मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित
आप सभी जानते हैं कि, मच्छरों के काटने से मलेरिया हो जाता है। इसलिए, आदिवासी इससे बचने के लिए कई तरह की चीजों का उपयोग करते रहते हैं। आदिवासी बिना किसी खर्चे के ही अपने आस-पास होने वाले इन उपयोगी पौधों का उपयोग कर अपने और अपने परिवार को सुरक्षित रखते हैं। गांवों और शहरों दोनो जगहों पर अलग-अलग तरीकों से मच्छर को भगाने का काम किया जाता है।
बरसात के दिनों में जगह-जगह गढ़ों में पानी जमा हो जाता है। कहीं नालियों में तो, कहीं कोई प्लास्टिक की चीजों में यह पानी अत्यधिक दिनों तक रहने पर उसमें छोटे-छोटे कीटाणु पैदा होने लगते हैं। आजकल तो लगभग सभी के घर बोर, हैंडपंप, कुएं हैं और बहुत गांवों में तो नल जल योजना के तहत घर-घर नल की सुविधा हो गयी है। जिससे गांव के लोगों को विभिन्न उपयोग के लिए पानी घर से ही मिल जाता है। नदियों, तालाबों में जाने की जरूरत ही नही पड़ती है। इसलिए, गांव के आदिवासी लोग घर मे ही नहाना-धोना जैसे घरेलु काम घर में ही करते हैं। जिससे गांव में घर के आस-पास नाली या गड्ढों में गंदे पानी जाम हो जाते हैं। जिसके कारण अनेकों प्रकार के छोटे जीव उत्पन्न होने लगते हैं। इन्हीं में से एक मच्छर भी है, जो गंदगी से ही उत्पन्न होती हैं।
ये मच्छर हमारे आस-पास ही रहते हैं। और दूसरी बात यह भी है कि, बरसात के समय में लगातार बारिश से हमारे घरों के आस पास अनेकों प्रकार के पौधे भी उग जाते हैं। साथ ही बरसात के समय गाँवों में सभी अपने-अपने बाड़ी में गाजर, मूली टमाटर, आलू, भुट्टा जैसे साग-सब्जी वाली चीजे लगाते हैं। जिसके साथ-साथ अन्य प्रकार के झाड़ भी उग जाते हैं। जो की मच्छरों को रहने लिए एक उपयुक्त बन जाता है। ये गीली एवम ठंडी जगह मक्खी मच्छर के रहने का ठिकाना बन जाता है। शाम होते ही ये मच्छर घर के अंदर आ जाते है। यही वह समय होता है, जब मच्छरों से बचना होता है। क्योंकि, कहा जाता है कि, इस समय में मच्छरों का काटना लोगों पर ज्यादा असर करता है। जिससे लोगो को मलेरिया सहित अन्य कई तरह की बीमारियां जैसे डेंगू, चिकनगुनिया आदि होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए, लोगों को इन सब से बचने की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है।
गांव में ज्यादातर मच्छरों से बचने के लिए उपयोग की जाने वाली चीज नीम के पेड़ के पत्ते हैं। जिसकी पत्ती को जलाकर लोग मच्छर को भगाते है। वैसे तो नीम की हर एक चीज उपयोगी है, परंतु नीम की पत्तियों को जलाने से निकलने वाले धुएं बहुत ज्यादा कड़वे होने के कारण मच्छर इसके प्रभाव में आते ही भाग जाते हैं। यही वजह है कि ये पत्तियां मक्खी-मच्छर भगाने के लिए गांव घरों में सबसे ज्यादा काम में आती हैं। पत्तियों को जलाने के बाद उसके बचे छोटे-छोटे डंडियां दातुन करने के काम आते हैं। जो कि दांतो के साथ-साथ मुंह से संबंधित तकलीफों को भी ठीक करता है। आजकल इसके फल तथा पत्ते का जूस भी पीना लोगों को फायदेमंद साबित हो रहा है। जिससे मधुमेह जैसी बीमारियां भी नियंत्रित रहता है। इस पत्ती के उपयोग के लिए किसी भी प्रकार का पैसा खर्च नही करना पड़ता है क्योंकि यह नीम का पेंड गांव में घरों के आस-पास ही मिल जाते हैं। इसके अलावा गांव के लोगों के पास दूसरा उपाय मच्छरदानी है, जिसको लगा कर सोने से भी मच्छरों से बचा जा सकता है।
यदि शहरों की बात करें तो, शहरों में तो गांवों से भी ज्यादा मच्छर होते है। गांवों में तो सिर्फ बरसात के समय ही अधिक मच्छर होते हैं। लेकिन, शहरों में प्रायः हमेशा ही मच्छरों का आतंक व्याप्त रहता है, चाहे गर्मी हो या बरसात। इसका मुख्य कारण है, शहरों के नालियों की नियमित सफाई ना होना। शहरवासियों को तो हमेशा पंखे और मच्छर मारने की दवाई की जरूरत पड़ती रहती है, जो एक प्रकार से अतिरिक्त धन खर्च है।
ग्राम पंचायत छुरी खुर्द, ग्राम झोरा के लीलम्बर सिंह जो कि एक बुजुर्ग व्यक्ति हैं। उनका कहना है कि, पहले पंखे नहीं होते थे और ना ही मच्छरदानी होते थे। क्योंकि, गांव-शहरों में इतनी गंदगी नहीं होती थी। जिसके कारण मक्खी-मच्छर नहीं के बराबार होते थे। लेकिन, आजकल गांवों में मच्छर होने का एक बड़ा कारण सभी घरों में शौचालय का होना है। शौचालय होने से ही मच्छर गांव में ज्यादा हो गए हैं। पहले गांव के लोग सिर्फ नीम की पत्ती को जलाकर ही मच्छर भगाने का काम करते थे। अब तो दूकानों में मच्छर भगाने के अनेकों चीज मिलते हैं। जैसे बैटरी से चलने वाली मॉस्किटो बैट, ऑल आउट, मोस्किटो कोइल इत्यादि। फिर, भी मच्छर बहुत ज्यादा हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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