गांवों तथा जंगलों में रहने वाले ज्यादातर आदिवासी पेड़ पौधों से प्राप्त औषधि का प्रयोग कर अपने रोगों के निवारण करते हैं। इन औषधियों का प्रयोग वे स्वयं भी करते हैं और बेचकर आमदनी भी प्राप्त करते हैं।
ऐसा ही एक पेड़ है आम, आम फल के बारे तो सभी जानते हैं, लेकिन आदिवासी आम पेड़ के छाल का प्रयोग भी करते हैं। पीलिया एवं चर्म रोग में आम के छाल का प्रयोग करने से काफ़ी राहत मिलती है।
पीलिया को गोंडी में मँउरा कहा जाता है 47 वर्षीय महिला महरजियाँ बाई बताती हैं कि सदियों से हमारे पूर्वज पारंपरिक रूप से जड़ी बूटियों द्वारा इलाज करते आए हैं। पीलिया को ठीक करने के लिए आम के कच्चे छाल को पत्थर में पीसकर उसमें से रस निकाला जाता है, फिर उस निकले रस में चुना मिलाकर औषधि बनाई जाती है। उस औषधि के लेप को रोगी के पूरे शरीर में मालिश करके लगाया जाता है, बड़े बुजुर्गों का यह भी सलाह है कि लेप शरीर में ऊपर से नीचे की ओर ही लगाया जाना चाहिए। नीचे से ऊपर लगाने की मनाही होती है। लगातार 3-5 दिनों तक लेप को लगाने से पीलिया का मल बाहर आ जाता है और बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।
गर्मियों में होने वाले फोड़े फुंसियों को भी आम के छाल से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए आम की छाल को पाउडर बनाकर इसके पेस्ट को फोड़े फुंसियों पर लगाते हैं और कुछ ही दिन में फुंसियां गायब हो जाती हैं।
गांव के आदिवासी लोगों को बहुत से जड़ी बूटी अपने ही आसपास से मिल जाता हैं और अपने कई प्रकार के बीमारियों में प्रयोग कर लेते हैं क्योंकि हमारे आदिवासी लोग इन सभी जड़ी बूटी से परिचित हैं। आजकल लोग बाज़ार की दवाइयों का प्रयोग जोरों से कर रहे हैं, जबकि अनेक रोगों का इलाज हम आदिवासियों को पहले से ही पता है। हमें अपनी पारंपरिक ज्ञान को बुजुर्गों से जरूर सीखना चाहिए, इससे हम ख़ुद स्वावलंबी हो पाएंगे और दूसरों पर कम निर्भर होंगे।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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