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कृषि के विकास में आदिवासी महिलाओं का योगदान

हमारे भारत देश में महिलाएं हर क्षेत्र में किसी से कम नहीं है। वह हमेशा किसी भी कार्य को करने के लिए अग्रसर होती हैं। चाहे वह प्रशासनिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो, या कृषि क्षेत्र हो, हर विषय में महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। वह अपने कार्यों को पूरी निष्ठा से निभाती हैं, और पूरा करती हैं। महिला से परिवार बनता हैं, परिवार से घर बनता है, घर से समाज बनता है, और समाज से देश बनता है, इसका सीधा-सीधा तात्पर्य यह है, कि समाज के सभी पहलुओं पे महिलाओं का विशेष योगदान होता है। यह कथन आदिवासी और गैर आदिवासी महिलाओं दोनों पर लागू होता है।

महिलाओं के बिना देश का विकास नहीं हो सकता और इसकी मिसाल है महिलाओं का कृषि में योगदान। हमारे छत्तीसगढ़ में मानसून के दस्तक देने के बाद लोगों में व्यस्तता देखने को मिलता है। बारिश के समय महिलाओं का कार्य बहुत बढ़ जाता है। उनका खेती में विशेष योगदान होता है। खेती करने में जितना कार्य और मेहनत पुरुष करते हैं, उतना ही कार्य महिलाएं भी करती हैं।


मैं कोरबा जिला की निवासी हूँ। इस जिले में ज्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं। जिला की आदिवासी महिलाएं हल तो नहीं चलाती हैं, लेकिन खेती करने से पहले वह कई विशेष काम करती हैं, जो खेती के लिए अनिवार्य होती है। अन्य राज्यों में महिलाओं के द्वारा नई नई युक्तियों का प्रयोग करके खेतों की जुताई की जाती है लेकिन हमारे छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के द्वारा हल को छूना मना है। इसे केवल पुरुष ही छू सकते हैं, ऐसी मान्यता है। हल के इलावा महिलाएं बहुत सारा कार्य करती है, आइए उनके बारे में जानते हैं।


खेत में पानी की मात्रा का नियंत्रण : किसी दिन अधिक बारिश होने के कारण नदी नाले का पानी खेत में भर जाता है जिससे खेतों के मेड़ बह जाते हैं, ऐसी स्थिति में पानी के कम होने के बाद ग्रामीण महिलाएं और पुरुष मिलकर फिर से नए मेड़ तैयार करते हैं। मेड़ के सहारे फसल बोने से लेकर फसल काटने तक पानी की आपूर्ति हो पाती है।


खेत में खाद डालना : औरतें घर से गोबर खाद को प्लास्टिक के तगाड़ी या फिर बांस से बनाए हुए टोकरी में भरकर उसे खेतों पर ले जाकर फसल बोने से पहले बीखेर देती हैं। इससे जमीन और ज्यादा उपजाऊ बन्न जाता है। खाद डालने की प्रक्रिया में आजकल सुधार भी हो रहे हैं। कभी-कभी बहुत अधिक खाद प्राप्त होने पर किसी ट्रैक्टर की मदद से उसे खेत में ले जाकर एक जगह इकट्ठा कर दिया जाता है। उसके बाद महिला-पुरुष सभी मिलकर उस खाद को अपने खेत के पूरे हिस्से में फैला देते हैं। खाद को बिखेरने का काम कभी-कभी मानसून से पहले ही कर दिया जाता है। और अधिक खाद होने की वजह से इसे कभी कभी मानसून आने के बाद भी बिखेरा जाता है।

धान को अलग अलग प्रकारों में अलग करना : ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं फसल बोने से पहले उन सूखे फसल को इकट्ठा करती हैं जिसे खेतों में लगाए जाते हैं । धान बोने से पहले महिलाओं के द्वारा धान को सुपा के माध्यम से साफ किया जाता है ये निश्चित करने के लिए की पतले धान और मोटे धान का मिश्रण न हो। छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले अलग-अलग फसल जैसे कोदो, कुटकी, क्रहैनी, इत्यादि फसल कभी-कभी पतले धान में मिश्रित होते हैं। एक प्रकार के धान में अन्य धान के मिश्रण को अलग किया जाता है ताकि फसल काटने के बाद मिश्रित धान प्राप्त ना हो। इसके लिए वह तीन-चार दिन तक लगातार मेहनत करती हैं।

रोपण के लिए धान के बीज तैयार करना : धान की सफाई करने के बाद जिस धान का फसल लगाए जाते हैं, उस धान को 24 घंटे के लिए पानी के साथ किसी बर्तन में भिगो कर रखा जाता है। तत्पश्चात उस धान को किसी बांस से बने पात्र में डाल दिया जाता है ताकि उसका पानी अलग हो जाए और उसे अंकुरित करने के लिए तैयार किया जा सके। अंकुरित करने के लिए उस बांस के बने पात्र में रखे हुए धान को सागौन के पत्ती का प्रयोग करके घर के किसी कोने में बिछा दिया जाता है। उसके ऊपर में धान को रखकर उसे अन्य सागौन के पत्ती से ढक दिया जाता है। ऐसा करने पर धान के फसल में अंकुरण जल्दी होता है।

धान बोना : अंकुरित अनाज को खेतों तक पहुंचाया जाता है। खेतों में बीज बोने का काम किसान द्वारा किया जाता है। फसल के थोड़े बड़े हो जाने पर उन्हें उस स्थान से उखाड़ कर दूसरे खेतों पर रोपा लगाने के लिए महिलाओं के द्वारा ही पहुंचाया जाता है। धान की बुवाई महिलाओं द्वारा की जाती है। फसल के पक जाने के बाद भी महिलाओं का कार्य संपन्न नहीं होता है। वह उन फसल को हसिए की मदद से काटते हैं, और कुछ दिनों के लिए खेतों पर ही छोड़ देते हैं, ताकि वह सुख सके। धान के फसल के सूखने के बाद उसे घर तक लाया जाता है।


यह लेख हमने छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं द्वारा मानसून आने के बाद जो महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है, उनके बारे में अवगत कराना के लिए लिखा है। महिलाएं अपनी मेहनत और पसीने से कृषि को बढ़ावा देती हैं और उसे कायम रखती हैं। मुझे उम्मीद है कि अधिक से अधिक लोग इस क्षेत्र में महिलाओं के महत्व को समझेंगे।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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