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कौशल का प्रतीक है यह त्रिपुरा आदिवासियों के खूबसूरत गहने

किसी भी संस्कृति का अहम भाग है वस्त्र, और उनमें सबसे दिलचस्प है चमकदार, शानदार गहनें। त्रिपुरा के आदिवासियों को गहने पहनने का बहुत शौक है। यह तरह-तरह के डिज़ाइन में चाँदी के गहने बनाते थे और सदियों से त्रिपुरा के आदिवासी सोने से बेहतर चाँदी के गहने पहनना पसंद करते है। इन सदियों पुराने गहनों में से कुछ गहनों के नाम और डिज़ाइन अभी तक हमारे पास सुरक्षित है, लेकिन कई गहनों के डिज़ाइन और नाम अभी लुप्त हो चुके हैं।


आंतोंलोय

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यह भारी भरकम चाँदी का गहना गले में पहना जाता है। कहा जाता हैं की यह हार इतना भारी है, की इसे पहनके गर्दन दर्द करने लगती है। यह पूरा चाँदी से बनाया जाता है और इसका वज़न कम से कम २ किलो होता है।

पुईसानी माला

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यह एक ऐसा गहना है जो आदिवासी सिक्कों से बनाते है। इसको कमर पे पहना जाता है। इसे बनाने के लिए ₹1, ₹2 और 50 पैसे का सिक्का इस्तेमाल होता है। इस गहने को सिर्फ चाँदी से भी तैयार किया जाता है।


चंद्रहार

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यह हार बनाने के लिए पाँच महिलाएँ इकट्ठा होके काम करती है, क्यूँकि ये हार बड़ा और भारी होता है।इसमें छोटे-छोटे फूलों के आकार से माला बनाई जाती है। इस हार के साथ साथ महिलाएँ सिक्के से बनी और भी मालाएँ और आंतोंलोय जैसे भारी भरकम गहने भी पहनती है। सब गहने मिलाकर कम से कम 5 किलो का वजन आदिवासी महिलाएँ शरीर पे पहनती है।


कंगन

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यह कंगन आदिवासी 2 धातुओं से बनाते है- पीतल और चाँदी। त्रिपुरा के आदिवासी ज्यादातर चाँदी की गहने पहनते हैं; त्रिपुरा की महारानी भी यही करती थी। वह हाथों में चूड़ियों से ज्यादा यह कंगन ही पहनती थी, क्योंकि यह कंगन बहुत बड़े है और चूड़ियां पहनने की जरूरत ही नहीं होती थी।


खारुक

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यह खारूक पैरों में पहने जाते है।


कान की बाली

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सदियों से हमारे पूर्वजों कान की बालियाँ पहनते आ रहें है, लगभग सभी कान की बालियां देखने में एक जैसी हाई दिखती है। त्रिपुरा के आदिवासी बाली को Wakhum borok कहते है।


कहा जाता है की जब हमारे पूर्वज झूम खेती करके नया धान लाते थे, तब हर घर की लड़कियाँ और बड़े- बुजुर्ग नया धान मिलने की खुशी में उत्सव मनाते थे और इस उत्सव के दौरान सब गहने पहनकर गाते और नाचते थे।

यह खूबसूरत गहने त्रिपुरा के आदिवासी समुदायों की संस्कृति की पहचान है। यह दागिने त्रिपुरा के लगभग हार आदिवासी सौमदय में पहने जाते है।


लेखिका के बारे में- बिंदिया देब बर्मा त्रिपुरा की निवासी है। वह अभी BA के छट्ठे सेमेस्टेर में है। वह खाना बनाना और घूमना पसंद करती है और आगे जाकर प्रोफेसर बनना चाहती है


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 
 
 

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