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कौन है भिमाल पेन, और क्यों हर गोंड आदिवासी के गांव में, इनकी पूजा होती है

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


भिमाल पेन का, गोंड समुदाय के लिए, एक महत्वपूर्ण स्थान है। इनके भरोसे ही, गोंड लोग, खेती-किसानी करते हैं। चूँकि, गोंड आदिवासी समुदाय में मान्यता है कि, मौसम की सारी जानकारी इनके पास है और संसार में कहीं पर भी बारिश करना, इनके बस में होता है। इस कारण से, गोंड आदिवासी, भीमाल पेन को मानते आए हैं। आज के समय में, भीमाल पेन को, हनुमान और महाभारत के भीम के नाम से जानते हैं।


सयमाल, बैहर लाँजी के, कोयतुर गोंड राजा थे और इनकी रानी झमिया थी। वह, मरई गोत्रधारी (मंडवी गोत्र) के येडवेंन सगा (सात देव सगा) से थे। इनके पुत्र, भूरा मंडवी थे। कोतमा उईके, पेंगुदा बेंदुला स्थान के ढोलापूयार उईके राजा की सुपुत्री थी। भूरा, मंडवी (सात पेन) वाले तथा कोतमा, उईके (छः पेन) वाली थी और दोनों की शादी (मडमिग) हो गई थी। इन दोनों को बारह, छव्वांग (बच्चे) हुए। जिनमें, इनको सात पुत्र तथा पाँच पुत्रियाँ हुई। जिसमें, पहला पुत्र, भिमाल पेन (भिमा लिंगों / भिमा मंडवी/ जल पेनता), दूसरा पुत्र, जटबा (ठाकुर देव), तीसरा पुत्र हिरबा, चौथा पुत्र केशबा, पाँचवा पुत्र बाना, छटा पुत्र भाजी तथा साँतवा पुत्र मोकाशा थे। इनकी आठवीं तथा नौंवी पुत्री, पंढरी दाई और पुंगार दाई थीं। दसवीं और ग्यारहवीं पुत्री, मुन्गुर दाई तथा कुषार दाई और सबसे छोटी, बारहवीं पुत्री खेरो दाई (जिम्मेदारीन याया / चुडुर माई / सितला माँ) थी।


भिमाल पेन - भिमाल पेन का जन्म, चैत्र पूर्णिमा को हुआ था। वह, वर्तमान मध्यप्रदेश के, मैकाल पर्वतीय श्रृंखला में, बैहर लांजी के, भुरा भगत और कोतमा दाई के पुत्र थे। 18 वर्ष की आयु में, भिमाल पेन की शिक्षा पूरी हो गई थी। उन्होंने, गोंडी परंपरा के महान संस्था, गोटूल (शिक्षा का केंद्र) से शिक्षा-दीक्षा हासिल की थी। गोटूल, वह स्थान है, जहां से हर व्यक्ति, उत्तीर्ण (सर्वगुण संपन्न) होकर ही बाहर निकलता है। उस समय, गोटूल के अध्यक्ष अर्थात मुर्सेनाल, महारू उईका थे। वे भिमाल पेन के गुरु बने। लेकिन, खास बात यह थी कि, भीमाल पेन के पास, पहले से ही प्राकृतिक शक्तियां थी। उन्होंने, धनुर्विद्या, योग, तंदरी जोग, धर्मकरण आदि मुट्ठी विद्याओं में, कम समय में ही निपुणता हासिल की तथा आदि कलाओं में भी उस्ताद थे। भिमाल पेन, हर गांव और गढ-किला जाकर, गोटूल स्थापित कर, उसमें कोयावंशीय गण्ड जीवों की मल्ल, बड़गा, धनुर्विद्या तथा कुश्ती आदि विद्याएं सिखाने का कार्य करते थे।

कुवारा भिमाल पेन लिंगों (भिवसन)

कोतमा दाई के भाई बेंदुलागढ़ के राजा, सेवता उईकाल की दो जुड़वा पुत्रियाँ, बमलाई और तिलकाई (समलाई) थी। दोनों बहनें सुंदर होने के साथ-साथ कई विषयों में सक्षम भी थी। दूसरी ओर भिमाल पेन सभी ज्ञान के स्वामी थे, उन्होंने गोंडी मुठवा का दर्जा प्राप्त किया था। गोंडी धर्म के अनुसार यह बताया जाता है कि, भिमाल पेन गोंडी धर्म के चौथे पुरुष धर्म गुरु थे। इधर राजा सेवता को, अपनी दोनों पुत्रियो की विवाह की चिंता होने लगी। दूसरी तरफ, भूरा भगत और कोतमा दाई को, अपने पुत्र भिमाल पेन के विवाह का इंतज़ार था। राजा सेवता उईके ने, अपनी बहन कोतमा और भूरा भगत को, अपनी सबसे बड़ी बेटी की शादी, भिमाल पेन से कराने का वादा किये थे। किंतु, भिमाल पेन समाज सेवा में लगे हुए थे और उन्होंने अपने गुरु को वादा किया था कि, वे जीवन भर शादी नही करेंगे और वे कोयावंशीय गोंड समुदाय की सेवा करेंगे।


जब भिमाल पेन ने शादी के लिए मना कर दिया, तब राजा सेवता और मानको ने, भिमाल पेन को मनाने के बारे में सोचा। फिर, भिमाल पेन ने हाँ कर दिया। उसके बाद भिमाल पेन, बमलाई को देखने बैहर पहुँच गए। वहाँ भिमाल पेन को देखकर, दोनों बहनें (बमलाई और समलाई) मंत्रमुग्ध हो गईं। और दोनों बहनों ने, अपने पिताजी के सामने भिमाल पेन से शादी का प्रस्ताव रखा। तब, सेवता राजा यह सोच में पड़ गए कि, वो ये बात भिमाल पेन के सामने कैसे रखें। लेकिन, भिमाल पेन तो तंदरी विद्या में उस्ताद थे। वे लोगों का चेहरा देखकर, यह पढ़ लेते थे कि, उनके दिमाग में क्या चल रहा है। फिर, भिमाल पेन ने दोनों बहनों को एक दिन का समय दिया और शर्त रखा कहा कि, सुबह मुर्गे के बांग देने से पहले, मुझे जो सबसे पहले ढूंढेगा, मैं उसी से शादी करूंगा। अन्यथा, मैं कुवारा ही रहूँगा यह शर्त सुनते ही दोनों बहनें आश्चर्यचकित हो गईं और वे दोनों एक-दूसरे को देखते ही रह गईं। तब तक, भिमाल पेन बहुत आगे निकल चुके थे। कुछ समय बाद, जब दोनों बहनों को होश आया, तब वह दोनों भी भिमाल पेन को ढूंढने निकल गईं।

भीम अपने डोंगरगढ़ के फड़ापेन के, पेन ठाना से सेवा अर्जी करके निकल चुके थे। वहाँ दर्शन करने के बाद, वे अपने गुरु महारुभूमका के गोटूल में गए। इधर बमलाई और समलाई, भिमाल पेन को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते डोंगरगढ़ पहुंची। तो, उन्हें पता चला कि, भिमाल पेन वहाँ अपने फड़ापेन की सेवा अर्जी करके, अपने गुरु महारुभूमका के यहाँ निकल चुके हैँ। डोंगरगढ़ पहुंचने के पश्चात, बमलाई थक गईं और वह वहीं हार मान गईं। उन्होंने, अपनी छोटी बहन तिलकाई से कहा कि, तुम आगे बढ़ो। तिलकई भिमाल पेन को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते कोराड़ी आ गईं और कोराड़ी आने के पश्चात, मुर्गे ने बांग दे दिया। इसलिए, शर्त के अनुसार समलाई भी कोराड़ी में रुक गईं।

इस तरह, भिमाल पेन के समाज सेवा करने का लक्ष्य सफल रहा और भिमाल पेन समाज सेवा में जुट गए। बहुत समय तक भिमाल अपने घर ही नहीं गए थे। उनके घर वालों ने, भिमाल पेन को बहुत ढूंढने की कोशिश की, मगर भिमाल पेन, उन्हें नहीं मिले। फिर वह समझ गए कि, भीमाल पेन समाज सेवा में जुट चुके हैं। और फिर उसके बाद, भिमाल पेन का पूरा परिवार भी समाज सेवा में जुट गया। राजा भूरा भगत और कोतमा दाई भी लिंगों के मार्गदर्शन से, समाज सेवा में जुट गए। इधर भिमाल पेन, नंदपुर की पहाड़ी में ध्यानस्त हुए। नंदपुर के राजा उईका गोत्र के थे। एक दिन, राजा उईका के राजवाडे में चोरी हुई। राजा ने सिपाहियों को चोर को पकड़ने का फरमान छोड़ा। उधर, चोर को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते रोज सिपाही थक जाते थे और रोज सिपाहियों को, राजा से डांट पड़ती थी। फिर एक दिन, सिपाहियों ने सशक्त लड़ाई और ध्यानस्त भीमा को राजा के सामने पेश कर दिया।


पूछताछ होने पर भिमाल पेन कुछ नहीं बोले। परेशान होकर राजा ने, भीमा को जेल में डाल दिया। कुछ दिन बाद, भीमा बाहर में घूमते हुए दिखाई देते थे। उसके बाद, सिपाही उन्हें पकड़कर, फिर से जेल अंदर डाल दिया करते थे। लेकिन, वे फिर भी बाहर में घूमते दिखाई देते थे। उसके बाद राजा ने खुद, भीमा को अपने हाथों से जेल अंदर डाल दिया। फिर भी भिमाल बाहर आ गए। उसके बाद राजा ने भिमाल पेन को प्रणाम किया और वह समझ चुके थे कि, यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। राजा उईका की इकलौती पुत्री, कजलादाई, जो काफी दिनों से अपने पिता के घर आई हुई थी और पुत्र प्राप्ति ना होने के कारण काफी चिंतित थी।


कजला की शादी कुरंग मसराम नामक राजा से हुई थी। कजला ने भीमा को प्रणाम कर, पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। आशीर्वाद देने के पश्चात, भिमाल पेन, अपने पूर्व स्थान पर ध्यानस्त होने निकल गए। कुछ दिन बाद, कजला गर्भवती हुई। उसे विश्वास हुआ कि, मुझे भीमा के आशीर्वाद से ही गर्भवती होने का अवसर मिला। गर्भावस्था पश्चात, वह, रोज भीमा की दर्शन करने, गढ़ (पहाड़) पर जाती थी। और उनके पिता उईका को चिंता होती थी कि, राजकन्या इस अवस्था में पहाड़ जाती है, तो उसे तकलीफ होती होगी। राजा ने वहीं पहाड़ी के नीचे, अपनी पुत्री कजला के लिए, भव्य विश्राम गृह बनवाया। यह कजला महल, आज भी जीर्णावस्था में, पानी में डूबा हुआ स्थित है। जिसे अब ‘रानी महल’ कहा जाता है। दिन बीतते गए और रानी के प्रस्तुति के दिन पास आते गए। वे अब धीरे-धीरे गढ़ पर चड़ नहीं पाती थी। उन्होंने, भिमाल पेन से कहा कि, “भिमाल, अब मुझसे गढ़ नहीं चढ़ा जाएगा, मुझे दर्शन देने, आप स्वयं नीचे आएं। भीमा ने विनती स्वीकार की। किंतु, दो शर्तें रखी। पहली शर्त, उन्होंने यह रखा कि, तुम जिस रास्ते से पहाड़ पर आओगी, उस रास्ते से वापस नहीं जाओगी। और दूसरा शर्त यह था कि, जब तक मैं तुम्हें पलट कर देखने ना बोलूं, तुम पलट कर नहीं देखोगी। भिमाल पेन का कहा मानकर, रानी दूसरे रास्ते से जाने लगी। नीचे आई और उन्होंने पीछे पलट कर देख लिया। फिर, उन्होंने भीमाल पेन का विकराल रूप देखा और रानी मूर्छित हो गई। और उसी अवस्था में, उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। भीमा तीन पगों में ही पहाड़ी से नीचे आए। उसमें से एक पग का निशान, आज भी वहां मौजूद है। जिस जगह पर भीमाल पेन, ध्यानस्त बैठते थे, वहां पर हर साल मेला होता है।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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