top of page
Adivasi lives matter logo

गोंडी संस्कृति को बढ़ावा देने के किए छत्तीसगढ़ में आयोजित गोंडवाना सम्मेलन

छत्तीसगढ़ में साल भर कई आदिवासी सम्मेलन होते रहते है। एक ऐसा सम्मेलन था ग्राम घुमानीडाड मे गोंड आदिवासीयों का सम्मेलन। इस सम्मेलन में सिर्फ़ गोंड आदिवासियों को शामिल होने के अनुमति थी। इस सम्मेलन में गोंड जाति के देव की पूजा की जाती है। इस देवता को साल पेड़ के नीचे रखेते है और सफेद रंग मे पोते रहते है। पूजा होने के बाद प्रसाद के रूप मे खीर-पुडी बनाई जाती है। देवता की पूजा गोंडी गाने गाकर करते है। गोंड़ आदिवासी रक्साबुढा, मरकी माता और शीतबाबा देवताओं को पूजते है।


इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए बहुत दूर दूर से गोंड़ समाज के लोग घुमानीडाड आते है। सम्मेलन के समय चर्चा होती है, जिसमें लोग अपने विचार को प्रकट करते है। गोड़ समुदाय के अध्यक्ष लोगों को अपने गोंड समाज को आगे बढाने के लिए प्रेरित करते है। गोंडवाना सम्मेलन के माध्याम से गोंड समाज के रीति- रिवाजों की जानकारी दी जाती है और गोंड़ समाज के गुरू गोंड़ परम्पराओं के बारे में बताते है, जो पीढी़ दर पीढी़ चलती आ रही है।


सम्मेलन के दिन सभी के घरों में भाप से चढ़ाए गये चावल से ही खाना बनाया जाता है और उड़द दाल का बडी बनाया जाता है, जिसे हम बेतरी बडी कहते है। इसकी सब्जी भी बनाई जाती है। गोंडी लोगों का ऐसा नियम है की यह खाना सम्मेलन के दिन ही बनाया जा सकता है।

गोंड समाज की संस्कृति और पहचान


गोंड़वाना समाज का वेशभुशा सबसे अलग होती है। इसमें हरे और गुलाबी रंग की सुती की साडी होती। गोंडी महिलाएँ मस्तक पर कौडी से बनी बिंदी पहनते है। लड़के सफ़ेद धोती पहनते है, और कई बार गोंडी कपड़ों पे “जय सेवा” लिखा जाता है।


गोंडी आदिवासीयो की एक महत्वपूर्ण पहचान है गोदना, जो सुई या मशीन के द्वारा पूरे शरीर पर किया जाता है।

गोंडवाना समाज का एक झंडा होता है, जिसे सतरंगी झंडा कहते है। इस झंडे को सतरंगी झंडा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसे सात रंग के कपड़े से बनाया जाता है।


गोंड़ समाज के घरों मे देव चिन्ह होता है और ‘जय बुढा़ देव 750’ लिखा जाता है। यह गोड़वाना समाज का नंबर है और सभी गोंडी लोग 750 नंबर से जाने जाते है।जब गोंडी लोग किसी से मिलते है, तो “जय सेवा”और “सेवा जोहार” से एक दूसरे को नमस्कार करते है।


गोंड समाज की एक ख़ास पत्रिका होती है, जिसे गोंडवाना पत्रीका कहते है। इसे साथ गोंड पहाडा़ और गोंडवाना कैलेंडर भी होता है। यह सब पथ गोंडी भाषा में होते है। गोंडी भाषा की लिपि बहुत अलग होती है, और कुछ ही लोग इसे लिख और पढ़ सकते है। इसे अभी पुनर्जीवित करने का प्रयास जारी है।


गोंडी सम्मेलन गोंडी समाज को एकत्र लाने का और उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में उजागर करने का प्रयास है।

लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती है। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वह उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।



यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

bottom of page