छत्तीसगढ राज्य के गरियाबंद जिले में कमार समुदाय के लोग रहते हैं जो एक विशेष पिछड़ी जनजाति है। गरियाबंद जिले में कमार जनजाति के लोग- गरियाबंद, मैनपुर, छुरा तथा धमतरी जिले से नगरी विकास खण्ड में मुख्यतः निवासरत हैं। ये सभी कमार जनजाति के लोग पहाड़, जंगल व आस-पास के गाँवों में कई वर्षों से बसे हुए हैं। ऐसा ही एक गाँव है ढूँढूनीपानी, जहाँ ये कमार जनजाति के लोग रहते हैं। इस गाँव के ज्यादातर लोग मज़दूरी करते हैं, और दिहाड़ी मज़दूरी से ही उनका घर चलता है। यहाँ के लोगों से जब गाँव की समस्याओं के बारे बात हुई तो बच्चों के प्राथमिक शिक्षा की समस्या ही मुख्य रूप से उभर कर सामने आया।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वैसे तो शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रकार कि योजना चलाई जा रही है, लेकिन ढूँढूनीपानी गाँव के बच्चों तक कोई भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण आदिवासियों के बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दिलवाते हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों में न केवल शिक्षा मिलती है बल्कि बच्चों के लिए उचित पोषित आहार भी प्रदान किया जाता है। ढूँढ़नीपानी गाँव की आबादी बहुत ज्यादा नहीं होने के कारण यहाँ पर कोई भी आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, यहाँ के बच्चों के लिए गाँव से एक किलोमीटर दूर बिजापानी गाँव में आंगनबाड़ी केंद्र है। कहने को तो एक किलोमीटर की ही दूरी पर है परंतु इस बीच भी घना जंगल है जिसकी वजह से कोई भी लोग अपने छोटे बच्चों को आंगनबाड़ी नहीं भेजते हैं। माता-पिताओं के लिए यह संभव नहीं कि वे बच्चों को प्रत्येक दिन केंद्र तक छोड़ने जाएं और फिर उन्हें साथ में वापिस लाएं, क्योंकि उन्हें भी अपना दिहाड़ी मज़दूरी करना होता है। आंगनबाड़ी केंद्र तक नहीं पहुंच पाने के कारण बच्चों की शिक्षा और उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
ढूँढूनीपानी का मितानिन श्रीमति हशिना बाई कमार जी का कहना है कि "अकेले सभी बच्चों को एक किलोमीटर दूर जंगल के रास्ते से पैदल आंगनबाड़ी ले जाना सुरक्षित नहीं है। मेरी छत्तीसगढ़ सरकार से यही विनती है कि जल्द से जल्द गाँव में मिनी आंगनवाड़ी केंद्र का निर्माण कराने का कष्ट करें ताकि आंगनवाड़ी जाने में बच्चों को कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।"
श्रीमान रामसिंग कमार जी कहते हैं "मिनी आंगनबाड़ी के लिए दो-तीन बार आवेदन दे चुके हैं फिर भी अभी तक कोई कार्यवाही नहीं किया गया है, आंगनवाड़ी केंद्र का दूर होना हमारे लिए समस्या नहीं है, समस्या है रास्ते में जंगल का होना, इस रास्ते से बच्चों को भेजना खतरे से खाली नहीं है। और हम मानते हैं, कि हमारे गाँव की जनसंख्या कम है लेकिन फिर भी हमारे कमार जनजाति के लोगों को शिक्षा की ओर आगे आने का एक मौका तो दीजिए, क्योंकि यही छोटे-छोटे बच्चे ही अपनी कमार जनजाति के शिक्षा स्तर को बढ़ाने का प्रयास करेंगे।"
ग्राम बीजापानी की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती कुंती बाई सोरी जी कहती हैं कि "ढूँढूनीपानी के बच्चे दूरी व जंगल होने के कारण आंगनवाड़ी नहीं आ पाते हैं।लेकिन हम उन तक सुखा राशन जैसे कि रेडी-टू-ईट फूड व पोषण बिस्किट व अन्य मिलने वाले लाभ को सप्ताहिक व माह के अंदर उनके पालकों को बुलाकर वितरण कर देते हैं, जिससे वे अपने बच्चों को घर पर पोषण आहार खिला सकें। ढूँढूनीपानी के लोगों व बच्चों के पालकों द्वारा मिनी आंगनवाड़ी का माँग किया गया है। जिसमें परियोजना अधिकारी की ओर से जानकारी मिली है कि कम जनसंख्या होने एवं राजस्व लादाबाहरा 01 व बीजापानी 02 केंद्र में होने के कारण मिनी आंगनबाड़ी का निर्माण करना संभव नहीं है। यदि 20 से अधिक शिशु व बच्चे होते तो मिनी आंगनबाड़ी का निर्माण हो जाता।
कमार जनजाति के बच्चों को आंगनबाड़ी से सूखा राशन तो मिल रहा है, लेकिन रोजाना जो गर्म संतुलित पोषण आहार भोजन मिलना चाहिए, वह तो नहीं मिल पा रहा है तथा उनको आंगनबाड़ी स्तर का शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है। जिसके कारण नौनिहाल बच्चों की भविष्य पर बुरा असर पड़ सकता है। आंगनबाड़ी बन जाने से बच्चों और गर्भवती महिलाओ को पोषण आहार का लाभ रोजाना मिलेगा जिससे वे शारीरिक रूप से सुरक्षित रहेंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार व परियोजना बाल विकास यही निवेदन है, कि कमार जनजाति के नौनिहाल बच्चों को आगे बढ़ने के लिए उन्हें मिनी आंगनबाड़ी की आवश्यकता है, तो उनकी मांग को पूरा करने का संपूर्ण प्रयास करें, ताकि उनकी भविष्य में बदलाव आ सकें। नौनिहाल बच्चे ही हमारे देश के भविष्य हैं उनको शिक्षा मिलनी चाहिए।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
Comments