महुआ वृक्ष का वानस्पतिक नाम मधुका लॉन्गीफोलिया है, यह एक भारतीय उष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में पाया जाता है। इसकी लंबाई लगभग 25 मीटर होती है और यह वृक्ष छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में अधिक पाई जाती है, हमारे कोरबा जिला में भी यह वृक्ष पाया जाता है।
इस पेड़ में फरवरी से लेकर अप्रैल तक फूल लगते हैं,और फिर इसमें फूल के झड़ने के बाद फल लगना शुरू हो जाता है। महुआ वृक्ष का सभी हिस्सा बहुत ही गुणकारी और उपयोगी होता है। लेकिन किसी कारणवश इस साल हमारे कोरबा जिला के कई ग्रामीण इलाकों में महुआ फूल बहुत कम प्राप्त हुए हैं जिसकी वजह से जो आदिवासी लोग महुआ फूल इकट्ठा करते हैं, उनके चेहरों पर उदासी है। कोरबा में कई लोग हैं जिनकी आजीविका इस मौसम के दौरान फूल एकत्र करने पर निर्भर करती है। चूंकि यह पेड़ वर्ष में केवल एक बार फूल देता है, इसलिए मात्रा में कोई भी कमी लोगों के जीवन को भारी रूप से प्रभावित करती है। महुआ वृक्ष को कल्पवृक्ष से तुलना की जाए तो या गलत नहीं होगा।
लेकिन इस साल जिस तरह से लोग महुआ फूल के झड़ने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, उससे कहीं कम महुआ फूल प्राप्त हुआ है। ग्रामीणों के द्वारा एक मौसम में 5 से 10 क्विंटल महुआ का फूल इकट्ठा कर लिया जाता था, लेकिन इस वर्ष 1 क्विंटल भी इकट्ठा करना मुश्किल हो गया।
श्री कंवल दास जी ग्राम सेवक, जिला कोरबा, के निवासी हैं जिनसे बातचीत के दौरान हमें यह पता चला कि उनके द्वारा वर्ष 2020 में लगभग 5 क्विंटल महुआ का फूल इकट्ठा किया गया था, लेकिन इस वर्ष किसी कारण से महुआ का फूल इकट्ठा नहीं कर पाए जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति में प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा, "हम फरवरी से लेकर अप्रैल तक महुआ का फूल इकट्ठा करते हैं, और उसी से अपना घर चलाते हैं। इस वर्ष इतना कम महुआ इकट्ठा कर पाने से हम किस तरह से अपना जीवन यापन करेंगे?" उन्होंने महुआ के फूल को बहुत ही मूल्यवान बताया। महुआ का फूल ही एक ऐसा फूल है जिसको कंवल दास वर्ष भर अपने घर रख सकते हैं। "जब जब घर में किसी सामग्री की आवश्यकता होती है तो उस सूखे हुए महुआ को हम दुकान में या फिर बाजार में ले जाकर उसका उचित मूल्य प्राप्त कर लेते हैं, और घर की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।" उन्होंने बताया की महुआ का हर हिस्सा बहुत ही उपयोगी होता है, चाहे वह फूल हो फल हो पत्ती हो छाल हो या जड़ हो यह सभी औषधि के रूप में और भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी महुआ के फूल से लाटा बनाकर या फूल में कई प्रकार के चिरौंजी का प्रयोग करके, उसे खाया जाता है। वह सोचता है कि इस साल कम फूल के पीछे का कारण बेमौसम बारिश है जो कि फरवरी और मार्च में हुई थी। तेज़ हवाओं के साथ दो-तीन दिन बारिश हुई जिसने पेड़ों को प्रभावित किया और फूलों की कलियों को नुकसान पहुंचाया।
लोग जहां महुआ फूल को इकट्ठा करने के लिए सुबह 5:00 बजे से महुआ वृक्ष के नीचे पहुंच जाते थे, और 2:00 से 3:00 तक उस महुआ वृक्ष के नीचे रुके रहते थे, वहीं इस वर्ष लोग महुआ पेड़ के नीचे नजर नहीं आते। मवेशी गिने-चुने महुआ के फूल को अपने चारा के रूप में प्रयोग करते नजर आते हैं।
श्री सत्यनारायण सिंह ग्राम बिंझरा के निवासी हैं जिन से चर्चा करने पर हमें यह पता चला कि उनके पास लगभग 18 से 20 महुआ के वृक्ष है, जिन से उनको बहुत अधिक मात्रा में महुआ का फूल मिल जाय करता था। सुबह 4.00 बजे से ही महुआ पेड़ के नीचे पहुँच जाते थे महुआ इकट्ठा करने के लिए। लेकिन इस वर्ष उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा, कि पिछले साल की अपेक्षा बहुत ही कम मात्रा में महुआ प्राप्त हुआ है। कुछ महुआ के पेड़ से तो अभी तक पत्ते नहीं झडे हैं, और कुछ महुआ के पेड़ से अगर पत्ते झड़े हैं, तो फूल निकलने के बजाय उनसे सीधे-सीधे नई पत्तियां निकलनी शुरू हो गई हैं जिसकी वजह से उन्हें महुआ का फूल प्राप्त नहीं हुआ। इससे उनके आर्थिक स्थिति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा, "हम मन ही मन बहुत दुखी हैं कि हमें इस वर्ष महुआ का फूल नहीं मिल पाया है। महुआ के सूखे फूलों को लघुवन उपज समिति में या बाजारों में बेचकर उचित दाम प्राप्त कर लेते थे।लेकिन इस वर्ष महुआ फूल नहीं के बराबर है।"
श्रीमती कामिनी देवी जी, उम्र 35 बरस, से बातचीत करने के दौरान पता चला कि वह सुबह 4:00 बजे से अपने बेटे के साथ उस वृक्ष के नीचे पहुंच जाते हैं, जहां से वे महुआ इकट्ठा करते हैं। कामिनी देवी जी भी एक मध्यम परिवार से हैं और इस साल उनके घरेलु आई में काफी कमी आयी है। उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति पहली बार आई है जब उन्हें बहुत ही कम मात्रा में महुआ प्राप्त हुआ है। उनके पास कम से कम 10 से 15 महुआ के पेड़ हैं जिससे उनको 5 से 6 क्विंटल महुआ प्राप्त हो जाता था, लेकिन इस बार 1 क्विंटल भी नहीं हो पाया है। बाकी लोगों की तरह उन्होंने भी दुख व्यक्त किया।
इस वर्ष महुआ के फूलों की कमी से हमें जलवायु परिवर्तन के महत्व का एहसास होता है। मौसम का प्रभाव हमारे प्रकृति के विभिन्न पेड़ पौधों पर पड़ रहा है । विभिन्न जनजाति अलग-अलग मौसम में अलग-अलग पेड़ पौधों से विभिन्न प्रकार के वन लघुउपज एकत्रित करते हैं, मौसम का प्रतिकूल होने पर लोगों पर इसका असर दिखाई दिया।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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