top of page
Adivasi lives matter logo

लॉकडाउन में हुआ छत्तीसगढ़ के किसानों का भारी नुकसान, फल और सब्ज़ियां हो गईं बेकार

Updated: Feb 4, 2021

कोरोना महामारी की वजह से भारत समेत पूरी दुनिया में लोगों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बीमारी के साथ-साथ लॉकडाउन के दौरान लोगों का आर्थिक नुकसान भी हुआ है। इस महामारी ने गाँवों का नक्शा पूरी तरह से ही बदल दिया है।


किसान और व्यापार से जीवन-यापन करने वाले लोगों को लॉकडाउन से सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ा है। व्यापारी ऐसे समय में अपने गाँव से बाहर नहीं जा सकते थे और दुकानें बंद करने के आदेश की वजह से अपना व्यापार भी नहीं चला सकते थे।

ree

वर्षा के साथ बात करते हुए निराशा बाई


छत्तीसगढ़ के लेटाडुग्गू की रहने वाली निराशा बाई पटेल, जिनकी उम्र 60 साल है। हमें इस समस्या के बारे में बताते हुए कहती हैं, “इस लॉकडाउन से मुझे बहुत ही समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। लॉकडाउन के समय सब बाज़ार बंद थे और सब्ज़ी व फल बेचने का कोई उपाय नहीं था। कोरबा ज़िले के अंतर्गत आने वाले सभी गाँवों को सील कर दिया गया है, जिससे किसी को भी घर से बाहर निकलने या घूमने की अनुमति नहीं है। जब हम बाहर ही नहीं जा सकते, तो सब्ज़ी कैसे बेचेंगे?”


मरार पटेल समाज के लोग सिर्फ फल और सब्ज़ी का ही व्यापार करते हैं। आप अंदाज़ा लगाइए कि जो लोग सब्ज़ी और फल बेचकर अपना घर चलाते थे, वे ऐसे समय में पैसे कैसे कमाएंगे? इस समाज के लोग फल और सब्ज़ी घर की बाड़े में ही उगाते हैं।


गाँव के आसपास लगभग 2-3 किलोमीटर के दायरे में हर रोज़ बाज़ार लगा करता था, जहां पटेल मरार समाज के लोग भी फल और सब्ज़ी बेचते थे। पहले तो लोग यहां सब खरीदने के लिए आते थे मगर कोरोना वायरस की वजह से यह बाज़ार बंद करवा दिया गया और तो और, गाँव के लोगों के मन में भी डर बैठ गया है।


एक-दूसरे के संपर्क में आने से तो लोग डरते ही हैं लेकिन अब लोग कुछ भी खरीदने में भी हिचकिचाने लगे हैं। इससे निराशा बाई पटेल जैसे किसानों का आर्थिक नुकसान तो हुआ ही है लेकिन उसके साथ-साथ कठिनाई और भी बढ़ गई है।


कर्ज़ के बीच फल और सब्ज़ियों का नुकसान झेलते किसान

ree

निराशा बाई की बाड़ी, जहां वो फल और सब्ज़ियां उगाती हैं।


निराशा बाई कहतीं हैं, “मेरा फलों व सब्ज़ियों का बगीचा है, जिसमें बहुत सारे फल लगे हुए हैं लेकिन इन फल व सब्ज़ियों को ना तो मैं गाँव में बेच सकती हूं और अगर बेच भी पाई तो इसका कुछ ज़्यादा फायदा नहीं मिलेगा। लोग बहुत डरे हुए हैं इसलिए ज़्यादा सब्ज़ी नहीं खरीदते हैं।”


वो आगे कहती हैं, “अब तो बाज़ार भी नहीं लग सकता है। हमें इस लॉकडाउन में फलों व सब्ज़ियों का नुकसान उठाना पड़ रहा है, जितनी भी सब्ज़ी और फल हैं, वे सड़-गलकर नीचे गिर रहे हैं। मैं इतनी सारी सब्ज़ी और फल कहीं भेज भी नहीं सकती, क्योंकि गाड़ियां बंद हैं और कहीं पर भी बाज़ार नहीं लग सकते हैं।”


निराशा बाई बताती हैं कि इस साल पिछले साल की तुलना में फल और सब्ज़ियों की फसल पर लेटाडुग्गू के किसानों ने अधिक ध्यान दिया था। जिसकी वजह से उनके फलों और सब्ज़ियों में बढ़ोत्तरी हुई थी लेकिन अब इन सब फलों और सब्ज़ियों का नुकसान हो रहा है। इस स्थिति में पटेल समाज के लोगों के मन में बहुत हताशा बढ़ गई है।


निराशा बाई अकेली नहीं हैं। भारत के कई राज्यों में किसानों को इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ‘वेजीटेवल ग्रोवर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ के हिसाब से लॉकडाउन के समय भारत में 30% फसल को सड़ने के लिए छोड़ देना पड़ा। कई किसानों ने इसके चलते अपनी जान भी दे दी है। कई किसान क़र्ज़ के चक्कर में भी फंसे हुए हैं। ऐसे में लोगों ने किसानों को थोक ग्राहकों से सम्पर्क में लाने का प्रयास शुरू किया है।


इस गंभीर परिस्थिति का सामना करने के लिए सरकार को किसानों की मदद करनी चाहिए। फल और सब्ज़ी भोजन का महत्वपूर्ण भाग हैं। किसानों की मदद करके सरकार पूरे देश की मदद कर सकती है। हमें किसानों को आर्थिक आधार देने और फसल बेचने के लिए नए उपाय ढूंढने चाहिए।



नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 
 
 

Comments


bottom of page