पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
गांवों में प्राचीन काल से, ग्रामीण किसी-न-किसी चीज का, अपने जानकारी अनुसार, उपयोग करते आ रहे हैं। खाने-पीने की चीजों से लेकर, अनेक अन्य उपयोगी सामानों की खोज, वे स्वयं करते हैं। और इन कार्यों को वे बखूबी करते आ रहे हैं।
क्या आप जानते हैं, कि बाँस हमारे लिए, किस-किस तरह से उपयोगी होता है?
हमारे जीवन में, बाँस का उपयोग कई तरह से किया जाता है। बाँस का उपयोग, अधिकतर, दैनिक जीवन में उपयोग के लिए सूपा, मोरा, टुकना इत्यादि को बनाने में किया जाता है। और वहीं, निर्माण कार्य में इनका बहुत ज्यादा उपयोग किया जाता है। इसके बिना तो मानो, निर्माण कार्य सम्भव ही नहीं है। वहीं ग्रामीण आदिवासी, बांस का उपयोग खाने के लिए भी करते हैं।

हालांकि, हम जानते ही हैं, कि ग्रामीण आदिवासी जंगलों में बसना पसंद करते हैं। और जंगलों में ही बसने के कारण उनको जंगल के सभी खान-पान के बारे में उचित जानकारी होता है, जिससे वे खतरों से सुरक्षित रहते हैं। और अगर भूल से, कोई गलती हो जाए, तो उसके उपचार का ज्ञान भी उनके पास होता है। जिसके चलते वे किसी भी गलती से हुए रोग या अन्य बीमारी का इलाज कर पाते हैं।
आज हम जानेंगे कि ग्रामीण आदिवासी बाँस को किस तरह पका के खाते हैं।
बाँस को यूँ ही नहीं खाया जा सकता। इसलिए इसे खाने के लिए, इसके उगने वाली भाग को उपयोग में लिया जाता है। जिसे करिल कहा जाता है। जब बाँस का नया पौधा (करिल) निकालता है, तो उसे सावधानी-पूर्वक तोड़ा जाता है। यदि, सावधानी नहीं रखा, तो खुजली भी होता है। क्योंकि उसके पत्ते में रेशे होते हैं, जिनसे खुजली होता है। अब इसे सही सलामत तोड़ने के बाद, उसके पत्ते को सावधानी से निकाल लिया जाता है।

उसके बाद उसे छोटे-छोटे भागों में काट लिया जाता है। ताकि, उसे आसानी से उबाला जा सके। इसे छोटे हिस्सों में काटने के बाद उबाला जाता है। उबालने के बाद, इसे पत्थर से कूंचा जाता है या फिर कूंचकर उबाला जाता है। इसे उबालने का कारण है, कि इसे उबालने से इसका कस्सापन दूर हो जाता है। जिससे सब्जी स्वादिष्ट लगता है। और नहीं उबालने से यह थोड़ा कस्सा लगता है। उबालकर कूंचने या कूंचकर उबालने के बाद, इसे पानी में उच्छे से धोकर छान लिया जाता है, ताकि इसमें से छोटे-छोटे पत्थर अलग हो जाएँ। और हमें, इसकी सब्जी खाते समय कोई रुकावट या बाधा न आए और हमारा दाँत टूटने से बच जाए। छानने के पश्चात यह सब्जी बनाने के लिए तैयार हो जाता है। अब इसे, हम सब्जी बना सकते हैं। इसका सब्जी अत्यन्त स्वादिष्ट होता है। और इसी को, "करिल का सब्जी" कहा जाता है।
आदिवासियों की यह खासियत है, कि वे आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ जानकार व ज्ञानी भी होते हैं। जो अपनी जानकारी अनुसार ही चीज़ों को करते हैं और निर्णय लेते हैं। हमें भी चाहिए कि ऐसी जानकारियों को इकट्ठा कर उनका उचित इस्तेमाल करें।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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