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भीषण गर्मी से सुख गए कुएँ, तालाब और पोखर, ग्रामीण आदिवासी हैं परेशान

जल से ही हमारा जीवन है जल के बिना कोई जीवित नहीं रह सकता लेकिन अभी इस भीषण गर्मी के दिनों में इसी जल की समस्या हर जगह से हो रही है। गर्मी बढ़ने के साथ-साथ गाँवों में पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है। सूरज की तपन के चलते भूमि के जल स्तर में भारी गिरावट हो रही है, ज्यादातर यह परेशानी गाँवों में होती है क्योंकि वहाँ कोई सुविधा नहीं होती है, गाँवों में कुआँ पोखर, नल आदि जगहों से पानी लाया जाता है लेकिन इस भीषण गर्मी में वह पोखरे और कुएं भी सूख गए हैं। दिनों दिन जल स्तर घटता जा रहा है, कुआँ अब मात्र एक गड्ढा बनकर रह गया ही जहाँ लोग कचरा फेंकने लगे हैं।

सूखा हुआ कुआँ

इन दिनों गर्मी के मौसम में लोगों का हाल तो बेहाल है ही, साथ ही साथ गाय-बैलों को आसानी से पानी नहीं मिल रहा है। ग्रामीण आदिवासियों का जीवन पशुपालन और कृषि पर निर्भर है, तापमान के लगातार बढ़ने और भूजल के लगातार नीचे जाने से न पशुओं को आसानी से पानी मिल पा रहा है और न ही खेती हो पा रही है। नदी, तालाबों के साथ-साथ हैंडपंप भी सूखे पड़े हुए हैं, ऐसे में गाँव वालों के साथ-साथ गाँव से गुजरने वाले राहगीरों को भी पानी नहीं मिल पा रहा है।


जिन तालाबों में थोड़ा पानी है वह भी गंदा हो चुका है, ग्रामीण आदिवासियों में जागरूकता की कमी के चलते भूमि के जल के स्रोत को भारी नुकसान हो रहा है, नालियों में फेंका गया कचरा बहकर नदी-तालाबों को गंदा कर रहा है। साफ-सफाई के अभाव से पानी के जगह अब सिर्फ़ गंदगी ही नजर आ रही है। कुओं और तालाबों में नहरों के माध्यम से पानी भरने की योजना कई सालों से कागजों में चली आ रही है जिसके चलते साल दर साल तालाबों की स्थिति खराब होती जा रही है। पिछले सात-आठ सालों में इतनी गर्मी नहीं पड़ी है जितना इस साल है। ग्रामीण बताते हैं कि नदी, तालाब, पोखर आदि सुख जाने से घर बनाना मुश्किल हो गया है। साग-सब्जी यों ही खेतों में सुख जा रहे हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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