पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती कीमत की वजह से आदिवासी किसान और मज़दूर हो रहे हैं बेहाल
- Tara Sorthey
- Nov 5, 2021
- 3 min read
Updated: Dec 21, 2021
पेट्रोल डीज़ल के दाम आसमान छू रहे हैं, और इसके साथ साथ प्रत्येक वस्तु के भी दाम बढ़ने लगे हैं। एक तो कोरोना की वजह से लाखों लोगों की नौकरी चली गई, नौकरियों के न होने से युवा बेरोजगार बैठे हैं और अब महंगाई के कारण मध्यम वर्गीय और ग़रीब परिवारों की कमर ही टूट गई है।
आदिवासी किसानों के जीवन में भी इस डीज़ल और पेट्रोल की बढ़ती हुई कीमत का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है। खरीफ़ फसल तैयार हो चुके हैं अब उन्हें खेतों से खालीहानों में लाये जाने हैं, और फ़िर रबी फसल के लिए खेतों को तैयार करना है। आजकल खेतों में बैल से हल करने का चलन कम होता जा रहा है, और किसान ट्रैक्टर से अपने जुताई करवा रहे हैं।
डीज़ल के दाम दिन-प्रतिदिन बढ़ने से ट्रैक्टर से खेती का काम करवाना भी महंगा होता जा रहा है। खरीफ़ फसल लगाने के दौरान कई किसान अपने खेतों पर इसीलिए हल नहीं कर पाएं, क्योंकि ट्रैक्टर चलवाना उनके लिए महँगा पड़ रहा था। अभी भी रबी फसल के खेती करने में लोगों को परेशानी होने वाली है। फिलहाल ट्रैक्टर से हल करवाने में एक घंटा में 1200 रुपये लगता है, लेकिन जिस तेज़ी से ईंधनों के दाम बढ़ रहे हैं अगला फसल लगाने के वक़्त भी ट्रैक्टर से हल करवाना महँगा पड़ सकता है। खरीफ़ फसल में तो मॉनसून की वजह से पानी की पटाने की उतनी समस्या नहीं रहती परंतु रबी फसल के लिए पानी मशीन चला कर ही मिल सकता है, और मशीन डीज़ल से चलती हैं, अतः किसान किसी भी तरह से यदि हल करवाकर फसल लगा भी लेते हैं, तो भी उन्हें पानी पटाने के लिए इस महंगाई का मार सहना ही पड़ेगा।

पिछले दो सालों से कोरोना की वजह से हुई तालाबंदीयों और अब बढ़ती हुई पेट्रोल-डीज़ल की कीमत, दोनों मिलकर लोगों की मुसीबतें बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कुछ किसान अन्य जगहों से सब्जियां खरीदकर अपने हाट बाज़ारों में बेचते हैं, और उसके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे की बस आदि साधन का उपयोग करते हैं, पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने से बसों का किराया भी बढ़ गया है, जिससे इन किसानों को भी भारी नुकसान हो रहा है। बसों का किराया बढ़ने से न सिर्फ़ किसानों को बल्कि आम लोगों को भी एक जगह से दूसरे जगह आने जाने में महँगे टिकट खरीदना पड़ रहा है। ईंधनों की कीमत बढ़ने से रोजमर्रा की वस्तुओं के भी दाम बढ़ने लगे हैं, जिससे लोगों का आर्थिक बजट बिगड़ता जा रहा है।
मज़दूरी करने वालों से बात करने पर यह पता चला की, वे लोग हर रोज़ मज़दूरी करने दूर-दूर तक जाते हैं। कभी-कभी बस से जाते हैं, तो कभी अपने साधन(बाइक या स्कूटी) से जाते हैं। कुछ समय से लोगों के काम धंधे में महंगाई के कारण रुकावटें आ रही हैं, यदि अपने गाड़ी से आना जाना करते हैं, तो प्रति लीटर पेट्रोल के लिए 100 रुपये से ज्यादा का पेट्रोल अपने गाड़ी में डलवाना पड़ता है, जो उनके मज़दूरी के पैसे से काफ़ी ज्यादा है।
सरकारों को जल्द से जल्द इस महंगाई का उपाय निकालना चाहिए। काम तो लोग किसी तरह से भी ढूंढ लेते हैं, लेकिन चीज़ों के महंगे हो जाने के कारण उनके छोटे मोटे कामों से जीवन चला पाना मुश्किल होता जा रहा है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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