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टमाटर की खेती कैसे की जाती है

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


टमाटर एक प्रकार की सब्जी है, जिसका उपयोग लोग अपने दैनिक जीवन में भोजन के रूप में करते हैं। टमाटर को पकाकर, अधिक खाया जाता है। और सलाद के रूप में टमाटर को कच्चा खाते हैं। टमाटर को सॉस बना कर भी खाते हैं। टमाटर में अच्छी खासी मात्रा में विटामिन A, विटामिन C और विटामिन K पाया जाता है। जो मानव शरीर को स्वास्थ्य और मजबूत बनाता है।

नर्सरी में तैयार टमाटर के पौधे

टमाटर की खेती करने से पहले, टमाटर का थरहा दिया जाता है। जितने एकड़ में टमाटर लगाना है, उस हिसाब से थरहा देते हैं और एक-दो महीना तक उसका देखभल करते हैं। फिर जाकर, टमाटर का पौधा तैयार होता है। बहुत से किसान नर्सरी से पौधा लेते हैं कि, देखभाल न करना पड़े और सीधा पौधा लगाएं। और यही सोच कर नर्सरी से टमाटर लेते हैं। नर्सरी में किसानों को एक से दो रुपए प्रति नाग के हिसाब से, किसानों को टमाटर का पौधा देते हैं। टमाटर के खेत में खाद डालने और फसल की देखभाल करने के लिए पांच-सात लोगों की जरूरत रोजाना रहती है। टमाटर के पौधों के इर्दगिर्द उगने वाले बनो (घास) की साफ-सफाई करने के लिए आस-पास के लोगों को छः से सात महीनों के लिए पास में ही काम मिल जाता है।

टमाटर लगने के लिए तैयार खेत

टमाटर लगाने के लिए, सबसे पहले खेतों की जोताई कर खेत के मिटटी के कड़े (ढेलों) को तोड़ा जाता है। फिर, खेत में नाली निकलना होता है और सभी नालियों में जो ऊपरी हिस्सा होता है, उसमें ‘डीरीप पाइप’ बिछाया जाता है। पौधों के जड़ों को, पाइप की मदद से पानी और खाद दिया जाता है। टमाटर के पौधे लगाने के लिए, नाली के ऊपरी हिस्से में पौधों को लाइन से लगाया जाता है। इसमें ध्यान दिया जाता है कि, पौधे ज्यादा पास में भी ना हो और ज्यादा दूर में भी ना हो। इन पौधों के बिच में जो दूरी रहती है, उसी दूरी के बीच में बांस का खंभा लगाया जाता है। क्योंकि, जब पौधा बढ़ने लगता है तो उसको सहारे की जरूरत पड़ती है और बिना सहारा के पौधा जमीन में गिर जाता है। और जमीन में गिरने की वजह से फल सड जाता है। उसको रोकने के लिए ही सभी पौधों के लाइनों में खंभा गढ़ाया जाता है और खंभे में तार खींचा जाता है। फिर, तारों में टमाटर को सहारा के लिए बांधा जाता है। कुल मिला कर, टमाटर के पौधों को सहारा देने के लिए, करीबन तीन लाइन तारों को गुथना पड़ता है।

टमाटर से भरा खेत

टमाटर जब फलन-फूलना स्टार्ट करता है। तब शुरुआत में, टमाटर थोड़ा कम पकता है। टमाटर की खेती में, दवाइयों पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। क्योंकि, कौन से समय में कौन सी दवाई का इस्तेमाल किया जाए, यह पता न हो तो फसल बारबाद हो जाता है। इस कारण, दवाइयों का ज्ञान होना बहुत जरूरी रहता है। पौधों में जड़ मजबूत करने के लिए ‘हुमिक एसिड’ का इस्तेमाल किया जाता है। टमाटर की पत्तियों में, फंगस लगने पर फंगीसाइड कवच का छिड़काव किया जाता है। और फल को बढ़ाने के लिए ‘डी ए पी’ का इस्तेमाल किया जाता है। पौधों मैं डहनी के लिए, पोटाश का घोल डीरीप के माध्यम से दिया जाता है। टमाटर को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है और यूरिया का इस्तेमाल पौधे को लंबा करने में किया जाता है। टमाटर की फसल को बचाने के लिए, स्पीयर और डीरीप के माध्यम से खाद एवं दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है।

पक कर तैयार टमाटर

टमाटर के पौधे की अच्छे से देखभाल करने के बाद, टमाटर फलने चालू हो जाते हैं। फिर, किसान टमाटर को तोड़ के बेचना शुरू करता है। टमाटर के पहले खेप को तोड़ने के बाद, फिर आठ-दस दिनों में दूसरा खेप भी फालना चालू कर देता है। टमाटर अपने बढ़ते उम्र के साथ बहुत फलता है। फिर, उसकी उम्र डलने लगती है तो थोड़ा कम फलता-फूलता है और धीरे-धीरे सुखना शुरू हो जाता है।


टमाटर की खेती करने वाले, ग्राम बीजाझोरी के निवासी हेमंत साहू, जो पढ़ाई-लिखाई करने के बावजूद भी अपने पिता के साथ मिल कर सब्जियों की खेती करते हैं। वे अभी वर्तमान समय में, अपनी नौ एकड़ खेत में केवल टमाटर का ही खेती करते हैं और टमाटर को कवर्धा और बिलासपुर के सब्जी मंडी में बेचने के लिए ले जाते हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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