कोरोना वायरस से आज पूरी दुनिया मौत के साये में जी रहा है। ऐसा लगता है कि लोगो की एक छोटी सी ग़लती उनके मौत का कारण बन सकता है । इस वायरस का अभी तक कोई कठोर उपाय या दवाई नही खोजा जा सका है जिससे लोग बच सके इसलिए सरकार भी कुछ नही कर पा रही है। लॉकडाउन से कोरोना वायरस के इस शृंखला को तोड़ा जा सके इसलिए सभी लोगो को अपने अपने घरों में सुरक्षित रहने की हिदायत दी जा रही है।
अभी गर्मी के दिनों में बहुत अधिक मात्रा में शादियां होती हैं। शादी में बहुत ज्यादा लोग उपस्थित होते हैं जिससे महामारी फैलने का खतरा रहता है। पहले, प्रशासन शादियों को इस शर्त पर करने की अनुमति दे रहा था कि 10 से अधिक मेहमान नहीं होंगे। लेकिन लोग खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए पाए गए और 60-70 से अधिक मेहमान समारोह में भाग लेते दिखाई दिए। नवभारत टाइम्स अखबार के अनुसार, यही कारण है कि प्रशासन ने 17 मई तक होने वाले सभी वैवाहिक कार्यक्रम पर रोक लगाने का फरमान जारी किया है। जिले में अब तक कुल 282 शादियों के लिए दिए गए आदेश निरस्त हुए हैं।
अचानक रोकनी पड़ी शादी
हमारे बगल वाले गाँव सिरकी में इसी बीच शादी होनी थी जिसके लिए उनको प्रशासन से अनुमति भी मिल गयी थी। परिवार के लोग शादी की तैयारियाँ भी कर चुके थे। लेकिन इस नियम के आने के बाद शादी को स्तगित कर दिया गया है। गाँव की शादियाँ आमतौर पर एक सामुदायिक मामला है। परिवारों को अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से अतिरिक्त वित्तीय मदद और राशन की आवश्यकता होती है। तो किसी भी शादी का रद्द या स्थगित होना परिवार के लिए बहुत नुकसानदायक होता है । सिरकी वाले शादी में दोस्त और परिजन आ चुके थे शादी में भाग लेने के लिए। अब उनको परेशानी हो रही है अपने अपने गाँव वापस लौटने में। लेकिन ये भी एक सत्य है की अभी शादी करवाना, सभी के लिए खतरा बन सकता है।
आवेदकों को नए सिरे से करना होगा आवेदन
3 मई से 17 मई के बीच होने वाली शादी ब्याह के कार्यक्रम जो रद्द किए गए, उनके लिए फिर से 17 मई के बाद अनुमति लेनी होगी।
कोरोना काल के इस दौर में सभी लोगो को सावधानी बरतने की जरूरत है ना कि प्रशासन द्वारा लागू किये नियमो का उलंघन करना है क्योंकि तालाबंदी से ही इस महामारी से छुटकारा मिल सकता है ।वैवाहिक कार्यक्रमो जैसे सामाजिक कार्यो में बिल्कुल ना जाएँ और ना ही ऐसे कार्यक्रमो को आयोजित करें। तालाबंदी में अपने अपने घर मे रहना ही ज्यादा उचित है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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