भोजन हर संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह ना केवल किसी प्रदेश, प्रांत या समुदाय की जीवन शैली दर्शाता है, बल्कि वहां के भूगोल, तापमान, पेड़–पौधों, और पशु–पक्षियों के बारे में भी बताता है।
हमारे आदिवासी भाई–बहन भी कई तरह के शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन पकाते और खाते हैं। उस ही सुस्वाद भोजन–श्रृंखला में एक व्यंजन है ‘मछली का पूर्गा’। जैसा कि आप जानते हैं, पूरी दुनिया में मछली के कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। आदिवासी लोग भी मछली का यह व्यंजन मछली का पूर्गा बनाकर खाते हैं। आइए अब आपको बताते हैं इसे बनाने की विधि क्या है।
आदिवासी जीवन-शैली आसपास के प्राकृतिक साधन और संसाधन से ही आगे बढ़ती है। भोजन का प्रबंध भी वहीं से होता है। मछली का पूर्गा बनाने क लिए खेतों में पाए जाने वाले छिछले पानी के गड्ढों में से मछलियां पकड़ी हैं।
कैसे पकड़ी जाती हैं मछलियां?
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बांस का पेड़ जिसकी लकड़ी से झोकनी बनाई जाती है
मछली फंसाने के लिए झोकनी नाम का औज़ार तैयार किया जाता है। इसको बनाने के लिए तो पहले बांस के पेड़ को काटकर एक टहनी तैयार करते हैं। इस टहनी के बीच में से इसके दो भाग करते हैं। इन दो भागों को हम कुछ इस प्रकार से बनाना शुरू करते हैं।
पूरी तरह से बन जाने के बाद हम इस टोकरीनुमा झोकनी को खेत में ले जाते हैं और इसे ठीक से रखने के लिए जगह तैयार करते हैं। अच्छे से जगह बनाने के बाद उस मछली पकड़ने के औज़ार को सही कोण का अनुमान लगाकर मोटी टहनियों के सहारे वहां रख दिया जाता है। कुछ समय पश्चात इसकी कांटेदार बनावट में मछली फंस जाती है।
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मछली फंसाने के लिए तैयार की गई झोकनी
पूर्गा बनाने की विधि
मछली पकड़ लिए जाने के बाद पूर्गा बनाना शुरू किया जाता है। सबसे पहले मछली को झोकनी से निकालने के बाद अच्छे से साफ किया जाता है। साफ करते समय यह विशेष ध्यान दिए जाता है कि कोई कंकड़, मिट्टी या हानिकारक तत्व मछली पर लगा ना रह जाए।
फिर साफ की हुई मछली को एक विशेष तरह के पत्ते जिसे परसे का पत्ता कहते हैं, उस पर रखा जाता है। अब हम स्वादानुसार नमक, चुटकी भर हल्दी पाउडर, और चुटकी भर मिर्च पाउडर के मिश्रण की परत मछली के दोनों ओर अच्छी तरह लगा देंगे।
इसके बाद मसाले से लिपी मछली को एक और परसे के पत्ते में लपेट दिया जाता है। पकाते समय यह पत्ता निकल ना जाए इसलिए इस पत्ते को चारों कोने मछली के आसपास से सिल दिए जाते हैं। पत्ते की सिलाई करने के लिए कोई सूई नहीं बल्कि सूखी हुई छोटी-सी टहनी (जिसे हम अपनी भाषा में मेंखिड़खा या फिर सिकुन कड़ी बोलते हैं) का प्रयोग होता है।
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आग में सिकता हुआ मछली का पूर्गा
अब मछली पकाने के लिए आग जलाई जाती है। इसके लिए पहले से ही लकड़ियों का प्रबंध करके रखा जाता है। जब आग कि लपटें तेज़ हो जाएं तब पत्ते में लिपटी मछली को आग में डालते हैं और फिर 10 से 20 मिनट तक आग में अच्छे से पकने देते हैं।
मछली पक जाने पर उसे आग से निकालकर पांच मिनट ठंडा होने के लिए रख देते हैं। इसके बाद पत्ते को हाथों से आराम-आराम से हटाकर मछली खाना शुरू कर के इसके अनोखे स्वाद का भरपूर आनंद लेते हैं।
तो लीजिए, यह थी मछली का पूर्गा बनाने की आसान विधि। आप इसे अपने घर पर भी बनाकर ज़रूर खाएं और हमें बताएं कि कैसा लगा आपको यह व्यंजन।
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पक जाने का बाद मछली का पूर्गा कुछ ऐसा दिखता है
लेखक के बारे में: खाम सिंह मांझी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की है और वह अभी अपने गाँव में काम करते हैं। वह आगे जाकर समाज सेवा करना चाहते हैं।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था