क्यों पढ़ा जाना चाहिए डॉ. पार्वती तिर्की का कविता-संग्रह 'फिर उगना'?
- Nitesh Kr. Mahto
- 6 days ago
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Updated: 6 days ago
हिन्दी में अनेकों बेहतरीन कविताएँ हैं, पर बहुत कम ही ऐसे कविताएँ हैं जो आदिवासी जीवनशैली को काव्यात्मतक ढंग से सामने लाती हों। डॉ. पार्वती तिर्की की पहली कविता-संग्रह फिर उगना, न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि आदिवासी जीवनशैली की गहराइयों में उतरने का एक सजीव दस्तावेज़ भी है। यह संग्रह आदिवासी जीवन के सौंदर्य, सरलता और प्रकृति से गहरे जुड़ाव को बहुत सहज शब्दों में प्रस्तुत करता है। शायद इन्हीं वजहों से इस कविता संग्रह के लिए पार्वती तिर्की को 2025 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार भी मिला है, और इससे पहले उन्हें विष्णु खरे पुरस्कार एवं प्रलेक नवलेखन सम्मान से भी नवाज़ा गया है।

आदिवासी जीवनशैली बहुत सरल, खूबसूरत और प्रकृति से गहरे संबंध में बंधी हुई है। इसे आप डॉ. पार्वती तिर्की के कवितायों में देख सकते हैं। आज के दौर में, जिस जीवनशैली को अपनाने के लिए कोर्स कराए जाते हैं, कहा जाता है कि "सरल जीवन जियो, वर्तमान में जियो," वहीं यही जीवन आदिवासी स्वाभाविक रूप से जीते हैं। जबकि इसके लिए बड़े-बड़े कोर्स कराए जाते हैं, वर्कशॉप आयोजित होती हैं, प्रवचन दिए जाते हैं, मोटिवेशनल स्पीकर इसे बढ़ावा देते हैं, और इस पर किताबें भी प्रकाशित होती हैं।
इसी खूबसूरत आदिवासी जीवनशैली को डॉ. पार्वती तिर्की अपनी कविताओं के माध्यम से बहुत सहजता से प्रस्तुत करती हैं। वे अपनी नानी के गीतों के बारे में लिखती हैं, पर्व-त्योहारों की बात करती हैं, और बड़ी गहराई से हमें अलग-अलग चीजों को महसूस करवाती हैं। जब वो चांद के बारे में बताती हैं, तो करम पर्व के दौरान के चांद, या खद्दी पर्व के दौरान के चांद का वर्णन करती हैं। वे उन्हें मनुष्य की तरह ही कल्पना करती हैं।
करम चंदो नामक कविता के एक हिस्से में वे लिखती हैं:
सहिया!
आज रात करम चाँद अखड़ा पर आने वाला है
अपने संग सरगुजा से मिलने, बतियाने
और कहानी सुनने
आज रात करम चाँद और सरगुजा
अखड़ा पर साथ होंगे
साथ-साथ थिरकेंगे, नाचेंगे!
सहिया!
देखो, माँदर बज रहा है—
धातिंग तांग ताक ताक
देखो, अखड़ा का थिरकना
करम चाँद और सरगुजा के
आगमन की खुशी में!
देखो, मेरखा राजी¹ का थिरकना
देखो, बिनकों² का थिरकना
परता³ भी थिरक पड़े!
भला कैसे न थिरकें सभी
भादों का ही मौसम होता
जब करम चाँद और सरगुजा साथ होते!
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¹ पूरा आसमान
² तारे
³ पहाड़
ऐसे समय में, जब मुख्यधारा ने आदिवासी जीवनशैली को निम्न समझा और तथाकथित सभ्य समाज ने उन्हें असभ्य कहकर उनके अस्तित्व को नकारने की कोशिश की, डॉ. पार्वती तिर्की अपनी कविताओं के माध्यम से आदिवासी जीवन की सरलता और सुंदरता को स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। उनकी रचनाएँ धरती, चाँद, तारे, जीव-जंतु, पेड़-पौधे और टोटम के इर्द-गिर्द घूमती हैं, जो आदिवासी विश्वास, मान्यताओं और परंपराओं को जीवंत बनाती हैं। उनकी कविताएँ न केवल आदिवासी जीवन की सहज छवियों को सहेजती हैं, बल्कि अपनी पहचान को मजबूती से स्थापित करने वाले विमर्श को भी एक नई दिशा देती हैं। शोषण और अन्याय के प्रति भी जो आदिवासियों के विरोध करने का तरीका है उसे भी वे खूबसूरती से प्रस्तुत करती हैं, जैसे कि निम्न कविता में देखने को मिलता है:
गीत गाते हुए लोग
गीत गाते हुए लोग
कभी भीड़ का हिस्सा नहीं हुए
धर्म की ध्वजा उठाए लोगों ने
जब देखा
गीत गाते लोगों को
वे खोजने लगे उनका धर्म
उनकी ध्वजा
अपनी खोज में नाकाम होकर
उन्होंने उन लोगों को जंगली कहा
वे समझ नहीं पाए
कि मनुष्य जंगल का हिस्सा है
जंगली समझे जाने वाले लोगों ने
कभी अपना प्रतिपक्ष नहीं रखा
वे गीत गाते रहे
और कभी भीड़ का हिस्सा नहीं बने।
राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित फिर उगना डॉ. पार्वती तिर्की की पहली कविता संग्रह है, और इसमें 50 से भी ज्यादा कविताएँ पढ़ने को मिलती हैं। ये सभी कविताएँ कुड़ुख आदिवासियों की जीवनशैली से ही जुड़ी हुई हैं। फिर उगना पढ़ने के बाद एक पाठक को कुड़ुख आदिवासियों के बारे में बहुत ही सरल और रोचक शब्दों में जानने को मिल जाएगा। इसे पढ़कर जितनी आसानी से पाठक कुड़ुख दुनिया को समझ सकते हैं, शायद ही कोई और किताब पढ़कर इतनी आसानी से समझा जा सकता है।

कुड़ुख (जिन्हें उरांव भी कहा जाता है) आदिवासियों का बहुत ही समृद्ध इतिहास और संस्कृति रही है, और इस समुदाय की अनेक ऐसी चीजें हैं जो लोगों को आकर्षित करती हैं और हमेशा चर्चाओं में बनी रहती हैं। चाहे वो कुड़ुख भाषा हो—जो एकमात्र द्रविड़ियन भाषा है जो इस क्षेत्र में बोली जाती है—या इस समुदाय की स्वशासन हेतु पड़हा व्यवस्था हो, सरहुल - करम जैसे पर्व त्योहार हों, या उनमें गाए जाने वाले मनमोहक गीत, मंदार की धुन, या विभिन्न प्रकार के नृत्य हों। इस समुदाय का सरना धर्म हो या कुड़ुख लोगों का असम-भूटान, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह इत्यादि जगहों पर हुए पलायन की कहानियाँ हों।
ये सभी बातें इस समुदाय को इतना रोचक बनाती हैं कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोग इस समुदाय को जानना और समझना चाहते हैं। फिर उगना में डॉ. पार्वती बहुत ही आसान भाषा में इन विषयों को सामने लाती हैं। वे न सिर्फ़ कुड़ुख जीवनशैली को ही सामने लाती हैं, बल्कि कुड़ुख शब्दों का भी बेहतरीन इस्तेमाल करती हैं, जिससे उनकी कविताएँ ज़मीन से जुड़ी हुई महसूस होती हैं। इस कविता संग्रह में वे कुछ कुड़ुख गीतों को भी लिखी हैं और उनका अनुवाद सुंदर तरीके से किया है। पाठक के लिए पुस्तक का यह हिस्सा सोने पे सुहागा की तरह है, और ये कुड़ुख गीत पाठक को कुड़ुख आदिवासियों की दुनिया में और गहराई में ले जाते हैं।
पुस्तक में एक कुड़ुख गीत का अनुवाद निम्न प्रकार से है:
चल साथी
मैं भी जवान हूँ, तुम भी जवान हो
चल साथी, चाय बाग़ान चलते हैं
चल साथी, भोटॉंग असम चलते हैं
असम भोटॉंग में पैसे कमाएँगे
छोटानागपुर शादी करने के लिए आएँगे
छोटानागपुर शादी करने के लिए आएँगे।
मूल —
एन हूँ डिंडा, नीन हूँ डिंडा
गुचा जोड़ी, भोटॉंग कालोत हो
गुचा जोड़ी, भोटॉंग कालोत
भोटॉंग नु हिबा नलख ननोत
नागपुर नु बेंज्रआगो बरओत हो
नागपुर नु बेंज्रआगो बरओत।
हिंदी के पाठकों, कविता प्रेमियों, और आदिवासी विषयों में रुचि रखने वालों को यह पुस्तक ज़रूर पढ़नी चाहिए। और जिस तेज़ी से इस पुस्तक को एवं पार्वती तिर्की जी को सम्मानित किया जा रहा है, इस पुस्तक को अपने पास रखना भी एक शान की बात होगी।

सिर्फ़ पुस्तक प्रेमियों के लिए ही नहीं बल्कि, आज के रील वाले दौर में, ऐसे रील्स काफ़ी पसंद किए जाते हैं जिनमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी चार बातें लिखी होती हैं। किसी ट्रैवल वीडियो में स्लो म्यूज़िक के साथ पार्वती तिर्की की सरल कविताएँ बहुत सटीक बैठेंगी।
लेखक परिचय:- प.सिंहभूम, झारखण्ड के रहने वाले नितेश महतो आदिवासी लाइव्स मैटर में कार्यरत हैं, आदिवासी दर्शन और जीवनशैली से प्रभावित होकर वे भारत के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में भ्रमण कर आदिवासियत को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
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