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मोती राम से 'गोंडवाना रत्न' बने, मोती रावेन कंगाली की जीवन गाथा

मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित


बात अगर गोंड़वाना समुदाय में गोड़वाना रत्न की आती है, तो इस उपाधि से बहुत ही कम लोगों को संबोधित किया जाता है। गोंड़वाना रत्न का अर्थ होता है, अपने समुदाय के लिए ऐसा अनमोल काम जो अपने समुदाय के लिए निस्वार्थ भाव से किया गया हो। अपने समुदाय के लिए महत्वपूर्ण योगदान, अपना पूरा जीवन अपने गोंड़ समुदाय के लिए देने वाले व्यक्तियों को ही गोंड़वाना रत्न के नाम से संबोधन किया जाता है। जिसमें हमारे मोती रावेन कंगाली जी का नाम सर्वोपरि हैं। जिन्होंने गोंड़वाना के गोंड़ समुदाय के लिए बहुत सारे उल्लेखनीय कार्य किए हैं। जिनमें उनकी सबसे महत्वपूर्ण काम कहा जाए तो, गोंड़वाना लिपि को गढ़ा एवं विकसित किया है। उन्होंने ही पढ़ने समझने के लिए गोंड़वाना साहित्य, इतिहास को हमारे बीच रखा। उन्होंने गोंड़वाना के राजाओं के बारे में और गोंड़वाना के देवी-देवताओं के बारे में बहुत सारे शोध कर, जानकारियां इकट्ठा कर उनपर बहुत सारी किताबें लिखीं हैं। जिन्हें हम आज पढ़कर अपने समुदाय को और बेहतर जानते हैं। इस प्रकार के और भी बहुत सारे योगदान जिन्हें देखकर आज गोंड़वाना समुदाय के लोग उन्हें "गोंड़वाना रत्न" के नाम से पुकारते हैं।

मोती रावेन कंगाली जी की जयंती पर उन्हें याद करते आदिवासी समाज

मोतीराम से गोड़वाना रत्न मोती रावेन कंगाली बनने तक का सफर बहुत ही मुश्किल भरा रहा है। उन्होंने बहुत सारी चुनौतियों का भी सामना किया है। जिसके बारे में आज हम विस्तार से बात करने वाले हैं। मोती रावेन कंगाली जी का जन्म 02 फरवरी सन् 1949 में महाराष्ट्र के विधर्भ के नागपुर जिले के रामटेक तहसील के एक छोटे से गांव दुलार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम छविराम और माता का नाम राय तार था। एक सामान्य परिवार से संबंध रखने वाले मोती रावेन के माता-पिता दोनों ही अशिक्षित थे, फिर भी उन्होंने श्री मोती रावेन कंगाली जी को बहुत ही अच्छी शिक्षा दी। इसी अच्छी शिक्षा के दम पर आज मोती रावण कंगाली जी को हम डॉक्टर की उपाधि भी मिली है, जिस कारण से आज हम उन्हें डॉक्टर मोती रावेन कंगाली के नाम से भी जानते हैं। मोती रावेन कंगाली जी ने बहुत सारी भाषाओं की शिक्षा ली है, जिससे उन्हें बहुत सारी भाषाओं का ज्ञान भी है। जिसमें गोंडी, अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, तुल्लू, लोड़ा, मालतो, कोलमी आदि भाषाएं है। एक सामान्य परिवार से होने के नाते मोती रावण कंगाली अपने परिवार की स्थिति मजबूत करने साथ-साथ वह अपने समुदाय के छुपे इतिहास और साहित्य के ऊपर भी, उनका विशेष ध्यान एवं रूचि भी था। इसके ऊपर उन्होंने निरंतर काम किया था। जिसमें उन्होंने गोंडी भाषा व्याकरण एवं गोंडी भाषा शब्दकोश के दो भाषाओं में शब्दकोश दिए थे, जिसमें एक देवनागरी हिंदी तथा दूसरी मराठी भाषा थी। जिन्हें आज हम लोग गूगल कीबोर्ड में भी देखते हैं। डॉक्टर मोती रावेन कंगाली जी द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण किताब है, जिसे हमलोग गोंडी पुनेम दर्शन के नाम से जानते हैं। जिसमें हमारे गोड़वाना के प्रथम गुरु पारीक कुपार लिंगो जी के द्वारा गोंड समुदाय के पूरी जन्म से लेकर मृत्यु तक की विधाओं के बारे में बताया गया है। इस किताब का नाम ही पारीक कुपार लिंगो गोंडी पुनेम दर्शन का नाम मोती रावेन कंगाली जी ने रखा था। इस किताब की खासियत यह है कि इस किताब को पढ़ने से संपूर्ण गोंडवाना क्षेत्र के गोंड समुदाय के जीवन शैली, नेग-दस्तूर, कला-संस्कृति सभ्यता, गोत्र व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, आदि की पूरी जानकारी इस गोंडी पुनेम दर्शन पुस्तक में मिल जाती है। इसी प्रकार मोती रावेन कंगाली जी ने विभिन्न देवी देवताओं के बारे में भी किताबें लिखें हैं। जिनमें गोंडवाना समुदाय की जन्म स्थल कचारगढ़ एवं गुरु माना की आराध्य देवी मां बमलाई कली कंकाली आदि प्रमुख किताबें हैं। इसके अलावे जिन किताबों की रचना मोती रावेन कांगली ने की है, वे निम्न है: -

  • गोंडी भाषा शब्दकोश प्रथम संस्करण 1982

  • गोंडी भाषा शब्दकोश द्वितीय संस्करण 1982

  • गोंडी नृत्य का पूर्ण इतिहास 1984

  • गोंडी श्लोक गोंडी लिपि परिचय 1984

  • गोंडवाना संस्कृति इतिहास 1984

  • कुंवारा भीमालपेंसा इतिहास 1984

  • गुड़ का मूल निवास स्थल 1983

  • कुराल गढ़ की तिल का दाई 1983

  • डोंगडगढ़ की बमलेश्वरी दाई

  • कली कंकाली दाई

इन किताबों में मोती रावेन कंगाली जी ने ज्यादातर अपने समुदाय के इतिहास के बारे में लिखा है। परंतु मेरा इन पुस्तकों को उनके नामों के साथ दर्शाने का अभिप्राय है क्योंकि आज के जमाने में इनमें से बहुत सारी किताबों की बातें जमीनी स्तर पर हिंदूवादी सभ्यता के प्रभाव में आकर आदिवासियों के विभिन्न देवस्थल आज, हिंदुओं के तीर्थ स्थल हो गए हैं। जहां आदिवासियों के आराध्य देवी-देवता आज हिंदूवादी सभ्यता के संपर्क में आकर भगवान माता दुर्गा के रूप में देखी जाती हैं। इसी तरह गोंड समुदाय के भी देवता भीमाल पेन आज के बजरंगबली के रूप में देखे जाते हैं। यदि समय मिले तो निश्चित ही इन किताबों को पढ़ने की चेस्ट कीजिएगा। जिससे आपको भी मोती रावेन कंगाली जी की नजरों से गोंड समुदाय के इतिहास से रूबरू होने को मिलेंगे। आपको भी यह वास्तविकता दिखेगा, जो इन किताबों में बतलाया गया है। वास्तव में, आज के जो छत्तीसगढ़ के देवी देवताओं के मंदिर है उन्हें आदिवासी संस्कृति से अलग एक हिंदूवादी संस्कृति ने कैसे बदल दिया गया है। इनके बारे में मोती रावेन कंगाली जी ने हमेशा खुलकर ही बात की है चाहे वह खुले मंच हो, चाहे अपने किताबों के माध्यम से हो। मोती रावण कंगाली जी का मोहन जोदड़ो हड़प्पा सभ्यता इतिहास को समझने जानने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है क्योंकि पुरातात्विक विभाग एवं इतिहासकारों ने जब मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता के भाषा को लिपिबद्ध करने के लिए उनमें छिपी लिपियों, चित्रकलाओं को समझना चाहा तो वे असमर्थ रहें।

गोंड़वाना समय द्वारा उनके ऊपर लिखा एक लेख

गोंडवाना समय की रिर्पोट के 'गोंडवाना समय' पत्रिका की रिर्पोट के अनुसार मोती रावेन कंगाली जी ने ही इन्हें लिपिबद्ध किया और गोंडी चित्रलिपि को समझ कर बाकी सभी लोगों को बतलाया। इस प्रकार वे मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता को जानने वाले प्रथम व्यक्ति बने। इस तरह और भी बहुत सारे गोंड समुदाय के ऐतिहासिक जगहों की खोज इन्होंने किया है। जिनमें से कचारगढ़ का भी नाम मोती रावेन कंगाली से जुड़ा हुआ है। हमारे मोती रावेन कंगाली जी ने आज के डिजिटल युग को देखते हुए हमारे गोंड समुदाय की बहुत सारी जानकारियों को एक वेब साइट बनाकर इंटरनेट में संजोए रखने की व्यवस्था की है। जिन्हें हम उनके द्वारा बनाए गए वेबसाइट www.Jaysewa.com जाकर पढ़ सकते हैं। लेकिन, कुछ तकनिकी कारणों से अभी यह वेबसाइट बंद है ।

मोती रावेन कंगाली जी

मोती रावेन कंगाली जी को जब अपने संपूर्ण इतिहास अपने कला संस्कृति सभ्यता के बारे में पता चला एवं उन्होंने जब अपने इतिहास के बारे में गहराई से जाना, तो उन्होंने अपना नाम मोती राम से मोती रावेन कंगाली रखना उचित समझा और उन्होंने अपने नाम से राम को हटाते हुए रावेन को अपना लिया। इसके पीछे बोलने वाले बहुत सारे तर्क देते हैं। कई लोग मोदी रावण कंगाली जी करके संबोधित करते हैं, तो कई लोगों ने मोती रावेन कंगाली करके संबोधित करना उचित समझा। रावण और रावेन में समुदायों की दृष्टि से देखें तो जमीन-आसमान का अंतर दिखाई देता है। अगर हम रावण के पीछे जाएं तो रामायण के पात्र रावण के चरित्रों के हिसाब से रावण शब्द निकला है, लेकिन हमारे गोंड समुदाय में रावेन के पीछे जाएं, तो रावेन उन्हें कहा जाता है, जो अपने समुदाय के लिए निस्वार्थ भाव से काम करते हैं और अपने समुदाय के लोगों को जागरूक करते हैं साथ ही उनमें एक दिव्य ऊर्जा होती है। अपने ज्ञान से अपने समुदाय को जागरूक करने की एक नई दिशा देने के काम करते हैं। उन्हें 'रावेन' कहा जाता है। रावेन मुख्यता जीवित लोगों के लिए उपयोग किया जाता है। तथा उनकी मृत्यु के बाद उन्हें पेन शक्ति बोला जाता है। इसी आधार पर मोती राम को मोती रावेन कंगाली बोला जाता है। ये सभी जानकारियां मैंने गोंडवाना समय पत्रिका, गोंडवाना दर्शन में लिखे ख़बर और लेख से प्राप्त की है।


आज मोती रावेन कंगाली जैसे महान विद्वान समाजसेवी, भाषाविद, पुनेमाचार्य, गोंडवाना इतिहासकार की कमी हमेशा आदिवासी समुदाय को रहेगी। आज इनके जैसे युवा शक्ति की जरूरत हमेशा खलेगी। आज आदिवासी समुदाय में बहुत सारे लोग अच्छे-अच्छे मुकाम पर पहुंच चुके हैं, कई राजनीति के क्षेत्र में आगे जा चुके हैं, तो कई सामाजिक क्षेत्रों में आगे बढ़ चुके हैं और पढ़े-लिखे शिक्षित लोग भी हैं, जिन्हें मोती रावण कंगाली से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस तरह उन्होंने अपने समुदाय, अपने इतिहास को जानने की रुचि रखा और अपने ज्ञान का पूरा उपयोग अपने समुदाय के इतिहास को जानने-समझने में दिया। उसी तरह की सोच, युवाओं को भी अपने समुदाय के लिए कुछ करने एवं जानने की उमंग होनी चाहिए।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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