सूरत द्वारा सम्पादित
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला में रहने वाले बेचन साय की दोनों आँखों को परिस्थिति और बेबसी ने निगल लिया। जब बेचन साय जी अपना सामान्य बचपन बिता रहे थे तभी अचानक एक दिन उनकी आँख में कुछ होने लगा, दर्द हुआ, फिर आँखें बंद हुई। तब से आज तक बंद ही हैं।
सन् 1964-65 के लगभग का समय था। जब इनका जन्म हुआ, यह घटना जन्म के 6-7 साल बाद हुई। उस समय नजदीक में ना कोई डॉक्टर थे और ना ही कोई अस्पताल था और कहीं आने जाने के लिए ठीक से सड़क मार्ग भी नहीं था। ऐसे में अगर किसी को कुछ हो जाता तो वह गाँव में ही रह जाया करता था, बेबस और मजबूर। क्योंकि किसी को ज्यादा कुछ मालूम नहीं था, सब डरते थे बाहर जाने के लिए और वो भी इसी प्रकार डर से गाँव में ही रह गये। उस समय तो लोग डॉक्टर से भी डरते थे, कोई जानकार व्यक्ति भी नहीं था जो ले जाकर जाँच करवा सके। 8-10 साल होने के बाद अस्पताल गये तब डॉक्टर ने जाँच करके बताया कि जाँच करवाने में काफी देर हो गई अब कुछ नहीं किया जा सकता है। निराश होकर वापस आ गये और गाँव में ही जिंदगी से संघर्ष करने लगे। उनकी दुनिया में चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा और सारी उम्र बची हुई थी। घर में दो बहन और एक भाई थे। कुछ दिन बाद उनके पिता का भी स्वर्गवास हो गया इससे सबकुछ बिखर-सा गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था। ऐसे ही जिंदगी चलती रही फिर दोनों बहनों की भी शादी हो गई, वे शादी करके अपनी ससुराल चली गईं। इधर वह अकेले ही बच गये थे, बेबस और मजबूर। लेकिन अब पहले से बड़े और व्यस्क हो गये थे। वे अपने भतीजे के साथ रहने लगे, सारी देखभाल उनका भतीजा और उनके परिवार वाले करते हैं। जब खाने-पीने से लेकर हर चीज की सुविधा मिलने लगा तभी इनके मन में कुछ सिखने और कुछ करने की जिज्ञासा पैदा हुई।करते हुए बेचन साय
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ये बकरियों को बाँधने के लिए रस्सी और बैठने के लिए पैरा का पीढ़ा बनाने की कला सिखने लगे, साथ ही खाट (खटिया) में उपयोग होने वाली रस्सी (निवारा, बगाई) आदि धीरे-धीरे बनाने लगे। आज अपने पूरे घर की खाट बुनने के लिए रस्सी (निवारा, बगाई) बना लेते हैं, और पड़ोसी के लिए भी बना देते हैं। पड़ोसी इन्हें उपहार स्वरूप कुछ कपड़े, पैसे दे देते हैं और कुछ खाने-पीने का समान दे देते हैं। अब बेचन साय की उम्र लगभग 58 वर्ष हो गई है। अब ज्यादा काम नहीं करते हैं खाली घर के लिए ही रस्सी आदि बनाते हैं। जितनी आवश्यक है उतनी ही बनाते हैं, गाँव वालों के लिए अब नहीं बनाते हैं।
रस्सी बनाते हुए बेचन साय
अब ज्यादातर अपना समय अपने भतीजे के बेटे के बच्चों के साथ बिताते हैं। अब हालात पहले से बेहतर हो चुके हैं। परिस्थिति को बेचन साय अब हरा चुके हैं। क्योंकि अब आदत-सी हो गई है। दुनिया अंधेरी है, पर पैरों की आहट से लोगों को पहचान लेते हैं। खास बात यह कि बेचन साय नहाने भी अकेले चले जाते हैं। उन्हें प्रकृति ने जरूर नुकसान पहुँचाया है। लेकिन उन्हें भगवान ने पहचानने, जानने और समझने कि शक्ति दी है। वे अपनी तर्कशक्ति से पेड़-पौधों को पहचान लेते हैं। वे अपनी आसपास की झाड़ियों में चले जाते हैं और साल वृक्ष से अपने लिए दातुन भी तोड़ लेते हैं।
बेचन जी ने हमें बैठने का पीढ़ा और रस्सी बनाने के तरीकों के बारे भी बताएं।
सबसे पहले निवारा बनाने के लिए जंगलों में या मैदान में उगने वाले बगाई डोर को हसिया से काट कर सुखाया जाता है फिर उसे बांधकर रखा जाता है, उसे कुछ दिन बाद निकालकर हल्का-हल्का मुलायम करने के लिए उसमे थोड़ा-थोड़ा पानी छिड़क दिया जाता है जिससे वो मुलायम होकर आराम से रस्सी बनने लायक हो जाता है। फिर दोनों हाथ से थोड़ा-थोड़ा रखना पड़ता और उसे एक-दूसरे के ऊपर लपेटा जाता है। इस प्रकार एक लम्बी रस्सी बन जाती है। बगई से बना हुआ बनाते का बंडल
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इसे एक लकड़ी मे लपेटते रहते हैं जब यह बड़ा बंडल बन जाता है तब दूसरा स्टार्ट करते हैं, इस प्रकार एक निवारा (बगई) बन जाती है इसे अब खाट में गूंथा जा सकता है। ठीक इसी प्रकार पैरा से बनाये जाने वाले पीढ़ा को भी ऐसे ही बनाया जाता है दोनों हाथ में थोड़ा-थोड़ा पैरा लेकर आपस में ही लपेटते हैं, जिससे कि एक लम्बी डोरी बनती है।
इसे एक जगह में गोल-गोल मोड़कर ऊँचा बनाया जाता है जैसे कि एक साँप कुंडली मारकर बैठा हो। ठीक ऐसे ही बकरी बाँधने के लिए भी किसी पुराने कपड़े को फाड़कर बना सकते हैं। आखिरी में गांठ बाँध दिया जाता है जिसे बकरी के गले में बाँधा जाता है।
दुनिया में कई तरह के लोग रहते हैं। उनमें तरह-तरह कि खूबियाँ होती हैं भले ही प्रकृति ने नुकसान पहुँचाया हो या किसी दुर्घटना के कारण कुछ अंग आपाहिज हो गया हो, लेकिन जीना नहीं छोड़ते हैं। और परिस्थितियों से लड़ते हुए अपने हौसले को बुलंद करके नये सिरे से जीना शुरु करते हैं। दुनिया में कई सारे ऐसे व्यक्ति मिल जाएँगे जिसके पास कुछ नहीं होते हुए भी, अपने हौसले और ऊँची सोच की बदौलत अपने जीवन में सफल हो जाते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।