Varsha Pulast
Oct 17, 20212 min
पर्व त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है, भारत के सभी जाति समुदाय अपने अपने तरीके से त्योहार मना रहे हैं। कोई अपने ईष्ट देव-देवियों की आराधना कर रहे हैं, कोई पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं, कोई अपने पशु-पक्षियों तथा जीवन उपयोगी औज़ारें की पूजा कर रहे हैं।
त्योहारों में शहरों की रौनक और गाँवों की सादगी देखते ही बनती है, प्रत्येक त्योहार में उस समाज की पूरी संस्कृति की झलक मिलती है। गाँवों में और खासकर आदिवासी समुदायों में त्योहार सिर्फ़ उत्सव मनाने का दिन नहीं होता, बल्कि संस्कृति एवं सभ्यता को समझने तथा अपने इतिहास को भी जानने का वक़्त होता है।
वैसे तो हर पर्व किसी न किसी विशेष समुदाय से जुड़ा होता है, परंतु गाँवों की खूबी यह भी है कि एक समुदाय दूसरे समुदाय के पर्व भी हर्सोल्लास के साथ मनाता है। ऐसा ही एक पर्व है जो मुख्यतः गोंड़ समुदाय के लोग मनाते हैं परंतु कोरबा जिले का ज्यादातर गाँवों में सभी समुदाय के लोग इस पर्व को मनाते हैं। इसे जवा पर्व कहा जाता है।
आदिवासी किसानों का जीवन अपने लगाए हुए फसलों पर निर्भर रहता है, उन्हीं फसलों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए यह पर्व मनाया जाता है। गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि जवा पर्व मनाकर प्रकृति की पूजा की जाती है, ताक़ि गाँवो में अकाल न पड़े एवं कोई आपदा न आए और गाँव के लोग अपने फसल उपजाकर सुख शांति से रह सकें।
इस पर्व में गाँव के लोग अपने-अपने घरों में छोटी क्यारियाँ बनाकर उसमें पाँच प्रकार के अनाजों को बोते हैं। इसमें गेहूँ, धान, तिल, चना एवं जौ के बिज होते हैं। इन बीजों से उपजे फसल को ही जवा कहा जाता है। जवा उगाने के लिए कुम्हार के घर से लाए हुए मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी, बिज एवं खाद के मिश्रण को रात भर पानी में भिगो कर रखा जाता है और सुबह उन्हें बो दिया जाता है।
जवा के पौधों को काफ़ी पवित्र एवं शुभ माना जाता है, कई गाँवों में तो जवा को माता की संज्ञा दी जाती हैं। प्रत्येक पूजाओं में इसके पौधे का इस्तेमाल किया जाता है, कोई भी पूजा इसके बिना सम्पूर्ण नहीं होती।
भूत पूर्व सरपंच शंभु शरण जी ने हमें बताया कि जब गाँवों में जवा बोया जाता है तब उसके समीप दीपक भी जलाए जाते हैं। परंतु यह दीपक प्राचीन तरीके से ही जलाना होता है। माचिस या लाइटर के आविष्कार से काफ़ी पहले, आदि काल से आदिवासी समाज दो लकड़ियों के घर्षण या फ़िर दो पत्थरों के घर्षण से आग जलाया करते आये हैं। जंगलों में रहने वाले आदिवासी अभी भी यही तरीका अपनाते हैं। गाँवों में लोग अब अपनी सुविधा के लिए माचिस आदि का प्रयोग करते हैं, परंतु जवा के दीपक के लिए प्राचीन तरीके से ही आग जलाया जाता है, ताक़ि लोगों को अपनी पद्धत्तियाँ और अपना इतिहास याद रहे।
जवा जैसे ही अनेकों पर्व त्योहार आदिवासी समाज मनाते आये हैं, जिनमें प्रकृति की पूजा कर आभार व्यक्त किया जाता है। आशा है आने वाली पीढियां अपने बुजुर्गों से पूजा-पाठ के रीति रिवाजों को सीखकर परम्पराओं को आगे बढ़ाते रहेंगे ताक़ि कोई भी आदिवासी अपना इतिहास को भूले नहीं।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog samaj sevi sanstha और Misereor का सहयोग है l