पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
केले के पौधे से हमें कई तरह के लाभ मिलते हैं, उसके फल-फूल से लेकर, जड़ तथा इसके पत्ते का उपयोग, औषधि के रूप में एवं फल-फूल का उपयोग, खाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह फायदेमंद होने के साथ ही इसका उपयोग महत्वपूर्ण कार्यों के भी लिए भी किया जाता है। कच्चे केले का उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है, जो की बहुत स्वादिष्ट होता है। केला का पौधा बड़ा और छोटा, दोनों प्रकार का होता है।
केले का पौधा देखने में बहुत ही सुंदर और हरा-भरा दिखता है। इसको कुआं के पास, बोरवेल तथा जल की अत्यधिक उपलब्धता वाले स्थान पर लगाना चाहिए। क्योंकि, केला बहुत अधिक मात्रा में पानी लेता है। केले का पौधा, जब बड़ा हो जाता है, तो इसमें फूल आना शुरू हो जाता है। फूल को सब्जी के रूप में अच्छे से धोकर, सब्जी के तौर पर पका कर खाते हैं। और इसके फूल को औषधि के रूप में भी, विभिन्न प्रकार के बीमारियों के इलाज, जैसे पीलिया, पेट-दर्द और पतला पेचिश आदि के लिए, दवाई के रूप में उपयोग में लाया जाता है। केला को गांव में घर-घर में लगाया जाता है और यह शहरों में भी पाया जाता है। इसके अलावा पहाड़ों में भी, वन केला पाया जाता है, इसके पत्ते को भी अनेक प्रकार के कामों के लिए उपयोग में लाया जाता है।
केले के पत्ते को आमतौर पर शुभ-कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है, इसके पत्ते बहुत बड़े-बड़े होते हैं, इसलिए इसके पत्ते को छोटा-छोटा काटकर लोगों को भंडारा खिलाया जाता है। केले के पत्ते को त्यौहार पर सजाया जाता है, एवं इसके फूल को औषधि के रूप एवं सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण एवं गुणकारी होता है।
केला फल का उपयोग औषधि के रूप में, पीलिया बीमारी के लिए इलाज के लिए किया जाता है। इसके लिए केला को तीन दिन तक, एक-एक करके, तीन केले को चूना के साथ खाना होता है। चुना को एक केला में, अच्छे से पोथकर, रात-भर छत के ऊपर में रखा जाता है। जिससे उसमें अच्छे से शीत पड़ जाता है। उसके बाद, उसे पीलिया मरीज को सुबह, सूरज उगने से पहले, केले का छिलका को निकालकर खिलाया जाता है। ऐसा लगातार तीन दिन तक निरंतर करने से, पीलिया से निजात मिल जाता है।
केले के फूल को धूप में सुखाकर, बारीक पीस कर भी खाते हैं। इससे पेट दर्द दूर होता है, साथ ही कच्चा केला खाने से भी पेट दर्द में राहत मिलता है। और पेचिश से पीड़ित व्यक्ति को खाली पेट में, तीन पके केले निरंतर खाने से, इस बीमारी से निजात मिलता है। चूँकि, केला खाने के बाद दो-तीन घंटों में, शरीर को ऊर्जा और आराम मिलता है। इस कारण केले का उपयोग औषधि क्षेत्र के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
केले के छिलका का भी, औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके छिलका को धूप में सुखाकर, चूर्ण बनाकर रख सकते हैं। ताकि जरूरत पड़ने पर औषधि के रूप में, उसका प्रयोग किया जा सके। इसका सेवन करने से शरीर को कोई हानि नहीं होता है। केले में लोहा का मात्रा अधिक पाया जाता है, जो कि हमारे शरीर के लिए लाभदायक होता है।
आमतौर पर केले की पत्ती का उपयोग, पूजा-पाठ के लिए प्रयोग में लाया जाता है। हिन्दुओं के लक्ष्मी पूजा के दिन, केले के पत्ते से, बैल को खाना खिलाया जाता है, एवं दीपावली में इसके पत्ते और पौधे का उपयोग साज-सजावट में किया जाता है। और पूर्णिमा के दिन, केला के पत्ते में भोजन करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
हमारे आदिवासी गोंड जनजाति के लोग, केले के पत्ते को, बहुत ही अच्छा एवं शुद्ध मानते हैं। केले का पत्ता बहुत ही बड़ा होता है। एक पत्ता को चार-पांच भागों में काटकर, उसमें खाना खाया जा सकता है। हमारे आदिवासी जनजाति के लोग भी, केले की खेती करते हैं। एक पौधे में एक बार ही फल लगता है, इसके बाद वह मर जाता है। फिर उसमें नया पौधा जड़ से उग आता है, इस तरह से लगातार केला का नया पौधा जड़ से उगता रहता है और फल लगने के बाद समाप्त हो जाता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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