ऐतिहासिक रूप से, दुनिया के कई हिस्सों में बीमारियों को ठीक करने के लिए स्नान पर भरोसा किया जाता है। उदाहरण के लिए, रोम के लोगों का मानना है कि प्राकृतिक झरनों में गर्म स्नान करने से लोगों को बीमारी से बचने में मदद मिल सकती है। इन झरनों में कई मिनरल्स होते हैं जो स्वास्थ के लिए अच्छा माना जाता है। भारत में भी ये मान्यता पायी जाती है और कई जगहों पर लोग औषदीय स्नान का लाभ उठाते हैं।
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छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में भी ये विश्वास है की स्नान करने से शरीर और मन दोनों को लाभ मिलता है। आदिवासी केवल जंगल से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। इसीलिए उनके औषधीय स्नान का सामग्री भी जंगल से ही लाया जाता है। आज हम ऐसे पौधों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी जानकारी आदिवासी अपने पूर्वजों से अर्जित किए हुएं हैं, और उन्हीं के बदौलत आज भी उन पौधों का औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं। आदिवासी जनजाति में यह परंपरा होती है कि अगर कोई व्यक्ति, चाहे वह महिला हो पुरुष हो या फिर कोई बच्चे हो, किसी भी प्रकार की बीमारी से जूझने के बाद अगर वह स्वस्थ होता है, तो उसके कुछ दिनों बाद शरीर को स्वच्छ करने के लिए उन्हें औषधियों वाले पानी से स्नान कराया जाता है, ताकि उनकी यह बीमारी उनके शरीर से दूर हो जाए। जिन पौधों से औषधि बनाई जाती है वह है नीम, नेंगुर पत्ती, और अमरबेल।
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नीम की पत्तियां
नीम को छत्तीसगढ़ी में लिम कहा जाता है, और इसका वानस्पतिक नाम Azadirachta Indika है। नीम की पत्तियां स्वाद में कड़वी होती हैं।इसका प्रयोग प्रायः प्रायः सभी क्षेत्रों में किया जाता है, चाहे वह औषधि के रूप में हो या फिर नीम के तने का प्रयोग दातुन के रूप में। नीम की पत्तियां बहुत फायदे मन्द होती है। जब चावल में कीड़े हो जाते हैं, तब नीम कि पत्तियों को चावल में रख दिया जाता है, तब कुछ समय बाद कीड़े चावल से बाहर निकल जाते हैं। घरों में मच्छरों की संख्या बढ रही हो तब नीम की हरी पत्तियों को आग में जला कर उसके धुआ से मच्छर को भगाया जाता है। शरीर में किसी कारणवश फोड़े फुंसी हो गए या फिर शरीर में कहीं जलन हो तो नीम की पत्तियों को पीसकर उसका लेप लगाया जाता है। नीम की पत्तियों का प्रयोग एंटीसेप्टिक के रूप में किया जाता है। इस वजह से नीम की पत्तियों का प्रयोग आदिवासी जनजाति जब स्नान करने के लिए औषधि तैयार करते हैं।
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अमरबेल लता
अमरबेल का वानस्पतिक नाम Cuscuta है। यह देखने में पीले रंग का होता है। अमर्बेल एक परजीवी लता होती है, रस्सी के समान लंबी होती है। यह कई पेंड़ में लिपटी होती है, जैसे बेर, नेगुर ,अमरूद आदि । लेकिन जिस पेंड़ से लिपटी होती है, उस पेड़ से अपना भोजन प्राप्त कर लेती है। यह लता जमीन पर नहीं उगती यह हमेशा पेंड़ पर ही पाए जाते हैं, इसलिए इसको एक और नाम से भी जाना जाता है, आकाशबेल।आकासबेल का प्रयोग सर्दी खासी जैसी बीमारी में और शरीर को ठंडक पहुंचने में किया जाता है।
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नेगुर की पत्तियां
नेगुर पत्ती हरे रंग की होती है और इसका प्रयोग हम कई औषधि बनाने में करते हैं। इसके तने का प्रयोग दातुन के रूप में किया जाता है। यह स्वाद में हल्का कस्सा होता है। सर के ऊपर किसी कारणवश घाव होता है तब इसके पत्तियों को पीसकर लेप लगाया जाता है। इसकी पत्तियां शरीर में घाव से हमारी बचाव करती है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाती है।
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कैसे स्नान का पानी तैयार करते हैं
हमें ग्राम कपुबहरा के निवासी श्री मंत्री सिंह जी से बातचीत के दौरान पता चला कि यह औषधि बनाने का तरीका और इसका प्रयोग उनके पूर्वजों द्वारा बताया गया है। इस औषधि का प्रयोग पारंपरिक तौर पर आज भी किया जाता है। इसमें दो प्रकार की पत्तियां और एक लता का प्रयोग किया जाता ह। इसकी सामाग्री है नीम, नेगुर,और अमरबेल। नीम पत्ती शरीर को ठंडक पहुंचाती है, और फोड़े फुंसी दाद खाज खुजली को दूर करती है, अमरबेल शरीर में उपस्थित परजीवो को शरीर से हटा देती है, और शरीर को ठंडक पहुंचाती है। इन तीनों औषधियों को मिलाने के बाद जब पारंपरिक औषधि जल बनाया जाता है ,उसके प्रयोग करने पर शरीर में जितने भी उपस्थित जीवाणु होते हैं, वह नष्ट होने लगते हैं। इसलिए पारंपरिक तौर पर उन्होंने बताया कि इस औषधि जल का प्रयोग हमारे पूर्वजों से करते आ रहे हैं। श्री मंत्री जी ने बताया की इस औषधि का प्रयोग वह स्वयं के लिए करेंगे क्योंकि किसी कारणवश उनके गले में मवाद बनने के कारण वह कई दिनों तक अस्पताल में थे, जिसकी वजह से शरीर कमजोर हो गई है और शरीर में खुजली भी हो गई है, इसको ठीक करने के लिए इस औषधि का प्रयोग करेंगे।इस तरह से उन्होंने अपने इस पारंपरिक औषधि स्नान के बारे में बताया।
श्रीमती करण बाई से बात करने के दौरान पता चला कि उनके पूर्वजों द्वारा औषधि का हमेशा से प्रयोग किया गया और आज भी उनके नई पीढ़ी द्वारा इस औषधि जल का प्रयोग किया जाता है,क्योंकि यह शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता शरीर को स्वस्थ और स्वच्छ रखता है।
यह औषधि जल बनाने के लिए एक मटके में आवश्यकतानुसार पानी भर लिया जाता है, उसमें नीम कि पत्ती, नेगुर की पत्ती और अमरबेल तीनों को सामान मात्रा में इक्कट्ठा कर उस मटके के पानी के साथ ज्यादा से ज्यादा १ से २ घंटे तक उबाला जाता है। उबलने के बाद कुछ समय के लिए ठंडा किया जाता है फिर उस पानी को छान लिया जाता है,अब इस गुनगुने औषधि जल का प्रयोग रोगी को स्नान कराने के लिए किया जाता है।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि आज भी आदिवासी लोगों द्वारा प्राकृतिक औषधियों का ही प्रयोग किया जाता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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