आदिवासियों के जीवन में कला की कमी नहीं है, खासकर के जीवन जीने की कला इन्हें अच्छे से मालूम है। आसपास में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों से ही ये ऐसे अनेक वस्तुओं का निर्माण कर लेते हैं जो जीवन को सरल बनाते हैं। इन्हीं में से एक है साल के पत्तों से दोना पतरी (पत्तल) का निर्माण करना।
प्राचीनकाल में स्टील, तांबा, कांसा इत्यादि के बर्तन नहीं पाए जाते थे, पाए भी जाते थे तो बहुत ही कम मात्रा में ऊपर से उन्हें खरीदने के लिए आदिवासियों के पास उतना आर्थिक क्षमता भी नहीं हुआ करता था। इसीलिये वे साल के पत्तों से दोना और पतरी (पत्तल) का निर्माण करते थे, जिसमें भोजन परोसा जाता है और खाना बनाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता था। आज भी आदिवासी साल के पत्तों से बने दोना-पतरी (पत्तल) का उपयोग भारी मात्रा में करते हैं। त्योहार, शादी, दशगात्र आदि में आदिवासी अपने मेहमानों को भोजन परोसने के लिए दोना पत्तल का ही उपयोग करते हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के प्रत्येक रीति-रिवाज में साल के पत्तों का उपयोग किया जाता है।
साल के पत्तों से दोना पतरी (पत्तल) का निर्माण करना आसान है, वैसे तो कोई भी इसे बना सकता है लेकिन गिने चुने लोग ही इन्हें बनाते हैं। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के गुरसिया नामक गाँव की एक वृद्ध महिला, श्री मति शाम बाई जी बतातीं है कि "साल के पत्तों से दोना पत्तल बनाना आसान है किंतु पत्ते इकट्ठे करना पहले की तुलना में कठिन हो चुका है। अब पहले की तरह जंगल नहीं हैं, साल के छोटे छोटे के पेड़ नहीं है और न ही छोटे झाड़ जिससे कारण साफ-सुथरे पत्ते नहीं मिल पाते हैं। तेंदू पत्ता तोड़ने के चक्कर में हर साल लोग जंगल में आग लगा देते हैं जिससे साल के छोटे पेड़ और झाड़ जल जाते हैं, बड़े पेड़ों से पत्ते तोड़ने में कठिनाई होती है। एक दो दोना-पतरी (पत्तल) बनाने के लिए पत्ते इकट्ठे करने में कोई कठिनाई नहीं होता क्योंकि एक दोना पत्तल में अधिक पत्ते नहीं लगता है किंतु जब शादी, त्यौहार आदि में मेहमान आते हैं तब अधिक दोना पत्तल की जरूरत होती है। और जंगलों के नहीं बचने से पत्ता इकट्ठा करना अब मुश्किल होता जा रहा है।
दोना पतरी (पत्तल) बनाने के लिए साल के पत्ते और बांस के सींक की जरूरत होती है। सींक बनाने के के लिए बांस को 1-1.5 फीट काट कर उसे पतला फाड़ दिया जाता है, फ़िर उसे सुखाकर रखते हैं। पत्ते तोड़ने में भी यह ध्यान रखा जाता है कि पत्ते ज्यादा नए, ज्यादा पुराने और फटे न हुए हों। मध्यम वर्गी पत्ते ही अच्छे लगते हैं और उनसे बढ़िया दोना-पत्तल बनाया जा सकता है। जब पत्ते इकट्ठे कर लेते हैं तब उसे बांस के सींकों से सीला जाता है। एक दोना में 2 पत्ते लगते हैं और एक पतरी पत्तल में 9-11 पत्ते लगते हैं। यह सीलने वाले के ऊपर होता है कि वह कितने पत्तों का उपयोग कर रहा है। कई लोग उससे अधिक पत्ते भी लगाते हैं। साल के पत्तों से बने दोना या थाली का प्रयोग न सिर्फ़ अपने घर के उपयोग के लिए बनाया जा सकता है, बल्कि यह स्वरोजगार का भी एक बढ़िया साधन है। जो आदिवासी जंगल के क़रीब रहते हैं वे पत्तों से बने इन दोना-थाली को अधिक मात्रा में बनाकर बेच सकते हैं, इससे इन्हें अच्छी-खासी कमाई हो सकती है।
प्राचीनकाल से अब तक हमारे जीवन में बहुत बदलाव हो चुका है, गॉंवों में बसने वाले आदिवासी आज भी अपनी परंपरा को नहीं भूले हैं। आजकल बाज़ार में थर्माकोल से बने दोना तथा थाली धड़ल्ले से बिक रहे हैं, जो पर्यावरण को बुरी तरह दूषित करते हैं। हमें फैक्टरियों में बने थर्माकोल या प्लास्टिक के उत्पादों का प्रयोग न करके पत्ता से बने दोना, थाली आदि का उपयोग करना चाहिए, ये सस्ते भी होते हैं और पर्यावरण को दूषित भी नहीं करते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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