पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
गोंड़ी धर्म संस्कृति, विश्व संस्कृति की जननी है। व्यक्ति से परिवार और परिवार से समाज का निर्माण होता है, हर समाज की अपनी रीति-नीति, परंपरा और संस्कृति ही समाज की पहचान होती है। गोंड़ समुदाय के लिए धर्म पिता और भाषा माता समान होती है। इनकी संस्कृति व कला गोंड़ी समाज की एक विशेष पहचान है।
गोंड़ी धर्म की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने व भय और भ्रम को मिटाने तथा नेग-जोग, रूढ़ी संस्कृति व परंपरा को संरक्षित करने के एवज में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। गोंड़वाना लैंड का एक छोटा सा भू-भाग जो कबीरधाम जिला में भोरमदेव के नाम से जाना जाता है, जिसे छत्तीसगढ़ का खुजराहो भी कहा जाता है, एवं गोंड़ों के उपास्य स्थल के नाम से भी जाना जाता है। जहां राष्ट्रीय गोंड़वाना स्वजातिय सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया। गोंड़वाना गुरुददा परम श्रद्धेव ‘दुर्गेभगत जगत’ जी एवं गुरुदाई ‘दुर्गेदुलेश्वरी’ के आशीर्वाद एवं सानिध्य में विवाह का कार्यक्रम रखा गया था।
इस दो दिवसीय गोंड़वाना सामूहिक विवाह में बहुत सारे जिलाओं के गोंड़ समुदाय के लोग अपने-अपने पुत्र-पुत्री का विवाह कराने आए थे। जिसमें 30 जोड़ी लड़का-लड़कियों के विवाह का आयोजन हुआ था। और लड़का-लड़की पक्ष को समुदाय की ओर से मंडप और विवाह में उपयोग होने वाले उपयोगी वस्तुएं जैसे मंगरोहन, पर्रा, मटकी, झापी आदि का वितरण भी किया गया था। गोंड़वाना स्वजातीय सामूहिक विवाह में बहुत सारे गोंड़ समुदाय के लोगों का सेवा भावना भी देखने को मिला। जिसमें सभी गोंड़ लोग अपना योगदान दे रहे थे। वे लोग शांति व्यवस्था एवं अनुसाशन का पालन करते हुए अपना श्रमदान भी कर रहे थे।
गोंड़वाना सामुदायिक विवाह के चुलमाटी रस्म में, गोंड़ी नृत्य एवं गोंड़ी गीत गाते हुए महिला व पुरुष एक साथ नाचते हुए चल रहे थे। और साथ ही नए युवाओं के द्वारा अखाड़ा करतब दिखाए जा रहे थे। जिसमें डंडा करसना खेल, आग उगलना, आग को घूमना, आरी व तलवार आदि के करतब दिखाए जा रहे थे। और चारों तरफ उत्सव का माहोल गोंड़ समुदाय के लोगों में दिखाई दे रहा था। जिसमें नाचते-झूमते सब एक साथ चुलमाटी गए और सभी मंडपों के मध्य में एक बड़ा से स्टेज बना हुआ था। जहाँ आदिवासी सांस्कृतिक नृत्य देखने को मिल रहा था। जिसमें बहुत सारे गोंड़ युवा-युवती नृत्य करने के लिए आए थे। जो हर एक रस्म के बाद एक नया समूह अपना कर नृत्य दिखाता था।
विवाह के कार्यक्रम को गोंड़ समुदाय के रीति-रिवाजों से आगे बढ़ाया गया, जिसमें गुरुददा परम श्रद्धेव दुर्गेभगत जगत जी एवं गुरुदाई दुर्गेदुलेश्वरी के निर्देशों पर विवाह रस्म को आगे बढ़ाया गया। जिसमें गुरुददा के द्वारा पांडा-पुजारी को आदेश दिया जा रहा था और पांडा-पुजारी जो सभी मंडपों के रस्में करवा रहे थे, वे गुरुददा के आज्ञा का पालन कर रहे थे।
वर्तमान में, बहुत से गोंड़ समुदाय के लोग जो शहरो में रहते हैं। उनके द्वारा विवाह कराने के लिए महाराज बुलाया जाता है। लेकिन, गोंड़ समुदाय के रीति-रिवाजों को वो महाराज कहां से जानेगा? जो गोंड़ समुदाय के रीति-नीति से गोंड़ विवाह कराएगा। इसलिए, गोंड समुदाय के विवाह में गोंड़ समुदाय का ही एक पंडा-पुजारी (दोषी, सुवासिन, ढेढहा) जो रिश्ता में लड़का पक्ष की ओर से या लड़की की ओर (बुआ, फूफा, दीदी-जीजा) से रहता है। जिनके निर्देशों पर विवाह के कार्य को आगे बढ़ाया जाता है।
सामूहिक विवाह में सामूहिक हरदाही का दृश्य भी देखने को मिला। जिसमें गुरुददा और गुरुदाई स्वयं सभी मंडपों में जाकर हरदाही रस्म किए हैं। और उनके मंडप में नृत्य भी किए हैं, यह दृश्य देखने लायक था। क्योंकि, 30 मंडपो में एक साथ हरदाही कर रस्म देखने को मिला। जिसमें हजारों लोग एक साथ नृत्य कर रहे थे और एक दूसरे को हल्दी लगा रहे थे। हरदाही का रस्म पूर्ण हो जाने के बाद, दुल्हा-दुल्हीन पक्ष बरात के लिए तैयार हुए और बरात गए। और बारात के टिकावन में एक और गोंडवाना रिवाज के साथ टिकावन बैठाया गया। और बैलगाड़ी में जिस जुड़े से बैल को बांधते हैं, उसी जुड़ा का उपयोग पुराने समय से गोंड़ समुदाय में उपयोग किया जाता है। जब दूल्हा-दुल्हीन टिकावन में बैठते हैं तो, उसी जुड़ा में बैठते हैं।
बलौद बाजार के रहने वाले तिरुमान महेश ध्रुव जी का मत है कि, “सामुदायिक विवाह के जरिए उन गरीब परिवारों की मदद किया जाता है। जो लोग अपने पुत्र-पुत्री के विवाह करने में अक्षम है, ऐसे परिवार को लाभ देना सामुदायिक विवाह का मुख्य उद्देश्य भी रहता है, साथ ही अपने गोंड समुदाय के रीति-नीति को भूल रहे लोगों को ज्ञात कराना कि, उनके समुदाय में कैसे रीति-नीति का उपयोग किया जाता है।”
गोंड़वाना स्वजातिय सामूहिक विवाह का मुख्य उद्देश्य यह था कि, जो गोंड़ समुदाय के लोग अब नए क्षेत्रों में निवास करने लग गए हैं और जो अपने रीति-नीति को भूलते जा रहे हैं। उनको इस सामुदायिक विवाह के जरिए असल गोंड़ समुदाय के विवाह के रीति-नीति, परंपरा से अवगत कराना था।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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