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Writer's pictureParmeshwari Pulast

आइये जानें, गर्मी के फसलों को बचाने के लिए, किसान क्या-क्या उपाय कर रहे हैं

Updated: May 29, 2023

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसान भाई लोग, अपने बाडी-कोला को, छेकाव-बचाओ के लिए, रुंधना-बंधना बनाने के लिए, छोटे-छोटे झाड़ियों को काट कर लाते हैं। और अपने फसलों को बचाने के लिए, रूंधना बनाने का काम करते हैं। नरेंद्र सिंह सोरी, जिनकी उम्र 45 वर्ष है, और नेम सिंह सोरी, जिनकी उम्र 35 वर्ष है। अभी यह दोनों किसान भाई, अपने-अपने फसल बचाव कर रहे हैं। क्योंकि, इस समय में, फसलों के नुकसान होने की ज्यादा संभावना रहती है।

इस क्षेत्र के अलावा दूसरे क्षेत्रों को देखा जाए, तो बांस या रवाई से उधना बनाया जाता है। और इस क्षेत्र के लोग, ‘झुउरनठी-बजरबटी के देवना’ के नाम से, इस क्षेत्र के लोग जाने जाते हैं। यह झाड़ियाँ, ज्यादातर सूरजपुर जिले में देखने को मिलती है। इन्हीं झाड़ियों से, घोरना-रूंधना बनाया जाता है। इन झाड़ियों को काटने में, लोगों को परेशानियां भी होती हैं। चूँकि, इसमें नुकीले काँटे भी होते हैं और इनके चुभने भर से, बुखार होने का खतरा रहता है। इसलिए, इन झाड़ियों को काटते समय, बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है।

झाड़ियाँ काटकर लाते हुए, नरेंद्र सिंह सोरी

गर्मी के मौसम में में, सभी गांव के लोग, अपने-अपने बैल, गाय और बकरियां को छुट्टा (खुला) छोड़ देते हैं। इसलिए, फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। पूर्व और वर्तमान के समय में, बस इतना फर्क है कि, पहले के लोग, सभी महीनों में अपने-अपने गाय, भैंस और बैल को संभाल कर रखते थे और अभी के समय में छुट्टा छोड़ दिया जाता है। छुट्टा छोड़ देने के कारण, सभी किसान भाइयों के फसलों को नुकसान होता है। इस कारण, किसान लोग, रवाई-रुंधना बनाने का काम, अभी से ही शुरू कर चुके हैं। ताकि, उन लोगों का फसल बच जाए और किसी प्रकार का नुकसान ना हो, और अच्छा-खासा फसल हो पाए।

घोरना-रूंधना बनाते हुए, नेम सिंह सोरी

गौठान निर्माण हो जाने के बावजूद भी, ग्रामीणों के फसलों को नुकसान पहुंचता है। क्योंकि, गांव के लोग, अपने-अपने पशुओं को तो संभालते हैं। मगर, दूसरे गांव वाले, दूसरे गांव की ओर निकाल देते हैं। इन किसान भाईयों का कहना है कि, अगर सभी पंचायत वाले, अपने-अपने गांव के, जितने भी पशुपति हैं, उन सभी को संभाल कर रखें, तो किसी भी ग्रामीण का फसल नहीं उजड़ेगा।


इस मौसम में, अभी के समय में, इस जिले के सभी पंचायतों के गांव के खेत-खलिहानों में तिऊरा-बऊटरा, और मैदानों में, राहर (अरहर) का फसल देखने को मिलता है। गांव क्षेत्र में, दोनों प्रकार की खेती-बाड़ी की जमीन होती है। यदि, शहरों में देखें, तो सिर्फ खेत ही खेत दिखाई देते हैं, उसमें धान और गेहूं उगाया जाता है। मगर गांव क्षेत्र के जमीनों में देखें, तो सभी प्रकारों का अनाज, फल-फूल वाले सब्जी और दाल की अनेकों प्रकार की अनाज लगाए जाते हैं। तभी तो गांव के किसान भाई लोग, पूरे 12 महीने अपने खेती-बाड़ी में लगे रहते हैं और खेती-किसानी का काम करते रहते हैं। इसी कारण, गर्मी के मौसम में, आवारा पशुओं से, फसलों को सुरक्षित करना, अति महत्वपूर्ण हो जाता है।

लहलहाती हुई, अरहर की फसल

फसल के उजड़ने पर, किसान भाई बहुत ज्यादा दुखी और निराश हो जाते हैं। चूँकि, सभी पंचायतों में गौठान बना दिया गया है। किसानों का यह भी कहना है कि, अगर एक पंचायत में एक गौठान कम हो जाता है। जैसे कि, कोई पंचायत ऐसा रहता है, जहाँ बहुत ज्यादा मोहल्ला होता है। इस कारण, गौठान में अतरिक्त दबाब पड़ जाता है, तो सरपंच-सचिव को, पंचायत में और भी गौठान बनवाने के लिए सूचित करना चाहिए। किसान, साल के सभी महीनों में कृषि व्यवसाय करते हैं। क्योंकि, किसान भाइयों का खेती-किसानी करना ही काम होता है। जैसे कि, बरसात के दिनों में, धान की कृषि करते हैं। ठीक उसी प्रकार, इन महीनों में आलू, भाटा, गोभी, टमाटर, भिंडी, गेहूं, सरसों और अनेकों सब्जियों की फसल लगायी जाती है। और इन फसलों का, किसान लोग अच्छे से लाभ उठाते हैं। क्योंकि, किसानों का किसानी से ही घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और अन्य जरूरतों की पूर्ति होती है। इसलिए, यदि, किसी किसान की फसल बर्बाद हो जाये, तो उन परिवारों को बहुत ज्यादा परेशानियां उठानी पड़ जाती है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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