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भारत के भव्य गोंड आदिवासी समुदाय के समृद्ध इतिहास, भाषा और कला को बचाना ही होगा

भारत की आदिवासी संस्कृति ख़तरे में है। तेज़ी से लुप्त हो रही आदिवासी भाषाओं और संस्कृति को बचाने के लिए देश भर में लोग प्रयास कर रहे है। इसके साथ साथ आदिवासी भाषाओं को पुनरजीवित करने का भी लोग प्रयत्न कर रहे है। दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक गोंडी है, लेकिन आज थोड़े ही लोग इस भाषा के बारे में और गोंडवाना राज्य के बारे में जानकारी रखते है। ऐसे लोगों में शामिल है ग्राम तिवार्ता में आए बलरामपुर व सूरजपुर के बच्चे। यह बच्चे यहाँ पढ़ाई करने आते हैं और इन्हें गोंडी भाषा में लिखना वह गोंडी भाषा में पढ़ना भी आता है। यह बच्चे गोंडी भाषा में गाना भी गाते हैं। बलरामपुर से आए हुए बच्चे गोंडवाना स्थल में रुकते हैं, जहां से वह बच्चे पढ़ाई करने के लिए जाते हैं।


बच्चे बताते है गोंडवाना का इतिहास


बलरामपुर से आए हुए बच्चे बताते है कि पंद्रहवीं से सत्तरहवीं शताब्दी के बीच गुणवान राजवंशों का दृढ़ और सफल शासन स्थापित था, जिनके शासनकाल में बहुत से दृढ़, दुर्ग, तलाब तथा स्मारक बनाए और बनवाए गए। इनके शासन की परिधि मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक पहुँचती थी। पंद्रहवीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गुण साम्राज्य थे, जिसमें केरला गढ़, मंडला गढ़, देवगढ़ और चंदा गढ़ शामिल थे।

गोंडवाना राज्य का पुराना नक़्शा, रानी दुर्गावती संग्रहालय, जबलपुर । फ़ोटो- Outlook India


गोंडवाना धर्म की स्थापना पारीक कुपार लिंगो ने शंभूशेक के युग में की थी, इसलिए गोंडी भाषा में जब गाना गाया जाता है, तो लिंगो शब्द का प्रयोग करते हैं। राजगोंड का भारत के जातियों में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका मुख्य कारण उसका इतिहास है। गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने नागपुर शहर की स्थापना की थी और अपनी राजधानी देवगढ़ से नागपुर स्थानांतरित किया था। गोंडवाना की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती, राजगोंड राजवंश की रानी थी। गोंडो का नाम प्रायः खोड़ो के साथ लिया जाता है, संभवत उनके भौगोलिक सानिध्य के कारण से। गोंड जनजाति का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना इस पृथ्वी ग्रह पर मनुष्य। परंतु लिखित इतिहास के प्रमाण के अभाव में यह खोज का विषय है। गोंड जनजाति के प्राचीन निवास के क्षेत्र में आदि के साक्ष्य उपलब्ध है।


गोंड समुदाय द्रविड़ वर्ग के माने जाते हैं, जिनमें जाति व्यवस्था नहीं थी। 6000 वर्ष पूर्व से इनकी विरासत है। एक प्रमाण के आधार पर कहा जा सकता है कि गोंड जनजाति का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से भी है। आज गोंड आदिवासी समुदाय भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है। गोंडवाना कैलेंडर जैसे पहल गोंडवाना के इतिहास और संस्कृति के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सफल रहे है। 1956 से गोंडवाना को एक अलग राज्य बनाने की लड़ाई आज भी शुरू है।


गोंडी भाषा


गोंडी भाषा बहुत ही प्राचीन भाषा है। गोंडी भाषा की अपनी लिपि, व्याकरण, स्वर व्यंजन भी है, जिसे समय-समय पर गोंडी साहित्यकारों ने पुस्तकों के माध्यम से प्रकाशित किया है। गोंडी भाषा की लिपि और धर्म विश्व में सबसे पुराने है। गोंडवाना की सांस्कृतिक और विरासत महान है, लेकिन आज हम अपने गौरवशाली इतिहास को भुलाते जा रहे हैं। गोंडी की अधिकांश बोलियाँ भी अपर्याप्त रूप से वर्जित है। अधिक महत्वपूर्ण बोलियों मे कोया, मुरिया और राजगोंड शामिल है।

गोंडी भाषा कज लिपि, रानी दुर्गावती संग्रहालय, जबलपुर । फ़ोटो- Outlook India


उत्तर पश्चिमी में बोलियों की कुछ बुनियादी विशेषता रही है, जो उन्हें दक्षिण पूर्वी से अलग करती है। उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रो में गोंडी बोली संरक्षित है, जबकि दक्षिण और पूर्वी में गोंडी बोली लुप्त होने की संभावना बनी हुई है।


गोंडी लिपि

गोंडी लिपि दिखाते हुए बच्चे


गोंडी लिपी प्रया: देवनागरी तथा तेलगु लिपीयों मे लिखी जाती है, किंतु इसके लिए गोंडी लिपी भी मौजूद है।

उदाहरण के तौर पर कुछ गोंडी वाक्य:

  1. मोहन हाटुम हत्तोर (मोहन बाजार गया है)

  2. नीमा बातांग किन्तोन (आप क्या कर रहे है)

  3. निया नाटे ऐप्यु (आप के गांव मे क्या है

आज गोंड लिपि के बचाव का काम जारी है, और गोंडी भाषा में शब्दकोश भी बनाया गया है

गोंडी शब्दकोश । फ़ोटो- The Week


मानव धर्म की स्थापना


गोंडी कथाकारों के अनुसार, “शंभू से” अर्थात महादेवी का युग, देश के आगमन से पहले हुआ था। महादेव की पीढ़ी का उल्लेख गोंडी गीत, पाटा, कहानी-किस्से में मौखिक रूप से मिलते हैं। गोंडवाना भूभाग पर आधीसत्ता की कलाविधि ईसा पूर्व लगभग 5000 वर्ष के पूर्व 20000 वर्ष की बताई गई है। इस काल से ही कोया का अर्थ मानव तथा पूनम का अर्थ धर्म, अर्थात मानव धर्म है। आज से हजारों वर्षों पूर्व से गोंड जनजाति द्वारा मानव धर्म का पालन किया जा रहा है।


गोंडी कला

अपनी कला दर्शाते हुए गोंडी कलाकार राम कुमार श्याम । फ़ोटो- Outlook India


गोंड कला लोक कला का ही एक रूप है, जो गोंड जनजाति की उपशाखा प्रधान जनजाति के कलाकारों द्वारा चित्रित भी की जाती है। इसमें गोंड कथाओं, गीतों एवं कहानियों का चित्रण किया जाता है, जो परंपरागत रूप से प्रधान समुदाय के द्वारा गोंड देवी-देवताओं को जगाने और खुश करने हेतु सदियों से गाई जाती आ रही है। प्रधान लोग गोंड समुदाय के यहाँ कथा-गायन करने हेतु जाया करते थे, जो उनकी जीविका का साधन था। जब प्रधान के कथा-गायन की परंपरा कम हो गई, तब प्रधान कलाकार ने इस गोंड कथा-गायन की परंपरा को चित्र कला के माध्यम से साकार करना प्रारंभ किया।

मशहूर गोंडी कलाकार जनगढ़ सिंह श्याम की कलाकृति । फ़ोटो- The Wire


इस पुरातन भाषा को बचाने का प्रयास हमें जारी रखना ही होगा, क्योंकि भाषा के साथ एक पूरी संस्कृति और उसका इतिहास भी लुप्त हो जाता है। गोंड आदिवासियों, गोंडवाना और उनकी भाषा के बारे में हमें बहुत तथ्यों को खोजकर निकालना अभी बाक़ी है।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती है। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वह उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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