पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
अनुसूचित जाति (एस सी) कैटेगरी में आने वाले नट जाति के पुरुष वर्ग कबाड़ी का काम करते हैं और महिलाएँ आस-पास के गांव में चावल व अन्य खाने की सामग्री मांगने जाती हैं, और अपने बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। नट जाति के लोग अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाते हैं। बढ़ती उम्र के साथ, जिम्मेदारी, उन्हें काम करना सीखा देती है। वर्तमान में भी उनकी हालत अच्छी नहीं है, इस कारण नट जाति का विकास नहीं हुआ है। किंतु ये लोग, जैसे भी करके अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।
नट जाति के लोगों का घर मिटटी और लकड़ी के सहारे से बनता है। उनके घरों में प्राय केवल दो ही रूम होते हैं, एक सोने के लिए और दूसरा खाना बनाने के लिए। ये लोग अपने घर के पीछे बाड़ी में सुअर रखने के लिए एक छोटा सा घर बनाए रखते हैं, जिसमें ये सुअर पालन करते हैं। नट जाति के लोगों के पास आय का एकमात्र साधन, उनके पालतू-पशु ही होते हैं। जिन्हें बेचकर, इनकी अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।
नट जाति के लोगों के पास उनके हक के मुक्तिधाम के लिए भी जगह उपलब्ध नहीं है। जब इनके परिवार में किसी का निधन हो जाता है, तो उसके दाह संस्कार करने के लिए इनके पास कोई व्यवस्तित जगह नहीं होती है। गांव के लोगों द्वारा इन लोगों को कोई जगह नहीं दिया गया है, यह लोग अपने ही घर के आस-पास निधन हुए लोगों को दफनाते हैं या जलाते हैं। इन लोगों के इस समस्या पर गांव के लोग कुछ भी नहीं बोलते, इन्हें देख कर भी अनदेखा किया जाता है। अभी वर्तमान में, इनके घरों के पास जो जगह खाली पड़ा था, उसे साफ किए हैं, मुक्तिधाम बनाने के लिए। लेकिन उसमें अभी कोई कार्य चालू नहीं हुआ है।
सोनमत बाई नट कबीरधाम जिला के ग्राम नाऊडीह की रहने वाली हैं। जो ग्राम-पंचायत ‘जरती’ में, वर्तमान में सरपंच पद में अपना योगदान दे रही हैं। वर्ष 2012 के सरपंच चुनाव में, सोनमात बाई नट र्निविरोध सरपंच बनीं थी। पांच साल बाद फिर 2017 के चुनाव में भी दूसरी बार सरपंच बनीं थी। सोनमत बाई नट अपने नट समाज को यह संदेश देती हैं कि, “हमारी जो सरकार है, जातिवाद को बढ़ावा नहीं देता, इसलिए उन्हें पढ़ाई-लिखाई में ध्यान देना चाहिए और एक अच्छे पद के लिए तैयार होना चाहिए। भविष्य में और कुछ पद ‘नट जाति’ के लोगों को मिलता है, तो इसमें उन्हीं लोगों की भलाई होगी और उनका समाज आगे बढ़ेगा और लोगों में उनकी जाति के प्रति सामान्य दृष्टि और व्यवहार बढ़ेगा।“
2012 में नट जाति के लोगों में से केवल सोनमत बाई नट का ही राशन कार्ड बना था। किंतु सरपंच बन जाने के बाद, सोनमत बाई अपनी जाति के सभी लोगों का राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड बनवा चुकी हैं। नट जाति के लोग अपने गांव में रखवारी करने के लिए लगते हैं, किसानों के यहां फसलों की देखभाल करते हैं। पालतू-पशु और बंदरों से जो फसल नुकसान होता है, उनको रोकने के लिए 1500 से 2000 रुपये महीना में रखवारी करते हैं और गांव के किसानों के पास उनके खेतों में अन्य काम करने के लिए भी जाते हैं। जैसे कि गन्ना कटाई, धान कटाई और फसलों की साफ-सफाई करने के लिए।
सोनमत बाई के पोते, सनी नट का कहना है, वर्ष 2012 के पहले नट जाति के लोग, अपने ही गांव के स्कूल में अच्छे से पढ़ नही पाते थे। क्यूँकि, नट जाति के लोगों से अन्य जाति के लोग छुआ-छूत मानते थे। इसलिए सनी नट जब पड़ने जाते थे, तो उनको अलग बैठाया जाता था और उसे बोला जाता था कि तुम छोटी जाति का है, हमारे साथ नहीं बैठ सकता है। यह सब के चलते सनी नट ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया था। लेकिन उनकी दादी सोनमत बाई नट के सरपंच बनने के बाद, नट जाति के बच्चों से अब बुरा व्यवहार नहीं किया जाता है। अब नट जाति के बच्चे अपने गांव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं और खाना भी खाते हैं, उनके साथ अब छुआछूत वाला व्यवहार नहीं किया जाता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
コメント