कोल्हान की सड़क दुर्घटनाएँ, विकास की कीमत या लापरवाही?
- Narendra Sijui
- 12 hours ago
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27 अक्टूबर 2025 की रात, घड़ी में लगभग 11:50 बज रहे थे।
अचानक पीछे से आवाज़ आई – “चार्ज!”
कुछ ही मिनटों में, रात 11:54 पर चाईबासा शहर में अफरातफरी मच गई।
यह कोई आम घटना नहीं थी।
झारखण्ड के कोल्हान क्षेत्र, विशेष रूप से चाईबासा, लंबे समय से भारी ट्रकों की आवाजाही के कारण बार-बार सड़क दुर्घटनाओं से जूझ रहा है। स्थानीय लोग अब इस भयावह स्थिति से तंग आ चुके हैं। इसी के विरोध में सैकड़ों लोगों ने झारखंड सरकार के परिवहन मंत्री और चाईबासा के विधायक दीपक बिरूआ के आवास के समक्ष अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन शुरू किया।
मुख्य मांग थी –“नो एंट्री लागू करो! लागू करो!”

27 अक्टूबर को प्रशासन ने पहले से ही चाईबासा क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी थी। लेकिन लोगों का दर्द और रोजमर्रा की परेशानियों ने उन्हें घरों से बाहर निकलकर आंदोलन करने पर मजबूर कर दिया। आंदोलनकारी तमाड़बांध में एकत्र हुए और मंत्री आवास की ओर कूच करने लगे, लेकिन पुलिस ने उन्हें तम्बो चौक पर रोक दिया। वहीं उन्होंने धरना शुरू किया और अपनी मांगों पर डटे रहे।
आंदोलन सुबह 10 बजे शुरू हुआ और रात 11 बजे तक शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहा। लेकिन जैसे ही रात 11:30 के करीब पहुंची, दुकानें बंद होने लगीं, और उसी मौके का फायदा उठाकर पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। गर्भवती महिलाएं, बच्चे, पुरुष – कोई भी इससे अछूता नहीं रहा। रबर की गोलियां चलाई गईं और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। कई महिलाएं और पुरुष घायल हुए।
अब सवाल उठता है – आखिर लोग “नो एंट्री” की मांग क्यों कर रहे हैं?क्या यह सिर्फ ट्रैफिक व्यवस्था का मामला है या इसके पीछे कोई गहरी साज़िश छिपी है? कोल्हान क्षेत्र की सड़कों पर लगातार हो रही मौतों ने इस सवाल को और गंभीर बना दिया है। कुजू गाँव से लेकर झींकपानी और हाटगम्हारिया तक, सड़कें अब डर का दूसरा नाम बन चुकी हैं। खनिज संपदा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर झारखंड का कोल्हान क्षेत्र अब सड़क दुर्घटनाओं का पर्याय बन गया है। चाईबासा, सरायकेला-खरसावां और पश्चिम सिंहभूम जिलों में पिछले कुछ वर्षों से सड़क हादसों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
हो समाज लाइव के रिपोर्टर श्याम कुदादा द्वारा जुटाए गए आरटीओ आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से सितंबर 2025 के बीच 153 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 156 लोगों की मौत और 82 लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
यह कोई सामान्य क्षेत्र नहीं है – यह वही इलाका है जहां रूंगटा कंपनी रोज़ाना खनिज लोडिंग-अनलोडिंग के लिए सैकड़ों भारी ट्रक भेजती है।

प्रभात खबर (19 अप्रैल 2025) की डिजिटल रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ पश्चिम सिंहभूम जिले में ₹2814.45 करोड़ का राजस्व खनिज संपदा से प्राप्त हुआ। यह स्पष्ट करता है कि कोल्हान की सड़कों पर प्रतिदिन कितने ट्रक दौड़ते हैं – और इसी के साथ आम लोगों की जान कितनी जोखिम में है। पहले दिन के समय ‘नो एंट्री’ लागू रहती थी, लेकिन पिछले एक वर्ष से इसे हटा दिया गया है। इससे दुर्घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है। NH-220 (कुजू पुल से बाईपास चौक), NH-75 (गितिलपी चौक से जैतगढ़), और MDR-177 (बाईपास चौक से गितिलपी चौक) के किनारे बसे गाँव सबसे अधिक प्रभावित हैं। विशेष रूप से बादुडी़, सिकुरसाई और झींकपानी रोड (NH-75) अब मौत के गढ़ बन चुके हैं।
इन दुर्घटनाओं में से एक सबसे भयावह घटना 20 अक्टूबर 2025 को हुई, जब कुजू–चालियामा के पास रूंगटा कंपनी के एक भारी ट्रक ने चोकरो बालमुचू नामक ग्रामीण को कुचल दिया। ग्रामीणों ने शव को सड़क पर रखकर 15 घंटे तक जाम लगाया और कंपनी व प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया। किसी अधिकारी या कंपनी प्रतिनिधि के न आने से जनता का आक्रोश और बढ़ गया। यह घटना केवल एक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि कोल्हान की जनता के धैर्य की सीमा का अंत थी। इसी के बाद 27 अक्टूबर को “नो एंट्री लागू करो” की मांग के साथ अनिश्चितकालीन धरने का निर्णय लिया गया।

आंदोलन का नेतृत्व मांझारी जिला परिषद सदस्य माधव चंद्र कुंकल और समाजसेवी रेयांस समाड ने किया। लेकिन 25 अक्टूबर को ही पुलिस प्रशासन ने दोनों नेताओं सहित कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया, जिससे जनता में और असंतोष फैल गया। आंदोलनकारी नारायण काडेंयांग का कहना है कि प्रशासन कंपनियों पर कार्रवाई करने की बजाय आम लोगों पर ही मुकदमे दर्ज कर रहा है – यह न केवल अन्याय है, बल्कि कोल्हान के आदिवासी समुदाय के प्रति उपेक्षा का प्रतीक है।
27 अक्टूबर की रात 16 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, 28 अक्टूबर को अनुमंडल पदाधिकारी संदीप अनुराग टोपनो के बयान पर मुफ्फसिल थाना में 74 नामजद और 500 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। आश्चर्यजनक रूप से, एफआईआर में कुछ ऐसे नाम भी दर्ज हैं जो उस दिन चाईबासा में मौजूद ही नहीं थे – जैसे रामहरि गोप, हरिन तामसोय, अनंत कुमार हेम्ब्रम आदि।
“नो एंट्री” आंदोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ता रेयांश सामड, रमेश बालमुचू, और सुरेश उर्फ सोना संवैया को चाईबासा मंडल जेल से बेल पर रिहा कर दिया गया है। वहीं पश्चिम सिंहभूम के मांझरी जिला परिषद सदस्य माधव चंद्र कुंकल की बेल अदालत ने खारिज कर दी है, क्योंकि उनके खिलाफ पहले से एक अन्य मामला लंबित था। इसके अतिरिक्त, आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए 16 अन्य आंदोलनकारियों की बेल भी कोर्ट ने खारिज कर दी है, अदालत ने इसे गंभीर मामला बताया है।
धरना स्थल पर कोल्हान की परंपरा और संघर्ष का अनोखा संगम देखने को मिला। लोग मांदर और दमा-दुमांग बजाते हुए नाचते-गाते थे। माहौल किसी त्योहार जैसा लग रहा था, लेकिन हर नृत्य में विरोध, पीड़ा और असहायता की छाया थी। “नो एंट्री लागू करो” का नारा मांग गीत की तरह गूंज रहा था। आंदोलनकारी सड़क पर ही खाना बनाकर खा रहे थे। वे वही लोग थे जो रोज़ इन सड़कों से गुजरते हैं, जिनके घर हाईवे के किनारे हैं, और जिन्होंने किसी न किसी प्रियजन को सड़क दुर्घटना में खोया है।
यह धरना अब एक जनांदोलन का रूप ले चुका है – जो सिर्फ ट्रैफिक व्यवस्था की मांग नहीं, बल्कि आदिवासी जीवन, सम्मान और सुरक्षा की लड़ाई बन गया है। जब कोल्हान की सड़कों पर खनिज से लदे ट्रक दौड़ते हैं, तो उनके पहियों के नीचे सिर्फ मिट्टी नहीं, बल्कि यहां के लोगों का जीवन, संस्कृति और अधिकार भी कुचले जाते हैं।
अब सवाल यह नहीं है कि “दुर्घटनाएँ क्यों हो रही हैं”, बल्कि यह है –क्या इन सड़कों पर बहता खून महज़ एक नसीब है, या फिर विकास के नाम पर रची गई एक साज़िश, जिसकी कीमत कोल्हान का आम आदमी चुका रहा है? लेखक परिचय:- झारखण्ड के रहने वाले नरेंद्र सिजुई जी इतिहास के छात्र हैं और आदिवासी जीवनशैली से जुड़े विषयों पर प्रखरता से अपना मत रखते हैं।
