ग्राम कापू बहरा में शौचालय बनने का काम चल रहा है और आप सभी जान रहे हैं कि गाँव में होने वाले सभी काम को गाँव में रहने वाले लोग ही संपन्न करते हैं। लेकिन मनरेगा के तहत आने वाले काम को वही लोग कर पाते हैं जिनके पास मनरेगा जॉब कार्ड है। जिनके पास जॉब कार्ड नहीं है, उन्हें काम नहीं दिया जाता। यह एक सरकारी योजना है और सभी के पास जॉब कार्ड होना अनिवार्य बना दिया गया है। मनरेगा के अंतर्गत ऐसे बहुत से काम आते हैं जिस काम को गाँव के लोग कर सकते हैं। जैसे, तालाब खुदाई, कुआँ खुदाई, गहरीकरण करना, सभी के घरों में एक-एक शौचालय बनाना, खाली जगहों पर वृक्षारोपण करवाना, कच्चे रास्ते तैयार करवाना ऐसे बहुत से काम हैं जो मनरेगा के तहत आते हैं। और इन कामों के साथ वही जुड़ सकते हैं जिनके पास मनरेगा जॉब कार्ड है। इसमें एक व्यक्ति को साल में 100 दिनों तक काम करना पड़ता है।
हमने कापू बहरा के मनरेगा का काम करने वाले निवासियों से बातचीत की। सबसे पहले हम नरेश कुमार जी से मिले जो मिस्त्री हैं। वे ईंट जोड़ने का काम करते हैं और उनकी उम्र 30 साल है। उन्होंने बताया कि वे लोग मनरेगा के अंतर्गत ठेका लेकर काम करते हैं। फिर हमने एक महिला से बात की जिनका नाम रामशिला बाई है। उनकी उम्र 40 साल है। उन्होंने बताया कि वे रेजा का काम करती हैं। उनका काम होता है मसाला बनाना, ईंट पहुँचाना, पानी लेकर आना, काम करने में मदत करना। वे सुबह 9 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक काम करती हैं और उनकी रोज़ी 190 रुपये है। लेकिन मनरेगा का पैसा मिलने में साल लग जाता है। उन्होंने कहा कि जिस समय हमें पैसे की जरूरत होती है उस समय मनरेगा का पैसा नहीं मिल पाता और अक्सर यह देखा जाता है कि मनरेगा में काम करने वालों का पैसा हमेशा देरी से ही मिलता है। या तो उनका पूरा पैसा रुका रहता है या बहुत देरी से कुछ मिलता है। हमेशा लोगों को अपनी मेहनत की कमाई को पाने के लिए बहुत लम्बा इंतजार करना पड़ता है।
आप सभी जानते हैं कि अभी कोरोना काल चल रहा है। अभी भी लोगों को बाहर जाने से मना किया जाता है। और काम मिल पाना मुश्किल हो गया है, लेकिन गाँव में कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है। लेकिन उसमें पैसे बहुत ही कम मिलता है। सुबह से काम करते करते शाम हो जाती है और दिन भर की कमाई सिर्फ 190 रुपये या इससे भी कम होता है। लेकिन गाँव के लोग क्या करें, अपना जीवन चलाने के लिये उन्हें कम पैसे पर भी काम करना पड़ता है। अगर वे काम नहीं करेंगे तो अपना घर व अपना जीवन कैसे चलाएंगे! इससे पहले जब मनरेगा का काम होता था तो चेक मिला करता था। उस चेक को पोस्ट-ऑफिस में जमा करने के बाद उन्हें तुरंत पैसा मिल जाता था। लेकिन चेक मिलने में ही बहुत देरी हो जाती थी। एक समय नकद पैसे हाँथ में भी दिया करते थे पर अब लोगों को उनके अकाउंट में पैसे मिलते हैं। लेकिन पहले की तरह अब भी समय पर पैसा नहीं मिलता है। साथ ही जॉब कार्ड के महत्त्व की पूरी जानकारी न होने के कारण अभी भी बहुत लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं है जिसकी वजह से वे कार्ड का लाभ नहीं उठा पाते।
गाँव के लोगों में जागरूकता लाना
अगर सभी गाँव के लोगों को मनरेगा के तहत आने वाले काम, मनरेगा से जुड़ने की प्रक्रिया, जॉब कार्ड के महत्त्व की जानकारी और उससे होने वाले फायदों के बारे में जागरूक किया जाये तो गाँव के लोग सही मायने में इस योजना का लाभ उठा पाएँगे और लोगों को रोजगार मिलेगा। हम जानते हैं कि ऐसी बहुत सी योजनाएं हैं जिनसे जुड़ कर लोग लाभ उठा सकते हैं लेकिन जानकारी के आभाव में लोग उनसे वंचित रह जाते हैं। जैसे मजदूर कार्ड से मजदूरों को फायदा होता है लेकिन अधिकाँश लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। इस कारण वे मजदूर कार्ड का भी फायदा नहीं उठा पाते हैं। गाँव के लोगों में इन तमाम योजनाओं को लेकर पर्याप्त प्रचार की जरुरत है।
रोजगार गारंटी से मिला हुआ पत्रक
रोजगार गारंटी में काम करने वालों को एक पत्रक दिया जाता है। हमनें नावापारा के निवासी अक्षय कुमार से बात की, उन्होंने हमें बताया कि रोजगार गारंटी के तहत उन्होंने कुआँ खुदाई का काम किया और कुआँ बनकर तैयार भी हो गया लेकिन अभी तक उन्हें अपने काम का पैसा नहीं मिल पाया है।
एक तरफ तो उचित जानकारी के अभाव में लोगों तक योजनाएँ पहुँच नहीं पाती और जिन्हें मिलती भी है तो दिन-दिन भर मेहनत करने के बाद भी उनको समय पर पैसा नहीं मिलता है। गाँव के मजदूरों को उनके काम का उचित दाम मिलना चाहिए और सभी वर्गों के लोगों को इन योजनाओं से जुड़ने का अवसर मिलना चाहिए ताकि सभी को रोज़गार मिल सके।
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यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।
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