मीन को खोदकर उसमें कटिया (पराली) को छोटे में काटकर, मिट्टी में मिलाकर दीवाल खड़ी की जाती है। क्योंकि घर के सदस्य ही दीवाल बनाते है, इसमें किसी भी प्रकार का खर्च नहीं उठाना पड़ता।
घर की दीवाल
दीवाल
पक्का घर बनाने के लिए यह दीवार पक्की ईंटों से तथा सिमेंट की जोड़ से घर कोने पर रॉड के द्वारा खड़ी की जाती है। छज्जा सिमेंट तथा गिट्टी राठ के जोड़ों से बना होता है। गाँव में अक्सर कच्चे मकान ही बनाए जाते हैं, क्योंकि घर निर्माण की सारी चीजें आसपास में ही मिल जाती है।
दीवाल खड़ी करने के लिए आसपास की मिट्टी को खोदा जाता है। उसमें भूसी, कटिया (पराली) आदि मिलाए जाते है, और बीच-बीच में छोटे पत्थर भी रखे जाते हैं, ताकि दीवार मजबूत हो सके।
कंडी बिठाते हुए
छत
छत्तीसगढ़ी में कंडी को गड़ेरी बोलते हैं, जो करीब 6 फूट की लंबाई का होता है और घर की चौड़ाई के अनुसार बनाया जाता है। कंडी लगाने के पूर्व लकड़ी की मदद से कंडी को बराबर किया जाता है। कंडी में एक तरफ थोड़ा काटा जाता है, ताकि दीवाल पर लगी हुई लकड़ियों पर यह ठीक से बैठ सके। लोहे के कीलों द्वारा कंडी को लकड़ी से जोड़ दिया जाता है, ताकि वह लंबे समय तक टिक सके और हिले ना।
कंडी पर बांस की लकड़ी डालकर उनपर खप्पर लगाए जाते है
कंडी पर बांस की लकड़ियाँ बिछायी जाती है। इन्हें कीलों की मदद से कंडी में गाड़ दिया जाता है। फिर मिट्टी से बने खपरों को इन बांस की लकड़ियों पर बिछाया जाता है। इन्हें छत पर डालने से पहले आग में पकाया जाता है। इससे बरसात के दिनों में पानी घर के अंदर नहीं आता और गर्मी के दिनों में धूप अंदर तक नहीं पहुँचती और घर सुरक्षित रहता है।
ऐसे बनाते है हमारे गाँव के लोग अपने घर। गाँव में सब को घर कैसे बनाते है, इसकी जानकारी होती है, क्योंकि सब लोग इस प्रक्रिया में शामिल होते है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कौशल है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
Comments