आदिवासी सदियों से जंगलों के आसपास ही रहते हैं, जंगल के संसाधनों और वहाँ के जानवरों के साथ उनका अटूट सम्बन्ध रहा है। जंगली जानवरों के साथ भी वे रहने की कला को सिख लिए हैं, और उन जानवरों के प्रति उनका सम्मान भी अद्भुत है।
छत्तीसगढ़ के जंगलों में हाथी मुख्य रूप से पाए जाते हैं, सामन्यतः हाथी शाँत जानवर होते हैं और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। हाथियों के आवाजाही करने और उनके विचरण करने का एक निश्चित राह होता है, वे अपने राह से कभी नहीं भटकते। असम से लेकर केरल तक जंगलों के मध्य हाथियों के आने जाने का अपना मार्ग है जिसे हम एलीफैंट कॉरिडोर कहते हैं, लेकिन उद्योग और खनन की वजह से जंगल कम हो रहे हैं जिससे हाथियों के मार्ग में भी बदलाव आ राह है। अब हाथी गाँवों में प्रवेश कर गाँव वालों को तंग करने लगे हैं, उनके फसल खाने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले हाथियों का आतंक दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। हाथी जंगल से निकलकर गाँव या शहर की ओर अपनी धमक जमा रहे हैं। हाल ही में एक घटना खड़गवां ब्लाक के ग्राम पंचायत पैनारी में हुई।
उपसरपंच छत्रपाल जी अपने घर पर थे और उस दिन छत्रपाल जी के यहां मेहमान आए हुए थे। अचानक एक मेहमान के मोबाइल पर फोन आया और वे बात करने के लिए घर से बाहर निकले और निकलते ही उनकी नजर हाथियों के झुण्ड पर पड़ी, वे चुपके से घर के अंदर आए और सदस्यों को बाहर निकलने को कहा, अपनी जान बचाने के लिए सभी सदस्य घर छोड़कर भाग गये। सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए घर छोड़कर बस्ती की ओर भाग गए और यह सूचना तुरंत गाँव के मुखिया, सरपंच और वन विभाग के फॉरेस्ट गार्ड को दिया गया। ग्रामीण लोगों की सुरक्षा के लिए फॉरेस्ट गार्ड तुरंत पहुंच गए और सरपंच ने ग्रामीणों को तत्काल सूचना दिया कि "पूरे ग्रामीण घर छोड़कर मेन रोड में आ जाएं तथा पुरुष युवा हाथियों को भगाने के लिए हमारा साथ दें।" सरपंच जी द्वारा अपने ट्रैक्टर में महिलाओं तथा बच्चोंको लेकर उनकी जान बचाने के लिए पंचायत भवन में पहुंचाया गया। कई लोग ऐसे थे कि शाम का भोजन भी नहीं कर पाए थे, इस स्थिति में लोगों को देखकर गाँव के मुखिया के ऊपर दया आई और उन्होंने पंचायत भवन में उनके खाने-पीने की भी व्यवस्था करवाये, खा पीकर गाँव के अधिकतर लोग पंचायत भवन में ही रात बिताए।
उस रात हाथियों ने छत्रपाल जी के मकान के अंदर रखा धान लगभग पाँच क्विंटल धान को दीवार तोड़कर खा गए, और आंगन में रखे खरी धान को भी खा कर इधर-उधर बिखरा दिये थे। छत्रपाल जी के घर से निकल कर हाथियों ने 200 मी. दुर जा कर शंकर पण्डों के खेत की धान को भी चौपट कर दिया। उसी रात में पैनारी के पढो़सी गाँव महादेवपाली में गजरूप यादव और उसके भाई के घर को तोड़कर वहाँ रखे धान को खा गये एवं उनके बर्तनों को कुचल दिया गया था।
इतना कुछ नुकसान होने के बाद भी यहाँ के ग्रामीण आदिवासी हाथियों के खिलाफ कुछ भी बुरा नहीं कहते। लोग यह भी बताते हैं कि "कई बार हमारे जंगल से हाथी गुजरते है, लेकिन कभी हमारे गाँव में प्रवेश नहीं करते। जिस दिन हमारे जंगल में पहुंचते थे उस दिन हम सब जंगल किनारे के घर वाले शान्ती बनाकर रखते थे।" यहाँ के बुजुर्गों ने ये भी कहा कि "हाथी जंगली जानवर है पर हम सब गाँव वाले उनका बहुत सम्मान करते हैं, अगर किसी दिन हमारे गाँव में पहुंच जाते हैं तो उन्हें भगाने के लिए कोई तमाशा नहीं होता न कोई फटाका फोड़ता है, बस रास्ता दिखाने के लिए डंडा में कपड़ा लपेट कर मसाल बनाकर हाथियों को राह दिखाया जाता है। फटाका आदि फोड़ने पर हाथी और भी अधिक बिदक जाते हैं"
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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