जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं लेकिन मृत्यु से हम सब सुखी होते हैं। अंतिम संस्कार हमें अपने मृतक परिजनों को याद करने और उन्हें आदर सम्मान देने का अवसर देता है।
सभी मनुष्य मृत्यु से गुज़रते हैं और अलग-अलग समाज में इस दुखद लम्हे को अपने तरीके से मनाया जाता है। आज हम जानेंगे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के दशगात्र प्रथा के बारे में।
कैसे होता है दशगात्र कार्यक्रम
गाँव में दो तरह से अंतिम संस्कार किए जाते है। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार मृतकों को जलाया जाता है और कुछ समाज में उन्हें दफनाया जाता है।
आदिवासी जीवन में सब परिवारों और लोगों की एकजुटता ज़रूरी होती है। इसलिए मौत की दूसरी रात को सभी घरों को न्यौता दिया जाता है। हर घर से कोई ना कोई उस सभा में ज़रूर शामिल होता है।
इस सभा में दशगात्र कार्यक्रम के लिए रुप-रेखा बनाई जाती है। कार्यक्रम बनने के बाद लोग अपने घरवालों को इसकी सूचना देते हैं ताकि पूरा गाँव इसमें शामिल हो सके।
कैसे दी जाती है दशगात्र?
सूचना हेतु कहा जाता है, “मेरे गाँव के फलां घर के फलां जाति में फलां गोत्र के इस व्यक्ति का फलां दिन देहांत हो गया है। स्वर्गवासी के आत्मा की शांति के लिए इस दिन इस तारीख को दशगात्र कार्यक्रम रखा गया है। आप सब लोगों से निवेदन है कि आप सब उपस्थित हों।”
मुख्य बात यह है कि अगर पुरुष की मौत होती है, तो दसवें दिन और अगर किसी महिला की मौत होती है तो नौवें दिन पर दशगात्र का कार्यक्रम किया जाता है। दशगात्र के दिन रिश्तेदार और गाँव के सभी लोग शामिल होते हैं।
कुल मुंडन होता है
जिसकी मौत हुई है, उस कुल के सभी लोगों का मुंडन किया जाता है। गाँव के सभी के घर से कपड़ा मांगकर लाया जाता है। उन कपड़ों को धोबियों से धोया जाता है।
फिर सारी महिलाएं और सारे पुरुष अलग-अलग कतारों में चलते हुऐ तालाब में मृतक की आत्मा की शांति के वहां पूजा करते हैं। जब सभी लोग नहाकर आते हैं तो दरवाज़े पर सभी के पैरों पर पानी डाला जाता है।
पूजा के बाद होता है रीति रिवाज़ के साथ अंत
सभी उपस्थित लोग पूजा करते हैं फिर लोग मुंडन कर सर पर चंदन या तेल लगाते हैं। लोगों के द्वारा कुछ ना कुछ दिया जाता है। उसके बाद सभी लोग एक साथ मिलकर खाना खाते हैं। अंत में गायन-वादन किया जाता है जो रात भर चलता है। यह दशगात्र कार्यक्रम का आखरी लेकिन महत्वपूर्ण भाग होता है।
जब किसी की मौत होती है, तो गाँव के हर लोग मृतक के घर जाते हैं और उनके रिश्तेदारों को सांत्वना देते हैं। इस तरह दुख की घड़ी में पूरा गाँव साथ देता है।
लेखक के बारे में: राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। वो खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिलजुल कर रहना पसंद है। वह लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। इन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।
Commenti