पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
हमारे आदिवासी गोंड समाज में, मंगनी-झंगनी प्रक्रिया पुरखा समय से चलती आ रही है। जब हमारे समाज के लड़का-लड़की का उम्र विवाह करने के लायक हो जाता है तो, हमारे आदिवासी गोंड समाज के बुजुर्ग लोग बात चलाते हैं कि, हमारे यहां का mलड़का विवाह करने के लायक हो गया है। और यदि, आप की नजर में कोई लड़की है तो बताइए। फिर, उसके बताए अनुसार लड़का वाले लोग, लड़की को देखने जाते हैं। और अगर, लड़का को लड़की पसंद आ जाए तो, यह मंगनी-झंगनी प्रक्रिया शुरू हो जाता है। हमारे आदिवासी गोंड समाज में मंगनी-झंगनी होने पर सोहरी रोटी का एक विशेष महत्व होता है।
हमारे आदिवासी गोंड जनजाति में समाज के लड़के और लड़कियों की उम्र जब शादी करने के लायक हो जाती है तो, घर वालों को चिंता होने लगती है। तब, लड़के का पिता गांव के सियाना-सियानी और माया-दया के लोगों से बात करते हैं कि, अगर आप लोगों के नजर में कोई अच्छी सी लड़की होगी तो बताएं। फिर उनके बताए अनुसार लड़का का पिता गांव के दो सियाना को लेकर देखने जाते हैं। और वहां जाकर चाय नाश्ता करते हैं। उसके बाद कहते हैं कि, हमन घुमत-फिरत आए थे। और इसी बहाने वे लोग लड़की को देख लेते हैं। उसके बाद, कुछ दिन बाद फिर आयेंगे कह कर वह चले जाते हैं। एक-दो दिन बाद लड़के का पिता, उसी लड़की को देखने के लिए अपने बेटे को भेजता है और जब लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं, तभी बात को आगे बढ़ाते हैं।
तीन-चार दिन बाद, लड़के के पिता गांव के दो-चार सियान को लेकर लड़की वाले के यहाँ जाते हैं और एक रात रुकते हैं। और उसी रात में दोनों तरफ से चर्चा चलता है। लड़के वालों के तरफ से सियान बोलते हैं कि, “कोटना में पेज ला डाल था, तेला मोर थोथना में डाल।” यह बोली पुराने बुजुर्गों का कहावात है। और जब लड़की वालों को अपनी बेटी को देना रहता है तो वह कहते हैं कि, “ठीक है सगा महाराज, हो आना जाना लगे रही।”
एक-दो दिन बाद लड़की वाले सोहरी रोटी लेकर लड़का के यहाँ घर देखने जाते हैं। और बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि, “ठेगाही कब करे?” फिर, दोनों तरफ से दिन-तिथि लेते हैं और कहते हैं कि, फलना तारीख को ठीक रहेगा। ये सब बातें करने के बाद, वे लोग वापस आ जाते हैं। फिर तय दिन आने के बाद, लड़के वाले लोग दो-चार सियान लेकर लड़की के यहाँ जाते हैं और एक रात वहीँ रहते हैं।
सुबह लड़की के घर वाले, गांव के सियान-सियानी लोगों को बुलवाकर चर्चा करते हैं। गांव वालों को बुलवाकर, उसी दिन फिर लड़की के नाम की नारियल तोड़ते हैं। जिसे हमारे आदिवासी गोंड जनजाति के लोग ‘ठेगान्ही’ कहते हैं। फिर, गांव वालों को पान प्रसाद देते हैं और लोग अपने-अपने घर चले जाते हैं। अंत में लड़के वालों को अच्छे से खिला-पीला कर उनको सम्मान पूर्वक ‘लुंगी और कपड़ा’ को संदेश के रूप में सोहरी रोटी के साथ देकर विदाई करते हैं।
फिर कुछ दिन बाद, लड़की के घर सोहरी रोटी लेकर सगाई के लिए पूछने आते हैं कि, इनका सगाई कब करें और बातचीत करने के बाद, दोनों का सगाई करते हैं। सगाई में लड़के वालों को ‘बारतीया’ कहते हैं। लड़के वाले दाल, चावल, तेल, आलू, गुड़, रोटी, बड़ा, नारियल, साड़ी, चूड़ी, पायल, बिछिया, माला आदि चीजें अपने सामर्थ अनुसार लेकर आते हैं।
गांव के बुजुर्ग-सियान के द्वारा बुढ़ा देव को ह्यूमन धुप देते हैं और दोनों तरफ के सियान लड़का-लड़की के पिता समधि भेंट करते हैं। वे एक-दूसरे से गले मिलते हैं, इसके बाद लड़के वाले साड़ी, चूड़ी, पायल और माला को लड़की वालों को देते हैं। सगाई में गांव वाले भी शामिल होते हैं। लड़के वालों के द्वारा लाये गए साड़ी, चूड़ी और पायल इत्यादि को पहन कर लड़की घर के आंगन में निकलती है और सारे लोग उन्हें प्रणाम करते हैं। फिर, सभी लोग लड़की को पैसा देते हैं। इसके बाद लड़की घर के अंदर चली जाती है और दोनों तरफ के सियान लोग नारियल, रोटी और मिटाई को सभी लोगों में बांट देते हैं। उसके बाद, लोगों का खाना-पीना चलता है। खाना खाने के बाद बारतीया लोग विदा लेते हैं। फिर, कुछ दिन बाद लड़के वाले विवाह मांगने, सोहारी रोटी लेकर जाते हैं। इसी दिन विवाह की तिथि तय करते हैं। और इस तरह मंगनी-झंगनी प्रक्रिया संपन्न होती है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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