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Writer's pictureShubham Pendro

हाथियों के दहशत से आदिवासी ग्रामीण होते हैं हर वर्ष परेशान

हाथियों के दहशत से वनांचल क्षेत्र में रहने वाले लोग परेशान हो रहे हैं और हाथी के डर से लोग अपने घर को छोड़कर भागने के लिए मजबूर हो रहें हैं।

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला के पोड़ी ब्लाक के अंतर्गत आने वाला कटघोरा वन मंडल का वनांचल क्षेत्र ग्राम पसान, जहां आदिवासियों का बसेरा होता है । उन सभी आदिवासियों के बस्ती में अक्टूबर के माह से हाथियों का बसेरा शुरू हो जाता है, गांव के लोग हाथी के डर से अपने घर, अपने जंगल को छोड़कर शहर की ओर जाने में मजबूर हो रहे हैं। पसान क्षेत्र में लगातार हफ़्तों तक हाथियों का डेरा जमा रहता है। वनांचल क्षेत्र में रहने वाले लोगों का कहना है कि, हाथियों के झुंड ने हमारे फसल के साथ-साथ हमारे घर को भी बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, साथ ही साथ जान की भी खतरा बनी रहती है। हर साल छत्तीसगढ़ में 50 लोगों की मौत हाथियों से होती है। कभी-कभी यह होता है कि खुद को बचाने के लिए यह दूसरे के घरों में जाकर सोने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं। कभी-कभी पेड़ों में रहकर रात बिताते हैं, अगर हम पिछले साल की बात करें तो पिछले साल भी कई लोगों के घर हाथियों के द्वारा क्षति पहुंचाई गई पिछले साल भी सभी लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और इस साल भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।


रात में ग्रामीणों द्वारा गांव में टोली बनाकर चौकीदारी किया जाता है, सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हो रहा है? क्योंकि फसल इकठा करना साल भर की मेहनत होती है और किसानों की साल भर की मेहनत ऐसे ही बेकार हो गई, फसलों को खाने के लिए हाथी सभी खेतों में उतर जाते हैं। हाथी का झुंड दिनभर जंगलों में विचरण करते हैं। जैसे ही 3:00 या 4:00 बजने को आता है। हाथी खेतों की ओर बढ़ने लगते हैं, जिससे किसानों के सभी फसल को नष्ट कर देते हैं। वन रक्षकों ने ग्रामीणों को हाथियों के प्रति जागरूक किया है कि पंचायत का कोई भी आदमी जंगल की ओर ना जाए, जिससे गांव के लोगों को कोई भी तरह का नुकसान ना हो। वन विभाग द्वारा हाथियों को भगाने का प्रयास बहुत जोरों शोरों से किया जाता है, लेकिन वन विभाग के लोग भी हाथियों को भगाने में असफल रह जाते हैं। हाथियों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि उनके आसपास वन विभाग व गांव के लोग नहीं जा सकते, उनकी भी जान को खतरा बनी रहती है। लोग मशाल जलाकर, पटाखा फोड़कर हाथियों को भगाते हैं।

शिवप्रसाद गोंड

ग्राम खमरिया के निवासी 35 वर्षीय शिवप्रसाद गोंड एक किसान हैं जिनका काम सिर्फ फसल लगाना है, वे हर मौसम में फसल लगाने का काम करते है उन्होंने हमें बताये की नोहर लाल और रामलाल के घरो को छती पहुंचाने के साथ-साथ उनके फसल को भी नष्ट कर दिया जिससे उनको लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। हाथियों के उत्पात मचाने से ग्रामीण बहुत परेशान हैं हाथियों के तोड़फोड़ को देखकर ग्रामीण आदिवासियों के होश उड़ जाते हैं। हाथियों को भगाने के लिए ग्रामीणों ने ऐसे बहुत से प्रयास किए लेकिन सभी प्रयास असफल रहे।


आप सभी भली-भांति जान रहे हैं कि,पहले की अपेक्षा अब कहीं पर घने जंगल दिखाई नहीं देते हैं, सभी तरह के जंगलों को इस तरह उजाड़ा गया है कि जंगलों के भी जानवर अब गांव की तरफ बढ़ने लगे हैं जो लोग जंगलों के किनारे निवास करते हैं। उन्हीं लोगों को जानवरों का सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है। अगर हम शहर की बात करें, तो जंगल के जानवर शहर की ओर नहीं बढ़ते क्योंकि वह जंगलों से है। पहले घने जंगल होने के कारण जानवरों को खाने पीने की कोई भी समस्या नहीं होती थी। लेकिन जैसे-जैसे पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई होने लगी तब से जानवरों के रहने के स्थान, उनके खाने पीने की व्यवस्था भी खत्म होती चली गई। अगर हम पहले की बात करें तो, कहीं पर ऐसा सुनने में नहीं आता था परंतु आज सभी जगह हाथियों के वजह से दहशत का माहौल छाया हुआ है। हाथियों के द्वारा अभी लोगों में जो गंभीर स्थिति बनी हुई है, वह सिर्फ लोगों के स्वार्थ के कारण बनी हुई है।


हम जितना ज्यादा जंगलों की अंधाधुंध कटाई करेंगे, जितना ज्यादा हम जंगलों को छति पहुंचाएंगे, जंगल के जानवर इंसानों को भी चोट पहुंचाने में पीछे नहीं हटेंगे।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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